उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास, कालिदास मार्ग के बंगला नंबर-5 के गेट के भीतर जैसे ही मेरी गाड़ी घुसी, माहौल एकदम से बदला हुआ नजर आया. परिवेश में संयम और सादगी थी. मेरे यहां पहुंचने के तुरंत पहले मुख्यमंत्री ने शीर्ष पुलिस अधिकारियों को अपने साथ शुद्ध शाकाहारी भोजन के लिए बुलाया था. ये अधिकारी पुलिस-सप्ताह मनाने के लिए लखनऊ आए थे. इन अधिकारियों को लाने और ले जाने के मकसद से आए चंद वाहनों को छोड़ दें तो बंगले में कर्मचारियों के अलावा न तो कोई अन्य व्यक्ति नजर आ रहा था और न ही कोई और गतिविधि ही होती दिख रही थी. नजारा बीते दौर की उस तस्वीर से एकदम ही उलट था जब यूपी के मुख्यमंत्री का निवास-स्थान सत्ता के बिचौलियों और ‘कृपा’ की चाहत रखने वाले खुशामदियों से भरा मिलता था. इस मुख्यमंत्री ने लग्गुओं-भग्गुओं के लिए तनिक भी गुंजाइश नहीं छोड़ी है.
मैंने वेटिंग लाउन्ज में कदम रखा तो पूरा हॉल खाली नजर आया. योगी आदित्यनाथ वक्त के बड़े पाबंद हैं. मुझसे कहा गया कि मुख्यमंत्री अयोध्या मामले पर चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि ये मामला अभी अदालत के हवाले है. लेकिन बाकी किसी भी किस्म के सवाल पर कोई रोक-छेंक नहीं है. एनकाउंटर में मार गिराने के वाकयों, भीड़ के हाथों होने वाली हत्याओं और गऊ के मसले पर उठे सवालों पर उनके रुख के बारे में मैंने पहले भी सुना था सो इस बार के लिए तय यही किया था कि इन मसलों को नहीं उठाना है. इन बातों की जगह, मैं इस बार ये जानने को उत्सुक था कि देखें प्रशासन, समाज, अध्यात्म और संविधान के मसले पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ क्या कहते हैं. बड़े फलक वाला यह साक्षात्कार हिन्दी में हुआ और योगी ने सचमुच इस साक्षात्कार में दिल की बातें कहीं, ये फिक्र न रखी कि सियासी व्याकरण से मेल मिलाते हुए कोई बात कहनी है. नीचे साक्षात्कार के कुछ हिस्से दिए जा रहे हैं...
सवाल: साक्षात्कार की शुरुआत इस सवाल से करते हैं कि आपने अब तक उत्तर प्रदेश में क्या बदलाव किए हैं?
जवाब: मैंने उत्तर प्रदेश के बारे में लोगों की धारणा बदल दी है. दो साल पहले तक, लोग यूपी को ज्यादातर भ्रष्टाचार, विधिहीनता, अराजकता और दंगों के लिए जानते थे- सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी लोगों के मन में यूपी को लेकर यही धारणा थी. मार्च में मेरे दो साल पूरे होंगे. मेरे अब तक के शासन में, कोई दंगा नहीं हुआ है. हमने संगठित किस्म के अपराध पर एक हद तक काबू पा लिया है. हमने कानून के राज को मजबूत बनाया है. पारिवारिक झगड़े या निजी दुश्मनी के कुछ मामलों को छोड़ दें तो फिर पूरे प्रदेश में अब लोग असुरक्षित नहीं हैं. धारणा में आए बदलाव के कारण सूबे में निवेश आ रहा है. आज भारत और दुनिया की तमाम जगहों से बड़े-बड़े उद्योगपति यूपी में निवेश करने को उत्सुक हैं. मार्च में हम शासन के दो साल पूरे करने जा रहे हैं और राज्य में 2 लाख करोड़ का निवेश आ चुका है जो अपने आप में अप्रत्याशित है. विकास का ये एक पक्ष है.
यूपी ने अन्य क्षेत्रों में भी तरक्की की है, खासकर केंद्र की फ्लैगशिप योजनाओं के मोर्चे पर जहां सूबा पिछले वक्तों में पिछड़ा नजर आता था. मिसाल के लिए, राज्य को स्वच्छ भारत मिशन में 23 वां स्थान हासिल हुआ था. लेकिन अब स्थिति एकदम उलट गई है, हमने शत-प्रतिशत परफॉर्मेंस दिखाई है जबकि राष्ट्रीय औसत 97 प्रतिशत का है. स्वच्छ भारत मिशन शुरू हुआ तो राष्ट्रीय स्तर पर इसकी कवरेज 44 फीसद की थी जबकि यूपी में 20 प्रतिशत की. ग्रामीण इलाकों में हमने 2.49 करोड़ शौचालय बनवाए हैं. शहरी इलाके में, जिन लोगों को ये सुविधा हासिल नहीं थी, उनके लिए हमने 8 लाख शौचालय बनवाए हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के मामले में, ग्रामीण इलाकों के एतबार से यूपी का स्थान 17वां हुआ करता था लेकिन आज हम पहले स्थान पर हैं. हमने अपने शासन के दौरान गांवों में 11.5 लाख और शहरी इलाकों में 7.5 लाख घर बनाए हैं जिन्हें बेघर लोगों को दिया जाएगा. सौभाग्य योजना के अंतर्गत हमने ऐसे 1.75 करोड़ लोगों की पहचान की है जिन्हें बिजली का कनेक्शन नहीं मिला था. हम 15 जनवरी, 2019 तक ऐसे हर परिवार को बिजली कनेक्शन मुहैया करा देंगे.
