सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे ने स्मृति ईरानी के बयान के बाद एक नया आयाम ले लिया है. मंदिर में प्रवेश की बहस सैनिटरी नैपकिन पर पहुंच गई है. पिछले कुछ सालों में ऐसा ही हो रहा है. किसी बहस में तल्खी बढ़ती जाती है. जब तर्क कम पड़ते दिखते हैं तो कोई एक खेमा गोलपोस्ट ही बदल देता है. कल को कोई नेता कह दे 'सबरीमाला में महिलाओं को जाने से देशहित में रोका गया था' या 'लोकतंत्र की रक्षा के लिए सबरीमाला में जाना ज़रूरी है' तो चौंकिएगा मत. सबरीमाला को लेकर जो बहस चल रही है उसमें रोज नए तर्क मिल रहे हैं. व्हॉट्स्ऐप पर फैलाने के लिए धर्म की नई परिभाषाएं गढ़ी जा रही हैं. भगवान अयप्पा को लेकर भी कई तथ्य फैला दिए गए हैं, जबकि सबरीमाला का विवाद धर्म से ज्यादा समाजशास्त्र और इतिहास का विषय है.
महिलाओं के 'विरोधी' नहीं हैं अयप्पा
भगवान अयप्पा के बारे में एक दंत कथा मिलती है. कहते हैं कि भगवान विष्णु के मोहिनी रूप के साथ शिव के संगम से अयप्पा का जन्म हुआ. अयप्पा का संबंध 11वीं शताब्दी से भी जुड़ता है, जब राजपरिवार को एक बालक जंगल में मिलता है और वो उसे अपने बेटे की तरह पालते हैं. अयप्पा एक योद्धा के रूप में जाने जाते हैं. जिनके अंदर शिव और विष्णु दोनों का अंश है. इसके साथ ही अयप्पा बौद्ध धर्म में बुद्ध के एक अंश के तौर पर भी माने जाते हैं.
सारी कहानियों में एक बात है कि अयप्पा को महिलाओं के विरोधी या दूरी बनाए रखने वाला वर्णन नहीं मिलता है. एक तर्क दिया जा रहा है कि अयप्पा ब्रह्मचारी हैं. सबरीमाला सहित कई जगह अयप्पा के ब्रह्मचारी रूप की पूजा होती है. मान्यता है कि मालिकापूरथम्मा अयप्पा से शादी करना चाहती थीं मगर अयप्पा के ब्रह्मचर्य के कारण नहीं कर सकीं इसी लिए सबरीमाला के पास एक दूसरे मंदिर में उनकी पूजा होती है. मगर त्रावणकोर के ही अचनकोविल श्रीधर्मस्थल मंदिर में अयप्पा की एक वैवाहिक अवतार के रूप में स्थापना है. वहां उनकी दो पत्नियां पूर्णा और पुश्कला हैं साथ ही उनका बेटा सात्यक है.
भारत में ऐसा होना असंभव नहीं है बालब्रह्मचारी माने जाने वाले हनुमान का तेलंगाना में मंदिर है, जहां उनकी पत्नी की मूर्ति भी है. वैसे हनुमान भी ब्रह्मचारी हैं और उनके मंदिर में महिलाओं के जाने पर रोक नहीं है.
सबरीमाला देश में अयप्पा का इकलौता मंदिर नहीं है. केरल में अयप्पा के कई और मंदिर हैं जहां महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं है. दिल्ली के आरकेपुरम् में भी भगवान अयप्पा का एक मंदिर है. कुलतुपुजा शष्ठ मंदिर, अचनकोली मंदिर भी अयप्पा के ही हैं जिसमें महिलाओं के प्रवेश पर कोई रोक नहीं है. सभी के बारे में फेसबुक, यूट्यूब या ट्रैवल वेबसाइट पर ढेरों तस्वीरें और वीडियो मिल जाते हैं. जिनमें अच्छी खासी तादाद में महिलाएं मंदिर में दिखती हैं.
महिलाओं पर रोक कुछ ही सालों से!
सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर हमेशा से रोक नहीं रही है. प्राचीन परंपरा के अनुसार मकरसंक्रांति (मकरविलक्कु) के त्योहार के समय एक खास व्रत रखने वाले लोग ही अनुष्ठान कर सकते हैं. इस अनुष्ठान के लिए 41 दिन का एक व्रत होता है. इस व्रत के 41 दिनों की अवधि महिलाओं को धार्मिक रूप से 'अशुद्ध' कर देती है इसलिए महिलाएं इसे नहीं कर सकतीं. इसीलिए महिलाएं इस अनुष्ठान में हिस्सा नहीं ले सकतीं.
सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर रोक पर इतिहासकारों की राय अलग-अलग हैं. एनएस माधवन ने कहा कि 1972 तक महिलाएं मंदिर में आती थीं. राजपरिवार की महिलाओं के आने के प्रमाण भी मिलते हैं. 1980 के दशक में एक फिल्म की शूटिंग भी मंदिर की सीढ़ियों पर हुई. वहीं एमजी शशिभूषण का कहना है कि प्रवेश की अनुमति सिर्फ सीढ़ियों तक थी. सारी परिस्थितियों में यह तय है कि प्रतिबंध का जो स्वरूप आज है वो इतिहास में इस तरह से नहीं था.
1950 में सबरीमाला में आग लगी थी, जिसमें इस मंदिर को बुरी तरह नुक्सान पहुँचा. इसी साल यह मंदिर त्राणवणकोर देवस्वम बोर्ड का हिस्सा बना. त्रावणकोर बोर्ड त्रावणकोर राजघराने के अंदर आने वाले मंदिरों का प्रबंधन देखता है. त्रावणकोर राजपरिवार और मंदिर 18वीं-19वीं शताब्दी में अपने जातिवादि और महिला विरोधी नियमों के लिए विवादित रहे हैं.
त्रावणकोर में कथित नीची जाति की महिलाओं से मुलक्करम (स्तन-टैक्स) वसूलने का कुख्यात इतिहास रहा है. इसके अलावा बढ़े परिवारों की 'कुलीन' महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश के लिए कमर से ऊपर के कपड़े उतारने पड़ते थे, जिससे बचने के लिए टैक्स देना पड़ता था.
अंग्रेजों के समय में इस परंपरा से बचने के लिए बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ. बाद में इस परंपरा पर कई संघर्षों के चलते रोक लगी. 1950 में त्रावणकोर बोर्ड ने जबसे सबरीमाला और तमाम दूसरे मंदिरों का प्रबंधन संभाला तो धीरे-धीरे कई नियम अनौपचारिक से सख्त होते चले गए.
सुविधानुसार बदलते हैं नियम
भारत में खासतौर पर हिंदू धर्म में सुविधानुसार बदलाव होते रहते हैं. कभी ये बदलाव अच्छे कारणों से होते हैं, जैसे ईकोफ्रेंडली या खाने की चीजों से बने गणेश जिनका विसर्जन न करके जरूरतमंदों में बांट दिया जाता है. या वृंदावन में शुरू हुई विधवाओं की होली. कभी ये हास्यास्पद अंधश्रद्धा जैसे मामले बन जाते हैं, मसलन पासपोर्ट बनवाने या वीजा वाले भगवान के मंदिर हमने देखे हैं.
इन्हीं सबके बीच जाति और पितृसत्ता की हनक को बनाए रखने के लिए भी परंपराएं बनाईं और रखी जाती हैं. स्वामीनारायण के बारे में माना जाता है कि उन्होंने जाति के भेदभाव को खत्म करने के उपदेश दिए. लंबे समय तक उनके ज्यादातर मंदिरों में दलितों के प्रवेश पर रोक रही.
जब कोर्ट के आदेश पर हिंदू मंदिर सभी जातियों के लिए खोले गए तो इनमें से कुछ मंदिरों ने कहा कि वो तो हिंदू हैं ही नहीं. क्योंकि वे त्रिदेव, 12 अवतार या शक्ति के किसी रूप की पूजा नहीं करते हैं. वेंडी डॉगिनर की किताब के मुताबिक इसके बाद माना गया कि 'कोई भी गैरअब्राहमिक संप्रदाय जो अपने अलावा दूसरे संप्रदायों के साथ भी समन्यव रखता है, हिंदू है.'
कुल मिलाकर सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश का मामला अब राजनीति का मौका बन गया है. व्हाट्स्ऐप पर यूरोप की साजिश, 1950 में मलेच्छों के आग लगा देने और अयप्पा के बाल ब्रह्मचारी होने, ब्रह्मचारी भगवान के मंदिर में महिलाओं के न जाने जैसे तथ्य बन रहे हैं और आगे बढ़ाए जा रहे हैं. जब धर्म के नाम पर राजनीति हो रही हो और लोग राजनीति को ही धर्म बना चुके हों तो ऐसी बातें तो होंगी है. इंतजार करिए कितने और नए नियम जानकारी में आएं.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.