चुनाव के मौसम में जब सियासत के बादल घिरे होते हैं तो नेताओं के दावे और वादे पानी पर लिखी लकीरों की तरह नजर आते हैं. अब पंजाब विधानसभा चुनाव में सुलगती सियासत में पानी के मुद्दे ने आग में घी का काम किया है.
सत्ता की लड़ाई में पानी के बंटवारे का पुराना मुद्दा नई शक्ल ले चुका है. सुप्रीम कोर्ट से सतलुज-यमुना लिंक मामले में पंजाब को करारा झटका मिलने के बाद सीएम प्रकाश सिंह बादल ने फैसले को मानने से इनकार कर दिया है. डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल ने तो ये तक कह डाला कि पंजाब से एक बूंद पानी बाहर नहीं जाएगा.
सत्ताधारी बादल सरकार पर कांग्रेस का आरोप है कि उसने सुप्रीम कोर्ट में पंजाब का पक्ष रखने में लापरवाही की. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस सांसद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने संसद से इस्तीफा दे दिया है. फैसले के विरोध में पंजाब कांग्रेस के सभी विधायकों ने भी अपना इस्तीफा दे दिया. लेकिन हरियाणा की खट्टर सरकार के हिस्से में 35 साल पुराने विवाद के निपटारे की कामयाबी आ गई. वहीं हरियाणा कांग्रेस के सुर पंजाब में अलग हैं. रणदीप सुरजेवाला ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में हरियाणा से पानी समझौता तोड़ने के पंजाब के कानून को अंसैवाधिनक करार दिया है. कोर्ट ने लिंक पर हो रहे निर्माण कार्य को जारी रखने का आदेश देते हुए कहा है कि हरियाणा के लोगों को उनके हिस्से का पानी मिलेगा और निर्माण कार्य भी जारी रहेगा. अब केंद्र सरकार को पंजाब में नहर के हिस्से को पूरा करवाना होगा. इस फैसले के साथ ही हरियाणा को यमुना-सतलुज लिंक नहर से पानी मिलने का रास्ता साफ हो गया.
राजनीति के आगे सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी बेअसर
साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पंजाब में नहर का काम पूरा कराने को कहा था. जिसके बाद पंजाब ने पानी समझौता तोड़ने का कानून बना कर आदेश में बाधा डाल दी थी.
दरअसल दो राज्यों में नदी जल बंटवारे की लड़ाई दो भाइयों के बीच बंटवारे के समान है. साल 1966 में हरियाणा के बनने के बाद से ही पानी को लेकर तलवारें खिंची हुई थी. 1981 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने मामले में दखल देकर दोनों राज्यों में पानी के बंटवारे को लेकर समझौता कराया था.
समझौते के बाद हरियाणा ने अपने हिस्से में नहर का काम पूरा कर लिया लेकिन पंजाब ने सतलुज यमुना लिंक नहर का काम रोक कर रखा था. इस पर केंद्र सरकार ने 2004 में सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगी थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दो राज्यों के बीच हुए समझौते को कोई राज्य एकतरफा नहीं तोड़ सकता है और ऐसा करना अंसवैधानिक है. ऐसे में पानी के समझौते को रद्द करने का पंजाब का कानून खुद ही रद्द हो गया.
पंजाब के कानून में सियासी पहलू ये था कि समझौता तोड़ने के बाद खोदी गई नहरों में मिट्टी भर कर किसानों को जमीन वापस लौटाई जाएगी. बादल सरकार इस फॉर्मूले को जमकर भुनाने की तैयारी में थी. अब जबकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला पंजाब के हक में नहीं आया है तो आरोपों की राजनीति गहरा गई है. सियासत की तेज होती आंच पर मुद्दे को सेंका जा रहा है.
एक मुद्दा, एक पार्टी, अलग-अलग राय
सवाल कैप्टन अमरिंदर सिंह पर भी उठ रहे हैं. बीजेपी ने आरोप लगाया है कि पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ही 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अगवानी कर डैम का शिलान्यास कराया था. लेकिन एक ही मुद्दे पर दो अलग राज्यों में कांग्रेस के सुर अलग हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह इस्तीफा दे रहे हैं तो हरियाणा में रणदीप सुरजेवाला सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत कर रहे हैं. रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा है 'न्याय व सच्चाई की जीत हुई. संविधान की विजय. राष्ट्रहित में मोदी जी को सतलुज-यमुना नहर पर सप्रीम कोर्ट का फैसला फौरन लागू करवाना चाहिए.'
अब जबकि चुनाव में पानी को लेकर पंजाब की सियासत में उबाल है तो बादल सरकार मुद्दे को भाप बनते नहीं देख सकती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद ही सीएम बादल ने आपात बैठक बुलाई और इस मसले में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अपील करने का फैसला लिया है. बादल सरकार ने पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र 16 नवंबर को बुलाया है.
214 किमी लंबी और 133 मीटर सतलज-यमुना लिंक नहर पर ‘नेतागीरी’ बाढ़ की तरह बहती आई है. बादल सरकार ने विधानसभा में बिल पास करा कर नहर की जमीन पंजाब के किसानों को मुफ्त देने का एलान किया था. जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के सभी जल समझौते नहर के पानी मे डुबो दिये थे. अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला राजनीतिक दलों के गले में फांस बन गया है. साथ ही केंद्र पर अब ये बड़ी जिम्मेदारी है कि वो चुनावी मौसम को देखते हुए फैसले को किस तरह लागू करा पाती है.
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