आइए, बाकी चीजों, जैसे कि खाद्यान्न के मसले पर भी बात करते हैं. राज्य सरकार हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा करती थी लेकिन अनाज की खरीद न हो तो घोषणा व्यर्थ है. साल 2016-17 (अखिलेश यादव की सरकार के वक्त) में आढ़तियों के मार्फत 7 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी. हमने आढ़तियों को बाहर कर दिया और अनाज की खरीद सीधे किसानों से शुरू की. हमने 37 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदे और पैसा सीधे उनके बैंक अकाउंट में डाला. इस साल हमने किसानों से लगभग 53 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा. हमने गन्ना किसानों को 44,000 करोड़ रुपए का भुगतान सुनिश्चित किया है. देश में यह गन्ना किसानों को हुआ सबसे बड़ा भुगतान है. मात्र 18 महीनों में हमने लगभग 2 लाख हेक्टेयर जमीन में सिंचाई की सुविधा कायम की है. अगले साल (2019) के अंत तक हमारा इरादा 20 लाख हेक्टेयर भूमि तक सिंचाई सुविधाओं के विस्तार का है.
डेयरी क्षेत्र में, पराग कोऑपरेटिव के बैनर तले 69 डेयरियां हुआ करती थीं लेकिन ये डेयरियां पिछली सरकारों के दौर में बंद हो गईं. हमें पता है कि किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए परंपरागत तरीके की खेती के साथ-साथ डेयरी और मछली पालन जैसे उपायों को भी अपनाने की जरूरत है. हम दूध के एक सहकारी संघ के अंतर्गत अमूल और बनास डेयरी की मदद से 14 नई डेयरियां कायम करने जा रहे हैं. इनमें से हर डेयरी की न्यूनतम क्षमता 3 लाख लीटर की होगी ताकि वे जमीनी स्तर पर टिकाऊ साबित हो सकें.
जुलाई महीने में निवेशकों के शिखर सम्मेलन में सूबे को 5 लाख करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव मिले. प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम के उद्घाटन के दौरान 60,000 करोड़ रुपए के निवेश का वादा पहले ही कर रखा है. हमने कौशल विकास के कार्यक्रम में लगभग 6 लाख नौजवानों का पंजीकरण किया है. कौशल हासिल कर चुके लगभग 4 लाख युवा अब नौकरी के लिए तैयार बैठे हैं. हम राज्य के जिलों की खासियत को बढ़ावा देने और बड़े पैमाने पर उसका व्यवसायीकरण करने के मकसद से एक नई और अनूठी योजना 'एक जिला-एक उत्पाद' नाम से चला रहे हैं. विकास को बढ़ावा देने के लिए इसमें नौजवानों को जोड़ा गया है.
सवाल : जरा इस ‘एक जिला-एक उत्पाद’ के बारे में कुछ विस्तार से बताइए. क्या इसका रिश्ता वैसी चीजों को बढ़ावा देने से है जो किसी खास जिले के नाम से मशहूर हैं?
जवाब: जी, बिल्कुल. मिसाल के लिए बनारसी साड़ी या फिर भदोही के कालीन की ही बात लीजिए. इन उत्पादों को कभी खास तरजीह नहीं दी गई. इसी तरह, मुरादाबाद के पीतल के सामान, मेरठ में बनी खेल की चीजें और कन्नौज का इत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हुआ करते थे. दरअसल, यूपी के हर जिले में एक खास सामान तैयार होता है लेकिन उसकी एक हद तक उपेक्षा हुई है. बीते वक्त में इन उत्पादों की मैपिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग की कोई कोशिश नहीं हुई. हम इस सिलसिले में काम कर रहे हैं. आज अकेले बनारस को ही 600 करोड़ रुपए के साड़ियों के निर्यात के आर्डर मिले हैं. मैं खुद मुरादाबाद गया था, मुरादाबाद को 6500 करोड़ रुपए के पीतल के सामान के निर्यात के ऑर्डर हासिल हुए हैं. सरकार निर्यात को बढ़ावा देने के लिए इन उत्पादों की मैपिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग को तरजीह दे रही है.
मुरादाबाद में मैंने उद्यमियों के साथ बैठक की ताकि उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सके. बैठक के अंत में, उद्यमियों के महासंघ के अध्यक्ष ने कहा-हमें पहली बार लग रहा है कि हम भी बाकी नागरिकों में शामिल हैं और जबरिया वसूली या फिर व्यवस्था के हाथों सताए जाने का कोई भय नहीं है. वे इस बात से भी खुश थे कि बिजली अब 24 घंटे निरंतर मिल रही है. यह वही उत्तर प्रदेश है जहां पांच बड़े शहरों को छोड़कर बिजली की आपूर्ति हर जगह बहुत ज्यादा बाधित थी.
अब हम सभी जिला मुख्यालयों को 24 घंटे, तहसील मुख्यालयों को 20 घंटे और ग्रामीण इलाकों में 16-18 घंटे बिजली की सप्लाई कर रहे हैं. इससे खेती की पैदावार में इजाफा हुआ है क्योंकि किसानों को सिंचाई के लिए बिजली मिल रही है और यह पंपिंग सेट चलाने की तुलना में बड़ी सस्ती है. दरअसल बड़े स्तर पर हमारी कोशिश लोगों को सरकार की पहलकदमियों के साथ जोड़ने की है ताकि वे अपनी स्थिति बेहतर बना सकें. हम पूरे राज्य में गांव, प्रखंड और जिला स्तर पर सड़कें बना रहे हैं. इसी तरह पर्यटन के मामले में भी हमारा राज्य तीसरे नंबर पर है. कुंभ के बाद, आप इसे नंबर एक पर पाएंगे.
प्रश्न: क्या कुंभ की अपनी अहमियत के कारण ऐसा नहीं होने जा रहा? या, फिर कुछ और वजहें भी हैं?
