अर्णब गोस्वामी ने जून 2016 में टाइम्स नाउ चैनल पर अपने प्राइम टाइम न्यूज शो में तरुण तेजपाल के समर्थन में खड़े होने वाले लोगों को जमकर आड़े हाथों लिया था. इस प्राइम टाइम न्यूज शो का अहम हिस्सा इसी मुद्दे #PseudoTejpalLiberals पर केंद्रित था. उन्होंने खास तौर पर बच्ची करकरिया, प्रह्राद कक्कड़ और शाजिया इल्मी जैसे 'जानेमाने' उदारवादियों की कड़ी आलोचना की थी, जो वरिष्ठ संपादक तरुण तेजपाल पर रेप का आरोप लगने के बाद उनके (तेजपाल) के समर्थन में आए थे.
इन लोगों के समर्थन को एक वीडियो के जरिए आधार मिल रहा था, जो कथित तौर पर तेजपाल के दोस्तों के बीच पेश किया जा रहा था. इस वीडियो की रिकॉर्डिंग में तेजपाल और उनकी सहकर्मी को उस होटल के एलीवेटर में प्रवेश करते और बाहर निकलते दिखाया गया था, जिसमें कथित जबरदस्ती का मामला हुआ था. तरुण तेजपाल पर पूर्व सहकर्मी से रेप का आरोप है.
उस वक्त टाइम्स नाउ के एडिटर-एन-चीफ रहे और स्टार एंकर अर्णब गोस्वामी ने इस वीडियो को 'कथित गुनहगारों का पक्ष' करार दिया था. उनके मुताबिक, तेजपाल ने उदारवादियों को इसलिए यह वीडियो दिया था, ताकि उनके (तेजपाल) के पक्ष में राय को प्रभावित किया जा सके. अर्णब ने अपने शो में इस बात की तरह की इशारा किया था कि तेजपाल के पक्ष में लोगों की राय को प्रभावित करने के लिए दिल्ली में 'जोरदार अभियान' चलाया जा रहा है. उनका यह भी कहना था कि फुटेज और पीड़िता के खिलाफ राय तैयार कर तय कानूनी प्रक्रिया पर भी दबाव डालने की कोशिश है. उन्होंने उन कुछ लोगों पर भी जोरदार तरीके से सवाल उठाए थे, जो इस फुटेज को देखने का दावा कर रहे थे. अर्णब ने अपने शो में यह भी सवाल उठाया था कि वे लोग किस तरह से इस बात को लेकर सुनिश्चित हो सकते हैं कि वीडियो में छेड़छाड़ का मामला नहीं है.
प्राइमटाइम शो में दिखाई गई वीडियो रिकॉर्डिंग
अब हम अतीत से सीधा वर्तमान में आते हैं. 28 मई 2018, टाइम्स नाउ में अब अर्णब गोस्वामी नहीं हैं. टाइम्स नाउ के एडिटर इन चीफ राहुल शिवशंकर और मैनेजिंग एडिटर (पॉलिटिक्स) नविका कुमार ने तीन घंटे के प्राइमटाइम न्यूज में तेजपाल केस की चर्चा की और तेजपाल व पीड़िता की विवादास्पद वीडियो रिकॉर्डिंग भी दिखाई. इस प्राइमटाइम न्यूज का प्रसारण लगातार दो एपिसोड में किया गया.
बहरहाल, तेजपाल के 'अपराध' मुद्दे पर चैनल का रुख 2016 से बदला हुआ नहीं जान पड़ता है, लेकिन दलील देने और 'सबूत' पेश करने का उसके तरीके ने पूरी तरह से यू-टर्न ले लिया है. कहने का मतलब यह है कि यह तरीका पूरी तरह से बदल चुका है.
चैनल के एंकरों ने तेजपाल के जुर्म को लगातार बताते हुए एक ऐसे 'इन-कैमरा' सबूत का प्रसारण भी किया, जिसे कोर्ट के बाहर सार्वजनिक तौर पर कभी नहीं दिखाया जाना चाहिए. इसके साथ ही, ऐसा लगा कि पीड़िता के पूरे बयान और कहानी को फिर से बयां किया जा रहा हो. कार्यक्रम में पीड़िता के उत्पीड़न की कहानी को विस्तार से बताने पर फोकस किया गया.
