रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि कोई ‘ठोस फार्मूला’ आने पर ही वह बातचीत की दिशा में आगे बढ़ेगा. हाल ही में इस मुद्दे को अदालत से बाहर बातचीत के जरिए सुलझाने की बात शुरू हुई थी. इसके लिए आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर की ओर से मध्यस्थता की पेशकश की गई है.
रविवार को पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना खलीलुर रहमान सज्जाद नोमानी ने कहा, ‘कई बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. हम हवा में कोई बातचीत नहीं करना चाहते.'
उन्होंने कहा, 'अगर हमारे सामने आधिकारिक तौर पर कोई ठोस फार्मूला पेश किया जाता है तभी बोर्ड बातचीत पर गौर करेगा. ऐसा नहीं है कि हम बातचीत नहीं करना चाहते, लेकिन कोई ठोस फार्मूला हो तब हम कुछ कहें.’
श्री श्री रविशंकर ने कहा था समय बदल चुका है, लोग शांति चाहते हैं
‘आर्ट ऑफ लीविंग’ के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के बयान में बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘हम सिर्फ यह कहना चाहते हैं कि अगर किसी के पास न्यायसंगत और ठोस फार्मूला है तो वह बोर्ड के पास भेजे. उसके बाद हम विचार करेंगे.’
श्री श्री रविशंकर ने शनिवार को मध्यस्थता की पेशकश करते हुए कहा, ‘दोनों समुदायों को एक मंच की जरूरत है जहां वे भाईचारे के साथ इस मुद्दे पर चर्चा कर सकें और सौहार्द दिखा सकें. अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं और लोग शांति चाहते हैं.’
दरअसल, बीते छह अक्टूबर को पर्सनल लॉ बोर्ड से जुड़े मुफ्ती एजाज अरशद कासमी बेंगलुरू में श्री श्री आश्रम गए थे और इसके बाद मीडिया के एक हिस्से में ऐसी खबरें आईं कि श्री श्री ने बोर्ड से बातचीत के लिए संपर्क किया है, हालांकि कासमी ने कहा कि ‘आर्ट ऑफ लीविंग’ के आश्रम के उनके दौरे से बोर्ड का कोई लेनादेना नहीं हैं.
बातचीत एकतरफा नहीं हो सकती, सभी पक्षों को आना होगा
कासमी ने कहा, ‘मैं और कुछ अन्य लोग निजी हैसियत से वहां गए थे और इसे बोर्ड से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.’ उधर, बोर्ड के एक अन्य प्रमुख सदस्य कमाल फारूकी ने कहा कि ‘ठोस प्रस्ताव’ आने पर ही बातचीत हो सकती है.
फारूकी ने कहा, ‘बातचीत एकतरफा नहीं हो सकती. बातचीत के लिए कोई ठोस प्रस्ताव होना चाहिए और कोई पूर्व शर्त नहीं होनी चाहिए. अगर हमारे पास आधिकारिक रूप से कोई ठोस प्रस्ताव आता है तो हम विचार करेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘मध्यस्थता के संदर्भ में निजी तौर पर यह राय है कि मध्यस्थता में विभिन्न धर्मों के लोग होने चाहिए.’ गौरतलब है कि रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद फिलहाल उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है.
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