जवाब: बेशक, बड़ी वजह तो कुंभ ही है. लेकिन यूपी कुंभ के बाद भी पहले नंबर पर बना रहेगा. इसी तरह एमएसएमई (सूक्ष्म, छोटे और मंझोले दर्जे के उद्योग) क्षेत्र में हम जल्दी ही नंबर एक पर आने वाले हैं.
सवाल: क्या आप इंडस्ट्रियल इस्टेट को फिर से नवजीवन देने की योजना बना रहे हैं? अभी तो सच्चाई ये है कि गाजियाबाद से लेकर गोरखपुर तक सभी इंडस्ट्रियल इस्टेट लगभग मृत पड़े हैं.
जवाब: इंडस्ट्रियल इस्टेट मुख्य रूप से बड़े उद्योगों के लिए बनाए गए थे. यह मामला यूपी स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन देखता है. राज्य ने शुरू में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन देने के लिए नोएडा और जीएनआईडीए जैसे विकास प्राधिकरणों का गठन किया. लेकिन युक्ति कारगर नहीं रही. हुआ यह कि विकास प्राधिकरण चंद लोगों के लिए अवैध कमाई का जरिया बन गए, ये चंद लोग व्यवस्था को तोड़-मरोड़कर अपने मनपसंद लोगों को चुनते और उनके लिये जगह बनाते रहे. कोई नीति नहीं थी सो उन लोगों (बीते वक्त में राज्य का शासन चलाने वालों) को सिस्टम से खिलवाड़ करने का मौका था. अब हमने हर क्षेत्र पर ध्यान देते हुए नीतियां बनायी हैं, सो, अब लोग आयें और नीतियों का लाभ उठायें.
प्रश्न: क्या आप यह कह रहे हैं कि आपकी नीतियां पहले के दौर से एकदम अलग हैं?
उत्तर: देश में यह सिर्फ हमारी सरकार है जिसनें अलग-अलग सेक्टर के लिए 21 नीतियां बनाई हैं. यूपी में आने वाले हर निवेशक को इसका फायदा मिलेगा. हमने जैविक ईंधन, कूड़े-कचरे के इस्तेमाल और खेतिहर अपशिष्ट से लेकर ऊर्जा के अन्य हरित साधनों के बाबत नीति बनाई है. एक संयंत्र सीतापुर में बनने जा रहा है. एक और संयंत्र 1200 करोड़ रुपए के निवेश से गोरखपुर में बन रहा है. यहां तक कि आईओसी और एचपीसीएल सरीखी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां भी इस उपक्रम में निवेश कर रही हैं. किसान 500 रुपए प्रति टन के हिसाब से अपना खेतिहर अपशिष्ट बेच सकेंगे. इससे खेतों में पराली जलाने की वजह से पैदा हो रहे प्रदूषण से निजात मिलेगी. इसी तरह मैंने चीनी उद्योग के आगे आ रहे संकटों के समाधान के लिए प्रधानमंत्री को एक प्रस्ताव भेजा है. चीनी के अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें उतार पर हैं सो मैंने प्रस्ताव दिया कि गन्ने से सीधे इथेनॉल ही बना लिया जाय. इस नीति को अब मंजूरी मिल गई है और हमें इस क्षेत्र के लिए कई प्रस्ताव मिले हैं. गन्ने से सीधे इथेनॉल बनाने वालों को अब अधिक कीमत मिला करेगी. किसानों को अब लाभदायी मूल्य हासिल होगा और यह सेक्टर संकट से उबर जाएगा. इथेनॉल के विनिर्माण से देश की कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम होगी. अगर हम बायोफ्यूल के दम पर कच्चे तेल के आयात में 25 प्रतिशत की भी कमी कर पाए तो इससे 2 लाख करोड़ रुपए के बराबर विदेशी मुद्रा की बचत होगी.
प्रश्न: इथेनॉल के उत्पादन को लेकर इंडस्ट्री की कुछ चिंताएं हैं. क्या यह उपक्रम आर्थिक रूप से व्यावहारिक साबित होगा?
उत्तर: इथेनॉल के उत्पादन के बाबत उद्योग जगत से ज्यादा आपत्ति तो अंतरराष्ट्रीय संगठनों को है क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे चीनी का उत्पादन व्यावहारिक नहीं रह जाएगा. लेकिन हम अपने किसानों के हित की हिफाजत के लिए प्रतिबद्ध हैं. अगर उन्हें लगता है कि चीनी-उत्पादन व्यावहारिक नहीं रहा तो फिर वे गुड़ बना लें.
सवाल: मध्यप्रदेश में, खासकर ग्वालियर वाले इलाके में मैंने देखा कि किसान चीनी की जगह गुड़ बनाने की तरफ मुड़ गए हैं. क्या यह टिकाऊ साबित होगा?
जवाब: आज गुड़ और चीनी के भाव एक से हैं. पंद्रह साल पहले गुड़ कहीं ज्यादा सस्ता हुआ करता था. अब हमारी नीति से गोरखपुर में एक मिल की राह खुली है. इसमें गन्ने से इथेनॉल बनाया जाएगा. आप निश्चित जानिए कि हमारी नीति से एक बुनियादी बदलाव आएगा.
सवाल: क्या आप यह कह रहे हैं कि यूपी में बदलाव कुछ वैसा होगा जैसा पहले कभी नहीं दिखाई दिया?
जवाब: हां, बीते वक्त में लोगों को किस हद तक ठगा गया ये जानकर आपको हैरानी होगी. मैं एक उदाहरण से इस बात को समझाता हूं. उत्तर प्रदेश में लगभग 200 प्रखंडों ( राज्य के ग्रामीण इलाके का लगभग 25 प्रतिशत) को पिछली सरकारों ने डार्क जोन घोषित कर दिया था. किसानों को खेतों की सिंचाई के लिए पंपिंग सेट लगाने की मनाही थी और सिंचाई का कोई अन्य विकल्प भी न था.जब मैंने पूछा कि आदेश किस आधार पर दिए गए तो मुझे एक कोर्ट ऑर्डर का गलत हवाला दिया गया. मैंने फाइल मांगी तो वो मेरे पास 6 महीने बाद पहुंची, वो भी बहुत जोर देने के बाद.
