सुपर कॉप केपीएस गिल नहीं रहे. उनकी तारीफें चौतरफा हो रही हैं, लेकिन एक ऐसा घटनाक्रम भी उनके सेवाकाल में रहा है, जो उनके जीवन पर बदनुमा धब्बा कहा जाएगा.
यह मामला है रूपन देवल बजाज केस का, जिसमें आईपीएस अधिकारी गिल सजा पाने से बच गए थे. मीडिया में आज भी इसे 'बट स्लैपिंग केस' के तौर पर जाना जाता है.
यह प्रकरण जिस समय हुआ था उस समय न केवल गिल को बल्कि उन्हें समर्थन देने वाले गिलगिले समाज को भी मीडिया के गुस्से का सामना करना पड़ा था.
आतंकवाद को खत्म करने में भले गिल का याेगदान माना जाता हो, लेकिन महिलाओं के प्रति सभ्य व्यवहार को लेकर उनके खाते में बहुत आलोचनाएं आती हैं.
कभी खंडन नहीं कर पाए
गिल के जीवन का यह बहुत शर्मनाक पहलू रहा है कि उनके खिलाफ एक वरिष्ठ आईएएस अफसर रूपन देवल बजाज ने कई गंभीर आरोप लगाए. इनमें सबसे गंभीर आरोप स्त्री लज्जा को भंग करने के आशय से हमला करने का था.
बजाज ने उन पर किसी लोकसेवक के कामकाज को प्रभावित करने के लिए आपराधिक बल प्रयोग सहित कई तरह के आरोप लगाए थे. गिल कभी भी उनका ठीक से खंडन नहीं कर पाए लेकिन फिर भी गिल एक गिलगिले समाज के समर्थन से सजा पाने से बचते रहे.
रूपन देवल बजाज कोई सामान्य महिला नहीं थी. वे एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी थीं और एक अच्छे पद पर थीं. आप कल्पना कर सकते हैं, अगर उनके साथ छेड़छाड़ करके गिल जैसा व्यक्ति बच सकता है तो फिर सामान्य महिलाओं की क्या हालत होती होगी.
यह प्रकरण गिल के जीवन का सबसे कुरूप पक्ष सामने लाता है और इसके लिए उन्हें जीवन भर निंदा का पात्र बने रहना पड़ा.
रूपन देवल बजाज बनाम केपीएस गिल का यह केस बहुत चर्चित प्रकरण था और जिस समय यह घटनाक्रम हुआ, उस समय मीडिया में गिल को लेकर बहुत कुछ लिखा गया और उन्हें हटाने तक की मांग की गई.
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लेकिन पंजाब में फैले आतंकवाद को नियंत्रित करने में गिल ने जिस तरह की भूमिका निभाई, उसे देखते हुए उनका यह निंदनीय और शर्मनाक अपराध करीब-करीब माफ सा कर दिया गया. उन्हें पद्म श्री तक से नवाजा गया. उस समय बजाज ने मांग की कि गिल से पद्म श्री वापस लिया जाए.
बजाज ने गिल के खिलाफ सख्ती से आवाज उठाई और उन पर लगाए गए यौन दुर्व्यवहार के मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले गईं. गिल को 17 साल बाद दोषी माना गया, लेकिन उन्हें करीब-करीब बख्श दिया गया.
गिल की सजा घटा दी गई और जुर्माना भी कम कर दिया गया. इतना ही नहीं, वे इतने गंभीर प्रकरण में आपराधिक सजा काटने से भी बचाए गए. यह प्रकरण साफ बताता है कि स्त्रियों की मर्यादा ताकतवर लोगों के सामने कोई महत्व नहीं रखती.
निचली से लेकर ऊपरी अदालत माने गए दोषी
पंजाब के डीजीपी गिल और रूपन देवल बजाज का यह केस बहुत हाईप्रोफाइल था और इसमें गिल को निचली अदालत से लेकर ऊपरी अदालतों तक दोषी माना गया, लेकिन वे सजा से लगातार बचते रहे.
कभी उनके इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 354 और धारा 509 के तहत कार्रवाई रोक दी गई. तो कभी यह कहा गया कि पंजाब को जिन हालात से उन्होंने उबारा, उसे देखते हुए गिल के लिए सजा अच्छी बात नहीं होगी.
उनके अपराध में दो प्रमुख धाराएं थीं. एक धारा स्त्री की लज्जा भंग से संबंधित थी और दूसरा स्त्री को अपमानित करने के गलत इरादे से अपमानजनक गेस्चर का इस्तेमाल करने से जुड़ी थी. लेकिन गिल का गंभीर प्रकरण में भी ज्यादा कुछ बिगड़ा नहीं.
रूपन देवल बजाज ने इस प्रकरण में जिस साहस के साथ अदालती लड़ाई लड़ी, वह अपने आप में एक नजीर है. वे 1988 में स्पेशल फाइनेंस सेक्रेटरी थीं. पंजाब के होम सेक्रेट्री ने एक पार्टी का आयोजन किया और उसमें यह घटना घटित हुई.
रूपन को कहीं साथ ले जाना चाहते थे
बजाज के साथ हुई घटना सिर्फ सहज मजाक का विषय नहीं थी, बल्कि उन्हें गिल ने बाकायदा बुलवाया था. वे उन्हें कहीं साथ ले जाना चाहते थे और जब बजाज ने उन्हें उनके व्यवहार के लिए फटकारा तो उन्होंने बजाज को गलत ढंग से छूने का प्रयास किया. किसी भी महिला के लिए इससे अपमानजनक कुछ नहीं हो सकता.
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केपीएस गिल ने भले आतंकवाद को खत्म करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई हो, लेकिन इसमें शक नहीं कि उन्होंने अपनी तरह का एक अलग आतंक भी कायम किया. इस आतंक का शिकार एक महिला हुई और उनका यह प्रकरण जब सरकारी तंत्र आैर न्यायपालिका में गया तो वहां भी न्याय और शील की मर्यादा लगातार भंग हुई.
केपीएस गिल केवल सुपर कॉप भर नहीं थे. वे एक गिलगिले समाज के प्रतिनिधि भी थे और वह गिलगिला समाज आज भी स्त्रियों को डराता और कंपाता है. स्त्रियों के प्रति सदा ही अमर्यादित व्यवहार रखने वाले लोगों के लिए वे जरूर सुपर कॉप होंगे, लेकिन यह सुपर कॉप इस बात का प्रतीक है कि भारतीय समाज में स्त्रियों को अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए न्याय पाने की खातिर अभी लंबी लड़ाई लड़ने की जरूरत है.
अभी गिल जैसे कितने ही सुपर कॉप हैं, जो गिलगिले समाज में अपने किए अपराधों की सजा पाने से बच जाते हैं.
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