रेप ट्रायल संबंधी कानून के लिहाज से अवैध है चैनल का यह काम
लिहाजा, 2016 में टाइम्स नाउ ने इस मामले में वीडियो को देखने और इस आधार पर राय बनाने के लिए 'उदारवादियों' को आड़े हाथों लिया था, लेकिन चैनल अब अपनी दलीलों को पेश करने में इसी संदिग्ध फुटेज पर भरोसा कर रहा है.
चैनल की नीयत जो भी रही हो, टाइम्स नाउ का यह काम अवैध था. भारत के रेप कानून में 1982 में हुए संशोधन के मुताबिक, भारत में अब रेप मामलों का ट्रायल सार्वजनिक तौर पर नहीं होता है. रेप की पीड़िता की निजता और सम्मान की सुरक्षा के लिए जानबूझकर इस तरह के ट्रायल ओपन कोर्ट में नहीं कराए जाते हैं और इन कार्यवाहियों में पेश किए गए सबूत भी संरक्षण में रहते हैं. इसके अलावा, अदालत की इजाजत के बिना इन्हें छापा नहीं जा सकता और निश्चित तौर पर इन सबूतों को हमारी टेलीविजन स्क्रीन पर नहीं दिखाया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट की सीनियर वकील रेबेक्का जॉन के मुताबिक, टाइम्स नाउ की यह गतिविधि साफ तौर पर कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर की धारा 327(2) और (3) का उल्लंघन करती है, क्योंकि टीवी चैनल द्वारा दिखाए गए वीडियो को कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया गया है. इतना ही नहीं, गोवा के एडिशनल कोर्ट (जहां इस केस की सुनवाई चल रही है) ने भी इस वीडियो को लोगों को दिखाने पर पाबंदी लगा दी थी. जाहिर तौर पर चैनल ने कानून कानून को तवज्जो नहीं दी है और उसे रेप केस में सबूतों के प्रसारण को लेकर किसी तरह का खेद नहीं है. इस मामले में पाखंड ने पूरी तरह से बुरी शक्ल अख्तियार कर ली है. टाइम्स नाउ ने न सिर्फ कानून तोड़ा, बल्कि चैनल पहले के अपने संपादकीय दावों के खिलाफ भी गया कि वीडियो के गड़बड़ होने की प्रबल आशंका है. और अहम बात यह कि चैनल ने यह भी दावा किया था कि तेजपाल ने अपने पक्ष में राय को प्रभावित करने के लिए खुद से यह वीडियो जारी किया था.
कोबरापोस्ट स्टिंग से ध्यान भटकाने की कोशिश थी यह?
सोशल मीडिया के कुछ टीकाकार वास्तव में भ्रम में अपना सिर खुजला रहे थे. वे यह सोच रहे थे कि टाइम्स नाउ ने ऐसे फुटेज का प्रसारण क्यों किया, जो तेजपाल के पक्ष में संभावना बनाएगा, जबकि वह (तेजपाल) लंब समय से टाइम्स नाउ के पसंदीदा दक्षिणपंथियों के दुश्मन रहे हैं. कुछ अन्य का दावा है कि यह कोबरापोस्ट के हालिया स्टिंग से ध्यान हटाने के लिए की गई सोची-समझी कोशिश है. कोबरापोस्ट के स्टिंग के मुताबिक, टाइम्स ग्रुप समेत कई मीडिया घरानों ने पैसे लेकर कट्टरपंथी एजेंडे का समर्थन करने वाली खास किस्म की राजनीतिक खबरों को छापने पर सहमति जताई थी.
लेखक और पत्रकार कल्पना शर्मा ने टाइम्स नाउ को सख्त ट्वीट करते हुए कहा कि 'पीड़िता के पक्ष में होने का स्वांग करते हुए आप उन्हें (पीड़िता को) फिर से उस त्रासदी का अहसास करा रहे हैं. मैं जानता हूं कि आप पत्रकारिता के कामकाज में नहीं है, लेकिन यह गिरने का नया रिकॉर्ड है.' पत्रकार गीता सेशु और रंजना बनर्जी का कहना था कि तेजपाल टेप पर टाइम्स नाउ के कार्यक्रम का मकसद कोबरापोस्ट की स्टिंग में टाइम्स नाउ की संलिप्तता के मामले से ध्यान हटाना है. बनर्जी ने तो इसे 'सस्ती गंदी और घटिया' हरकत करार दिया. ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमंस एसोसिएशन की सचिव और कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने भी कहा कि चैनल ने दरअसल अवैध तरीके से कोर्ट की संपत्ति का अवैध तरीके से प्रसारण किया है और ऐसा करने में निश्चित तौर पर पीड़िता को किसी तरह की सहायता नहीं मिली है.