सवाल: क्या आपके कहने के बाद भी नौकरशाही ने लेटलतीफी दिखाई?
जवाब: सिर्फ देरी ही नहीं, उन लोगों ने छल-कपट का भी सहारा लिया और तब जाकर फाइल सौंपीं जिसमें 1990 के दशक के शुरुआती समय के एक अदालती आदेश का हवाला था कि कोका कोला और पेप्सी कोला जैसी कंपनियां उन इलाकों में अपने संयंत्र (प्लांट) न लगाएं जहां किसान सिंचाई के लिए भूमिगत जल पर निर्भर हैं. इस आदेश का इस्तेमाल किसानों को सिंचाई जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित रखने के लिए किया गया.
सवाल: क्या डार्क जोन जैसी कोई समस्या थी भी या इसका यों ही हौव्वा खड़ा किया गया था?
जवाब: उन लोगों के पास कोर्ट के आदेश की पुष्टि में कोई प्रामाणिक आंकड़े न थे. समस्या जानते-बूझते पैदा की गई थी. ऐसी समस्या, दरअसल कोई थी ही नहीं.
सवाल: आपकी शुरुआती टिप्पणियों से जो बात मैं समझ पा रहा हूं, वो ये है कि सरकार अनाज उपलब्ध कराने के मामले में अत्यधिक सक्रिय हो गई है. लेकिन क्या हमारे पास इंतजाम किए गए इन अनाजों के भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था है? अक्सर ये देखा गया है कि जब-जब सरकार ने बड़ी मात्रा में अनाज इकट्ठा करने की प्रक्रिया शुरू की है, तब-तब कोई न कोई घोटाला सामने आया है. आप इसे कैसे रोकेंगे?
जवाब: हमारे पास भंडारण की पर्याप्त सुविधा मौजूद है. हमने निजी क्षेत्रों के व्यापारियों को इस काम में आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया है. हमने उन्हें स्टोरेज और सिलोस बनाने को प्रेरित किया है. हमने हमारे पुराने गोदामों और माल-गोदामों का भी पुनरुद्धार किया है. सच तो ये है कि फूड सिक्योरिटी लॉ के अंतर्गत हमें इतना अनाज जमा करना ही पड़ेगा. हमारे पास 3.5 करोड राशन कार्डधारी जनता है, जो लगभग राज्य की 15-18 करोड़ की आबादी हो जाती है. इसके अलावा हमें 1.77 करोड़ स्कूली बच्चों के मिड-डे मील के लिए भी पर्याप्त अनाज का भंडारण करना पड़ता है. ये हमारी सरकार के लिए एक तरह से एक नए किस्म का अनुभव है.
मैंने 19 मार्च 2017 को राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और राज्य के लिए गेहूं की खरीद 1 अप्रैल से शुरू होने वाली थी. जब मैंने अफसरों से कहा कि वे बिचौलियों को बीच से हटाएं तो उन्होंने कहा कि उनके पास ऐसा करने की कोई युक्ति ही नहीं है. मैंने उन्हें छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह से बात करने के बाद वहां भेजा. लेकिन, जब तक कि वे लौट कर आए तब तक हमलोगों ने अनाज की सरकारी खरीद के लिए लगभग 5000 सेंटर खोल लिए थे.
सवाल: आपने प्रदेश के हर घर में बिजली का कनेक्शन देने और बिजली की सप्लाई बेहतर करने का वादा किया था. लेकिन बिजली की सप्लाई और खपत में कोई खास बदलाव होता दिख नहीं रहा है. लेकिन, कमोबेश पूरे देश की हालत यही है, जहां बिजली का उत्पादन भले ही जरूरत से ज्यादा है, लेकिन वहां बिजली की खपत बिल्कुल एक समान है. क्या इससे ये साबित नहीं होता है कि लोगों की आमदनी और पैसा खर्चा करने की स्थिति पहले जैसी ही है, उसमें कुछ भी बेहतर नहीं हुआ है?
जवाब: ये यूपी के लिहाज से सही नहीं है. हम सिर्फ 12,000 मेगावॉट बिजली की उत्पादन करते हैं, जबकि हमें कम से कम 16,000 मेगावॉट बिजली की जरूरत है. जबकि, इसकी अधिकतम मांग लगभग 22,000 मेगावॉट की है. कृषि और कारखानों की मांग लगातार बढ़ने के साथ, बिजली की खपत भी बढ़कर 21,000 मेगावॉट हो गई है. इसके अलावा एनटीपीसी व पॉवर ग्रिड से बिजली की खरीद करने से जो आर्थिक नुकसान हमें होता है, उसकी भरपाई करने के लिए-हम अगले पांच सालों के भीतर 5000 मेगावॉट सोलर एनर्जी, पैदा करने का इरादा रखते हैं.
सवाल: ये काफी बड़ी मात्रा लगती है. इस समय राज्य में कितनी सोलर एनर्जी पैदा हो पा रही है?
जवाब: इस समय हम सिर्फ 500 मेगावॉट सोलर एनर्जी पैदा कर रहे हैं. हम और भी प्लांट लगाने की कोशिश कर रहे हैं. हम अगले पांच सालों में यूपी को ऊर्जा के क्षेत्र में एक सक्षम राज्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हमारे पास इतनी बिजली होगी कि हम प्रदेश के हर घर, हर कारखाने और खेतों तक बिजली पहुंचा पाएंगे. हमारा लक्ष्य ये भी है कि बिजली के संचारण के दौरान जो नुकसान होता है उसे भी बचा लें. जब हम सत्ता में आए थे ये नुकसान 37% था जो अब घटकर 23% हो गया है. हमारा लक्ष्य है कि हम इसे और घटाकर 10% तक लेकर जाएं, ताकि राज्यभर के लोगों 24 घंटे बिना किसी रुकावट के बिजली सप्लाई होती रहे.
