जहां मृत्यु के बारे में बात ही नहीं होती...वहां जानलेवा बीमारियों से जूझते हुए लोगों ने स्टैंड-अप कॉमेडी के माध्यम से न सिर्फ खुद पर बात करते हुए दूसरों को हंसाया बल्कि खुद भी हंसे.
मृत्यु और हंसी, दोनों के बारे में एक साथ बात करना या सोच भर लेना लगभग वर्जित है. कुछ लोगों को ये खराब भी लग सकता है लेकिन टर्मिनल इलनेस वैसी गंभीर बीमारियां होती हैं जिनमें ज्यादा लंबे समय तक मौत को टाला नहीं जा सकता.
टर्मिनल इलनेस से जूझते हुए व्यक्तियों का दूर से पास आती मौत को जीभ दिखाकर हंसना सबसे बड़े भय को जीत लेने जैसा है. क्लासिक फिल्म आनंद के राजेश खन्ना के लहजे में कहें तो मृत्यु एक दिन सबको गले लगाएगी.
लेकिन उस पारिवारिक माहौल की कल्पना हम कैसे करेंगे जहां हमें पता हो कि हमारे बीच में से कोई हमें छोड़कर जाने वाला है. जहां सब चुप्पी साधे रहें...मन में ही घुनते रहें और जीवन सहज न रह पाए.
हमारे जीवन की बड़ी से बड़ी त्रासदी पर हमारा खुलकर हंस पाना उसे सहजता से स्वीकार करने की ओर पहला कदम है.
फेफड़े के कैंसर से जूझती लगभग 70 वर्षीय मनुदेवी सिंह मंच पर आते ही कहती हैं कि मैं सबको बोलती हूं कि मैं 35 साल की हूं. ये बोलकर वे स्वयं हंसती हैं. वे एक-एक करके जोक्स मारती हैं और ठहाके लगाती जाती हैं. ऐसी हंसी जो कुछ पल के लिए आस-पास सब कुछ भुला दे. जिसमें किसी अनहोनी की संभावना दूर-दूर तक नहीं होती.
वे आगे कहती हैं- मेरी उम्र इतनी है कि नया टीवी सीरियल चालू करूंगी ही नहीं क्या पता खत्म हो कि नहीं हो. जोरदार तरीके से हंसते हुए कहती हैं कि मैं मय्यत में खूब जाती हूं और कुछ नहीं मिला मेरे को सिर्फ मय्यत में जाने के. (फिर ठहाका).
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लाइफ इज लाइक अर्नब गोस्वामी
अचानक दर्शकों में छायी हल्की उदासी को देखते हुए कहती हैं कि आप क्यों उदास हो रहे हो. आपको तो खांसी भी नहीं है मेरे को तो लंग कैंसर है. ये कहते हुए भी उनका हंसना हमें याद दिलाता है कि छोटी-छोटी और थोड़ी ही कोशिश से सुलझाई जा सकने वाली परेशानियों पर निराश और दुखी होने का हमें कोई हक नहीं.
अनौपचारिक बातचीत में वे कहती हैं कि मेरे बच्चों ने मेरा बहुत ख्याल. मुझे किसी तरह की तकलीफ नहीं होने दी.
65 वर्षीय जेनिस पोवेल मंच पर आते ही कहती हैं- लाइफ इस लाइक टीवी जर्नलिस्ट अर्नब गोस्वामी. यू शुड नेवर टेक इट सीरियसली. इतना सुनते ही लोग हंस पड़ते हैं. वे कहती हैं कि मौत ऐसी भी कोई बुरी चीज नहीं है. हालांकि, मैं कभी मरी नहीं हूं बस यूं ही कह रही हूं.
वे कहती हैं, मुंबई में सस्ती जगह पाने का सबसे आसान तरीका है मृत्यु के बाद दफनाया जाना. नार्मल बातचीत में उनका कहना है कि मैं तो बीमार नहीं हूं बिल्कुल बिंदास हूं.