राष्ट्रीय महिला मीडिया नेटवर्क ने भी इस सिलसिले में सख्त बयान जारी किया है. इसमें विस्तार से न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के उस कानून, दिशा-निर्देशों और कोड का जिक्र है, जिसका उल्लंघन चैनल ने किया है.
दर्शकों को राजी करने के लिए बचकाना कोशिश
सोवियत फिल्म निर्देशक और विचारक लेव कुलेशोव का मानना था कि पूरी तरह से अलग-अलग शॉट को जानबूझकर एक साथ रखने का इस्तेमाल दर्शकों की भावनाओं को चालाकी से प्रभावित करने में किया जा सकता है. एक बार उन्होंने एक फिल्म का संपादन किया, जिसमें दर्शकों को एक शख्स के भावविहीन चेहरे को दिखाया और उसके तुरंत बाद सूप के कटोरे, ताबूत और एक खूबसूरत महिला वाले शॉट रखे गए. दर्शक इस बात से वाकिफ नहीं थे कि पुरुष के चेहरे का शॉट बदला नहीं हैं. दर्शकों ने सूप को देखने पर स्वाभाविक तौर पर भूखा, ताबूत देखने पर दुखी और महिला को देखने पर खुश ( या और कुछ) महसूस किया। इसे कुलेशोव इफेक्ट कहा जाता है.
इसी तरह से अगर आप दुनिया में भूखमरी शीर्षक के साथ एक बच्चे और सेब की तस्वीर देखते हैं, तो आप निश्चित तौर पर महसूस करेंगे कि बच्चा भूखा लगता है. विधवापन के शीर्षक के साथ गंभीर चेहरे वाली किसी औरत की तस्वीर देखने पर आप सोचते हैं कि वह उदास दिख रही है. और अगर आप गंभीर चेहरे वाली महिला की तस्वीर ताकतवर महिला कारोबारियों वाले शीर्षक के साथ देखते हैं, तो शायद आप उस महिला के चेहरे के भाव को काबिलियत और काम के प्रति समर्पण के तौर पर महसूस करेंगे.
ऐसा लगता है कि टाइम्स नाउ भूल गया कि वह खबरों के बिजनेस में है और उसने कुलेशोव इफेक्ट और 'कुछ भी' के दुर्लभ और जहरीले घालमेल की कोशिश की. चैनल ने एक ही तरह के सबूत दिखाकर दर्शकों की भावनाओं को गलत तरीके से प्रभावित करने की कोशिश की. इसके साथ ही ऐसी टिप्पणियां और विश्लेषण पेश किए, जिस पर हंसा जा सकता है. इन कवायदों के जरिये चैनल की कोशिश इस तरह की चालाकियों से अपनी बात पर भरोसा करने के लिए दर्शकों को राजी करना था और इसमें नियम-कानून की धज्जियां उड़ाई गईं. टाइम्स नाउ ने शायद चैनल के इस प्रसारण के बाद पैदा हुई नाराजगी के जवाब में कहानी के ऑनलाइन वर्जन से इस वीडियो को डिलीट कर दिया. इस तरह से उसने यह साफ कर दिया कि चैनल अब इस बात से भलीभांति वाकिफ है कि उसे टीवी में इस तरह का प्रसारण नहीं करना चाहिए था. हालांकि, इसके लिए अब काफी देर हो गई है.
(द लेडीज फिंगर (टीएलएफ) महिला केंद्रित एक अग्रणी ऑनलाइन मैगजीन है. इसमें राजनीति, स्वास्थ्य, संस्कृति और सेक्स से जुड़े मसलों पर ताजातरीन नजरिए और तेजतर्रार अंदाज में चर्चा की जाती है.)
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