सवाल: आपने निवेशकों के सम्मेलन की सफलता की बात की थी. हमने ऐसे सम्मलेन अन्य राज्यों में भी होते हुए देखा है, जहां बड़े-बड़े वादे तो किए जाते हैं लेकिन उसके ज्यादा कुछ निकल कर नहीं आता है. आप ये दावा कैसे कर सकते हैं कि यूपी इस मामले में अलग साबित होगा?
जवाब: हमारे मामले में हमें निवेशकों से वायदा मिला है. प्रधानमंत्री ने अब तक करीब 62 हजार करोड़ की लागत वाली कई बड़ी योजनाओं का शिलान्यास भी कर दिया है. हमारे पास इस समय 70-75 हजार करोड़ का निवेश लगभग आ चुका है, जिसमें कई बड़े उद्योगपतियों का भरपूर साथ हमें मिला हुआ है. उदाहरण के तौर पर सैमसंग को ही ले लें, जिसने इस सम्मेलन के बाद हमें पांच हजार करोड़ का निवेश देने का वादा किया.
सवाल: क्या सैमसंग द्वारा किया गया निवेश पुराना नहीं है?
जवाब: नहीं ऐसा नहीं है. ये निवेश मेरे कार्यकाल के दौरान हुआ है. ये निवेश पीएम मोदी और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के द्वारा इसकी यूनिट का उद्घाटन करने के बाद हुआ है. मुझे बाद में पता चला कि इसके प्रबंधन के कुछ लोगों को श्रम विभाग द्वारा परेशान किया जा रहा है तो मैंने दोनों पक्षों को बुलाकर बातचीत की और पाया कि उन्हें (प्रबंधन) को बेवजह परेशान किया जा रहा है. जिसके बाद आरोपी अधिकारी को तुरंत सस्पेंड कर दिया गया. उसके तुरंत बाद सैमसंग ने 3 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त निवेश किया.
अब हमारे पास ऐसे भी प्रमुख उद्योगपति हैं जो यूपी में निवेश करना चाहते हैं. इनमें टाटा भी शामिल हैं. जब हम सत्ता में आए तो टाटा की टीसीएस लखनऊ से अपना बोरिया-बिस्तर समेट रही थी, लेकिन अब वे प्रदेश में अपना काम बढ़ाना चाहते हैं और नोएडा में अपना एक यूनिट स्थापित कर रहे हैं, जिससे 30 हजार युवाओं को नौकरी मिलेगी. वे लोग जल्द ही अपना भूमि-पूजन करने वाले हैं जिसमें रतन टाटा भी शामिल होंगे. हम आज जो कुछ भी कर रहे हैं वो पूर्व की सरकारों से बिल्कुल अलग है. पहले की सरकार और नौकरशाही कुछ खास लोगों को ही चुनने में यकीन करती थीं, लेकिन हमने अब ऐसी नीति बनाई है जिसमें किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा.
सवाल: अपने मुख्यमंत्रित्व काल के पहले दिन आपने आदेश दिया था कि राज्य की सभी सड़कों के खाली गड्ढों को भरा जाए. मैं खुद राज्य के कई हिस्सों में घूमता रहता हूं और मेरा अनुभव है कि वो काम आजतक पूरा नहीं हो पाया है. आप इसे कैसे देखते हैं?
जवाब: अगर लोग सड़कों का इस्तेमाल करेंगे तो जाहिर है कि उन सड़कों पर गड्ढे भी होंगे. संख्या के आधार पर कहें तो राज्य की 1.20 लाख किमी की सड़कें ऐसी थीं जिसमें गड्डे बने थे. अब उन जगहों को छोड़कर जहां कोई कानूनी अड़चन आ रही है, बाकि जगहों पर काम चल रहा है.
सवाल: मानव विकास सूचकांक में यूपी सबसे निचले स्तर पर आता है. अब आपने जो बातें इस वक्त मुझसे कहीं हैं, उससे ऐसा लगता है कि हालात बेहतर हो रहे हैं, लेकिन ये एचडीआई (ह्यूमन डेवेलपमेंट इंडेक्स) में दिखायी क्यों नहीं पड़ता है, ऐसा क्यों?
जवाब: हमारा राज्य काफी बड़ा है और इसकी आबादी भी बहुत ज़्यादा है. आबादी के एक बड़े हिस्से को लंबे समय से बिजली, पानी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सड़क और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही थी. वे लोग हमारी वित्तीय योजनाओं में शामिल नहीं थे. जब नीति आयोग ने राज्य के पिछड़े जिलों की पहचान की, तब 115 में से सिर्फ 8 जिलों को उस लिस्ट में जगह मिली. हमने फिर इन आठ जिलों पर खूब ध्यान दिया और वहां लंबी योजनाएं चलाईं. अब हालिया रिपोर्टों में ये कहा गया है कि हम अच्छा विकास कर रहे हैं. वे सभी जिले जो हमारी प्राथमिकताओं में थे उनमें काफी विकास का काम हो रहा है. ये विकास शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और शौचालय निर्माण जैसे क्षेत्रों में देखा जा रहा है. हमने स्कूलों और बच्चों को पौष्टिक खाना देने पर खूब ध्यान दिया. हमने लोगों में पौष्टिक भोजन को लेकर जानकारी बढ़ाने के लिए एक पौष्टिक मेला का भी आयोजन किया जहां उन्हें स्वस्थ तरीके से खानपान की आदत डालने के बारे में बताया गया. हमने राज्य के 1.77 करोड़ स्कूली बच्चों को दो सेट यूनिफॉर्म और स्कूल बैग उपलब्ध कराए. उनमें से कुछ बच्चे तो ऐसे थे जो पहली बार जूते और मोजे पहन रहे थे. हमने मिड-डे मील पर लगातार निगरानी रखी और बेहतर संस्थाओं को इसका कॉन्ट्रैक्ट दिया. मुझे यकीन है कि भविष्य में एचडीआई में हमारी ये कोशिश जरूर नजर आएगी.