64 साल के नरेन्द्र म्हात्रे की चार साल पहले दोनों किडनी खराब हो गयी थी तब उनकी पत्नी ने उन्हें अपनी एक किडनी दी थी. वे कहते हैं-अमेरिका में लोग चाहते हैं कि नया प्रेसिडेंट मेरे जैसा हो जो ज्यादा दिन नहीं टिके. पत्नी द्वारा किडनी दिए जाने को वे 35 साल में पहला गिफ्ट मिलना बताते हैं.
75 साल के पूरन इस्सर सिंह अपने शरीर के लगभग सभी अंगों के बदले जाने और मरम्मत किये जाने पर मजाक करते हुए कहती हैं कि उन्हें एंबेसडर गाड़ी बहुत पसंद थी और अब वे खुद एम्बेसडर गाड़ी की तरह हो गयी हैं.
पूरन आगे कहती हैं कि आजकल मैं ज्यादा मेकअप करके अच्छी तरह सेल्फी निकालती हूं...जो शायद मुझे श्रद्धांजलि देने के काम आ जाए.
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लाफ एट डेथ
#LaughAtDeath मेडुला कम्युनिकेशनस द्वारा इंडियन एसोसिएशन ऑफ पैलीएटीव केयर के लिए सोचा और तैयार किया गया स्टैंड-अप-कॉमेडी शो है. इसमें जानलेवा बीमारियों से जूझते व्यक्तियों को लेकर हंसी के माध्यम से मौत पर बातचीत को लेकर एक सहज माहौल तैयार किया गया है.
#LaughAtDeath मेडुला कम्युनिकेशनस के क्रिएटिव ग्रुप हेड मिहिर चित्रे का आइडिया है. वे बताते हैं कि कहीं न कहीं ये आइडिया उनके निजी अनुभवों से ही उपजा है.
मिहिर कहते हैं कि 'जब किसी खराब अनुभव या त्रासदी पर हम बात करते हुए इतने सहज जो जाएं कि उस पर हंसा जा सके तभी हम उसे स्वीकार कर पाते हैं. किसी भी चीज को स्वीकार कर पाना, सहजता की ओर बढ़ने के लिए बहुत जरूरी है.'
वे कहते हैं पैलीएटीव केयर के बारे में बात करने के लिए एडवरटाईजिंग के परंपरागत तरीके भी अपनाए जा सकते थे लेकिन मौत पर हंसते हुए बात कर पाना हिम्मत का काम है. खासकर, ऐसे समाज में जहां मौत के बारे में बात कर पाना संभव नहीं है.
इंडियन एसोसिएशन ऑफ पैलीएटीव केयर खासतौर पर जानलेवा बीमारियों से जूझते व्यक्तियों और उनके परिवारों से बातचीत और लगातार विमर्श करके असहज परिस्थितियों को सामान्य बनाने की दिशा में काम करता है.
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जब मृत्यु के बारे में बात करना ही मुश्किल है तब ऐसी स्थिती में असामान्य स्थितियों से गुजरना...मरीजों को मौत से पहले ही जीना छोड़ने के लिए बाध्य कर देता है. इसमें असहनीय पीड़ा, उसके लिए मेडिकल केयर और हर तरह के रख-रखाव का भी ख्याल रखा जाता है.
इस बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हंसी का इस्तेमाल एक कारगर तरीका है. इसके लिए मशहूर स्टैंडअप कॉमेडियंस की मदद से हमारे इस शो के स्टार्स को तैयार किया गया जिसे राहुल सेन गुप्ता ने शूट और डायरेक्ट किया.
मिहिर का कहना है कि, 'असल में ये वो लोग हैं जो ज्यादा जीवंत हैं और हम ही सोच-सोचकर इन्हें ज्यादा गंभीरता से लेते हैं. सबसे आसान यदि कुछ रहा है तो वो इनसे बात करना. वे खुद इस बारे में बात करना चाहते थे.'
जब ये नहीं रहेंगे, तब इनके ये शब्द आंखों में आंसू लिए हंसते हुए दर्शक पहली बार का मंच...ये अनुभव और ढेर सारी हंसी पीछे रह जाएगी.
जैसे 'आनंद' की आवाज सुनाता रिकॉर्डर रह जाता है.
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