सवाल: आप हमेशा राम-राज्य की बातें करते हैं. क्या आप ये बता सकते हैं कि रामराज्य से आपका क्या मतलब है?
जवाब: राम-राज्य एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना है, जहां लोगों के साथ जाति, धर्म, वंश या कुल के नाम पर भेदभाव न हो. ऐसी व्यवस्था में, जो भी कल्याणकारी योजनाएं हों वो समाज के अंतिम छोर पर बैठे आखिरी आदमी तक को बिना किसी भेदभाव के मिलनी चाहिए. एक गरीब व्यक्ति को घर, शौचालय, बिजली, गैस-कनेक्शन और जीविका के साधन मिल जाना ही मेरे हिसाब से राम-राज्य स्थापित करना है.
सवाल: वो तो ठीक है लेकिन रामराज्य का एक और मतलब भी होता है. वो ये कि बिना किसी प्रमाण के, किसी की शिकायत पर राम ने सीता को वनवास भेज दिया था. भाव ये है कि रामराज्य में किसी पर आरोप लगा देने भर से ही उस आदमी को या तो सजा दे दी जाती है या उस पर कार्रवाई हो जाती है. लेकिन, आपको देखकर ऐसा लगता है कि आपने अपनी सरकार पर लगे सभी आरोपों को नजरअंदाज कर दिया.
जवाब: नहीं ये सही नहीं है. हम हमारे पास आने वाली सभी शिकायतों का मेरिट के आधार पर मूल्यांकन करते हैं. हमें अब तक लगभग 77 लाख शिकायतें मिली हैं, जिसमें से 72 लाख शिकायतों का सफलता-पूर्वक निस्तारण कर दिया गया है. मैंने बाकी बचे पांच लाख शिकायतों को भी एक समय-सीमा के भीतर निपटाने का आदेश दे दिया है. हमें हर शिकायत की जांच-पड़ताल करनी पड़ती है कि वो कितना सही है. अगर वे सही होते हैं, तब हम ज़रूरी कदम उठाते हैं. और, अगर वो शिकायत सही नहीं होती हैं तो हम शिकायतकर्ता को इस बारे में बता देते हैं ताकि वो आगे से ध्यान दे.
सवाल: आपसे पहले, भगवा वस्त्र पहनने वाले सिर्फ एक मुख्यमंत्री का उदाहरण मिलता है और वो हैं उमा भारती. लेकिन, आप गोरखनाथ पीठ के भी प्रमुख रहे हैं. इन दोनों पदों पर रहते हुए क्या आपको कभी विरोधाभास नहीं महसूस हुआ है. क्या आपको नहीं लगा कि मुख्यमंत्री का पद, एक पीठ के प्रमुख के पद से बिल्कुल भिन्न है? जहां तक मैं समझ पा रहा हूं, आप भले ही एक आध्यात्मिक यात्रा पर हैं लेकिन कहीं न कहीं आप एक दूसरी दुनिया में भटक तो गए ही हैं.
उत्तर: मुझे ये समझ नहीं आता है कि हमारे बुद्धिजीवी क्यों ‘धर्म’ और ‘पंथ’ के बीच के अंतर को समझ पाने में नाकाम रहे हैं. ये उनकी अज्ञानता के कारण ही हुआ है कि उन्होंने भारत जो मूलभूत रूप से पंथ-निरपेक्ष देश रहा है उसे वो धर्म-निरपेक्ष (सेक्युलर) देश बनाने पर तुले हैं. ये दोनों दो अलग चीजें हैं. धर्म एक शाश्वत व्यवस्था है, जो हमें हमारे कर्म, नीति, नैतिकता और सच्ची सेवा का बोध कराती है. अगर आप धर्म को इन मौलिक मूल्यों से अलग कर देंगे तो जीवन का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा. पंथ का मतलब एक अलग तरह की पूजा की परंपरा से है. कोई भी शासन व्यवस्था किसी एक तरह की पूजा-प्रणाली या किसी एक समुदाय के प्रति वचनबद्ध नहीं हो सकती है, ऐसा हर्गिज नहीं होना चाहिए. ये सच है कि राष्ट्र या देश किसी एक समुदाय या पंथ का समर्थक नहीं हो सकता है. लेकिन अगर धर्म लोगों को उनकी जिम्मेदारी, नैतिकता और मूल्यों से अवगत कराए तो ये उनके साथ जीवन भर रह जाता है. मुझे धर्म और लोकतंत्र के मूल्यों और उद्देश्यों में कोई फर्क नहीं दिखता है. सैद्धांतिक तौर पर दोनों एक ही हैं.
सवाल: क्या आपको अपनी आध्यात्मिक भूमिका और मुख्यमंत्री की जिम्मेदारियों में एक विरोधाभास नहीं लगता है?
जवाब: मैंने धर्म को सेवा से जोड़ लिया है. चूंकि, मैं अपना काम सेवाभाव से करता हूं, तो मुझे अपने इसी काम में आध्यामिकता का भी बोध होता है. मैं पूजा कैसे करता हूं, ये मेरी निजी पंसद है और इसे मैं खुद संचालित करता हूं. कोई सरकार उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. मुझे अपने आध्यात्मिक विकास के लिए क्या करने की जरूरत है, वो मैं तय करूंगा. लेकिन, जीवन के जो शाश्वत नियम और मूल्य हैं वो हर सीमा के पार हैं. वो व्यापक हैं.
सवाल: इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ है कि देश के सबसे बड़े राज्य का नेतृत्व एक महंत ने किया हो, एक संत पहली बार मुख्यमंत्री बना है. क्या आप इस बात से अवगत हैं कि ऐसा होने से देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इससे डरा हुआ है, खासकर मुसलमान?
जवाब: हां, ऐसा हो सकता है. वे आजादी के बाद से इस देश में जो झूठा प्रचार किया गया है उससे डरे होंगे. मुझे भरोसा है कि आपको ये बात पता होगी कि जो लोग गोरखनाथ मंदिर के आसपास के इलाकों में रहते हैं, वे ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं. उनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं. अगर मेरे कार्यकाल के दौरान वहां किसी प्रकार का कोई दंगा नहीं हुआ है, तो लोग जरूर सुरक्षित महसूस करते होंगे. अगर कोई लड़की चाहे वो किसी भी धर्म की हो, अगर वो शोहदों के कारण डरी हुई नहीं रहती है, तो जाहिर है इसके लिए मेरी शुक्रगुजार होगी कि मैंने वहां एक सुरक्षित वातावरण तैयार किया है. ये हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है.
सवाल: आपकी जो आध्यात्मिक धारणा या यात्रा है उसके बावजूद, आज आपको एक ऐसे संविधान का पालन करना पड़ रहा है जिसे साधारण लोगों ने बनाया है. आप इसका पालन कैसे कर पाते हैं?
जवाब: आजादी के बाद हम सबने ये प्रतिज्ञा ली कि हम हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अपने देश के संविधान का पालन करेंगे. हमारा संविधान एक पवित्र दस्तावेज है. हमारी परंपरा, हमारे साधु-संत भी उस संविधान का आदर करते रहे हैं जिसे हमारे देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों ने तैयार किया है. जब हमारे देश का कोई संविधान नहीं था तब भी, हमारा समाज कुछ स्मृति चिन्हों या नियमों के सहारे चलता था, जिसे हमारे महान ऋषि-मुनियों ने बनाया था. अलग-अलग समय और जगहों पर, विभिन्न नियम-कायदों का जन्म हुआ. इसमें मनुस्मृति के साथ-साथ कई अन्य नियमावलियों का बड़ा संग्रह था, जिससे समाज चलता था. मैं हमारे संविधान को उसी कड़ी में देखता हूं.
सवाल: मैं आपकी इन व्याख्याओं को काफी नया और साहसिक पाता हूं. मैंने इससे पहले संविधान की ऐसी व्याख्या कभी नहीं सुनी थी.
जवाब: लेकिन यही सच्चाई है. हमारा संविधान उसी प्रक्रिया के तहत विकसित हुआ है. अलग-अलग समय और जगहों पर. कई तरह के नियम, आचार-संहिताओं का बदलते समय के साथ विकास हुआ है, लेकिन उसकी आत्मा हमेशा एक रही है. भले ही उसकी पहचान या नाम बदल गया हो.
सवाल: जब आप संविधान की व्याख्या इस तरह से करते हैं तो क्या आप नहीं लगता है कि समाज का एक वर्ग इसे हिंदुवादी तरीके से की गई व्याख्या मानेगा?
जवाब: मुझे ये समझ में नहीं आता है कि लोगों को ये समझ में क्यों नहीं आता है कि इस देश में हिंदू नाम से एक संस्था या अस्तित्व है. आप देखिए, हमारे देश के रूपए में भी हिंदू और भारतीय शब्द लिखा हुआ है. जब हम हिंदू कहते हैं, तो वो हमारे देशवासियों के एक व्यापक सांस्कृतिक पहचान का परिचायक होता है. अगर आप नेपाल जाएंगे तो पाएंगे कि वहां के लोग खुद को बड़े ही गर्व से हिंदू कहते हैं. कोई भी व्यक्ति जो इस विशाल भू-भाग से दुनिया के किसी दूसरे कोने में जाएगा तो खुद को हिंदू ही कहेगा, लेकिन जो लोग भारत में रहते हैं वो खुद को भारतीय कहते हैं, जो एक भौगोलिक संरचना को दर्शाता है. इसलिए, हिंदू शब्द का मतलब काफी गहरा है. ये बेवजह नहीं था कि स्वामी विवेकानंद ने नारा दिया था, ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं.’
सवाल: लेकिन जब आप यही बात एक मुख्यमंत्री के तौर पर कहते हैं तो क्या ये आपको परेशान नहीं करता है?
जवाब: मुझे क्यों परेशान करेगा? ये एक सच्चाई है.
सवाल: मुझे थोड़ी और छूट दें तो मैं ये पूछना चाहूंगा कि जब आपकी सरकार कांवड़ियों का स्वागत उन पर गुलाब के फूल बरसा कर करती है, तब क्या वो संविधान का अपमान नहीं करती? ऐतिहासिक तौर पर देश इस तरह से किसी तरह की धार्मिक प्रवृत्ति का प्रदर्शन नहीं करती है.
जवाब: हम हमेशा हमारे देश की भावनाओं को समझने में गलत हो जाते हैं. हमारा देश आस्थाओं का देश है. मैं आपको महान मार्क्सवादी नेता और केरल के मुख्यत अच्युत मेनन की एक कहानी सुनाता हूं. उन्होंने एक मलयालम मैगजीन में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने मार्क्सवादी सोच से इस बात की व्याख्या की कि आजादी के बाद भारत किस तरह विभिन्न राष्ट्रीयताओं में बंट गया है. लेकिन बाद में देशभर की यात्रा करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनकी मार्क्सवादी सोच गलत थी. जब उन्हें आदि शंकराचार्य के जीवन के बारे में पता चला, जिन्होंने केरल छोड़कर देश के चार कोनों में चार पीठों की स्थापना की, तो ये पूरी तरह से साबित हो गया कि भारत भले ही राजनीतिक तौर पर बंट गया हो लेकिन सांस्कृतिक तौर पर एक था. और जिन जगहों को हम सिर्फ मंदिर कहते हैं, वो सिर्फ पूजा और आस्था के प्रतीक नहीं हैं बल्कि भारत की एकता के प्रतीक हैं. ये बातें एक कम्युनिस्ट नेता द्वारा कही गई थीं.
जब हम कांवड़ियों पर फूल बरसाते हैं तो ऐसा करने के पीछे दो कारण होते हैं: पहला लोगों की भावनाओं का सम्मान करना और भीड़ में असामाजिक तत्व हैं उन पर नजर रखना. मुझे पता है कि असामाजिक तत्व ऐसे मौकों पर कई बार बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं. इसलिए हेलिकॉप्टर के जरिए हम उन पर पश्चिमी यूपी में नजर रख रहे थे. मैंने पहले इस बारे में बातचीत इसलिए नहीं की क्योंकि मैं ऐसे मसलों का निपटारा सख्ती से करने में यकीन करता हूं. उन पर फूल बरसाने मकसद सिर्फ इतना था कि हम उन्हें ये संदेश देना चाहते थे कि हमारी सरकार भक्तों की भावनाओं का कद्र करती है. हमने असामाजिक तत्वों पर भी नजर रखी. हम आगे भी ऐसा करेंगे. आगामी, कुंभ मेले में हम बड़े पैमाने पर ऐसा करेंगे. मैंने अयोध्या में भी दीपोत्सव का आयोजन करके इसकी शुरुआत की है.
सवाल: क्या ये सुविधा दूसरे धर्मों के त्योहारों पर भी लागू होती है?
जवाब: मेरे कार्यकाल के दौरान किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय और समूह के लोगों को उनकी परंपरा के अनुसार पूजा-पाठ करने, जश्न मनाने और उत्सव करने में कभी किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हुई है. लेकिन ये सब कुछ कानून के भीतर होना चाहिए. हमने हर किसी को, ऐसा करने में मदद और सुविधाएं दोनों दी हैं.
सवाल: अब मैं कुंभ के बारे में आपसे बातें करना चाहता हूं. मैंने सुना है कि आपने लगभग पूरे इलाहाबाद शहर को बदल दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार एक इंटरव्यू के दौरान मुझे बताया था कि कुंभ भारत का असली रूप दिखाता है, जहां ऑस्ट्रेलिया जैसे देश जितनी आबादी आती है और पूजा-पाठ करके लौट जाती है, वो भी पूरे अनुशासन में. आप इसे कैसे देखते हैं?
जवाब: कुंभ मेला मानवता का सबसे बड़ा समागम है, जहां संस्कृति और आध्यात्मिकता दोनों आकर आपस में मिल जाते हैं. यही वजह है कि यूनेस्को ने हमारे प्रधानमंत्री के कहने पर कुंभ को एक अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया है. हमने इस अलौकिक आयोजन का अनुभव कराने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर तैयारियां की हैं. जो इसकी अलौकिकता के हिसाब से सर्वथा उचित है. हमने इसकी शुरुआत गंगा पूजा से की जिसे प्रधानमंत्री जी ने किया था. ऐसा पहली बार हो रहा है कि पूरी दुनिया से 72 मिशन इस मेले के आयोजन स्थल में अपना टेंट लगाने आ रहे हैं, और ये भी पहली बार हो रहा है कि 192 देशों के प्रतिनिधि कुंभ में में भाग ले रहे हैं. भारत के छह लाख गांवों का भी वहां प्रतिनिधित्व होगा.
जिस इलाके में कुंभ का आयोजन होगा हमने उस इलाके को भी काफी बढ़ा दिया है. हमने वहां एक टेंट-सिटी भी बनाई है. प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम पर जहां कुंभ का आयोजन किया जाता है, वहां हम ऐसा इंतज़ाम कर रहे हैं कि भक्तों को सरस्वती कूप का दर्शन करने का मौका मिले. (वो कुआं जहां सरस्वती नदी खो गई) हम 450 साल के बाद अक्षय वट भी खोल रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस पेड़ के दर्शन अपनी पिछली यात्रा में की थी. हमने कुंभ के आयोजन को ध्यान में रखते हुए पूरे प्रयागराज शहर के बुनियादी ढांचे को विकसित करने का काम किया है.
हमने वहां रात में रुकने वाले भक्तों और तीर्थयात्रियों के लिए इंतजाम किए हैं, और कई पुराने आश्रमों को भी दोबारा बनाया है ताकि वहां तीर्थयात्रियों को दिक्कत न हो. हम पुराने आध्यात्मिक प्रयागराज की परंपरा को दोबारा जीवित करने के लिए युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं. ये पहला कुंभ का आयोजन होगा जिसमें यात्री और भक्त सड़क, आकाश और जलमार्ग के जरिए यात्रा कर पहुंच सकते हैं. पीएम द्वारा उद्घाटन किया गया सिविल एयरपोर्ट ये सुनिश्चित कर रहा है कि वायु-मार्ग से यात्रा सुचारू तरह से हो. पूरे देश से सड़क के जरिए भी जुड़ाव पहले से बेहतर हो गया है. हमने प्रयागराज और वाराणसी को जल-मार्ग से भी जोड़ दिया है.
सवाल: कुंभ इलाहाबाद में क्यों नहीं हो रहा है?
जवाब: अब वो प्रयागराज है.
सवाल: लेकिन, इलाहाबाद में क्या दिक्कत है?
जवाब: मुझे इलाहाबाद से कोई दिक्कत नहीं है. मैंने सिर्फ इस ऐतिहासिक शहर की पवित्र और मौलिक पहचान को दोबारा स्थापित करने का काम किया है. मैंने शहर का नाम नहीं बदला है.
( इस इंटरव्यू को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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