गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छता अभियान के 'स्वच्छ भारत अवॉर्ड' में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता से जुड़ी कई बातें कहीं. उन्होंने एक नया शब्द 'स्वच्छाग्रही' भी दिया.
प्रधानमंत्री ने कहा कि आदमी ऐसा नहीं हो सकता जिसे स्वच्छता पसंद न हो मगर समस्या रही कि कौन सफाई करे. अगर एक हजार महात्मा गांधी आ जाएं, एक लाख नरेंद्र मोदी आ जाएं और सभी मुख्यमंत्री आ जाएं सवच्छता का सपना पूरा नहीं सकता. जब तक सवा सौ करोड़ देश वासी साथ न आएं.
अगर हम कुंभ के मेले की तरह इस मिशन में सरकार का योगदान कम करते चलें और जनता की भागीदारी बढ़ाते चलें तभी ये अभियान सफल होगा. 5 साल में देश का मीडिया उन लोगों का नाम छापेगा जो स्वच्छता में सहयोग नहीं करेंगे. स्वच्छता अभियान की सिद्धि सवा सौ करोड़ देश वासियों की सिद्धि है.
सत्याग्रह अगर आजादी की कुंजी थी तो स्वच्छता श्रेष्ठ भारत की कुंजी है. स्वच्छता के लिए रैंकिंग हो रही है. शहरों की स्वच्छता के चलते नेताओें पर दवाब पड़ रहा है. कॉम्पटेटिव माहौल बन रहा है.
उन्होंने शौचालयों के इस्तेमाल न होने की खबरों पर भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि टॉयलेट बनने के बाद इस्तेमाल न होने की खबरों से हमें नाराज नहीं होना चाहिए.
उन्होंने अपने राजनीति से पहले के दिनों का एक वाकया सबसे साझा किया.
नरेंद्र मोदी ने बताया कि राजनीति में आने से पहले उन्होंने और उनके साथियों ने एक गांव में काम किया. वहां लोगों ने एक गांव गोद लिया. स्थानीय लोगों ने कहा कि घर में टॉयलेट नहीं बनाइए बल्कि कमरा बड़ा बनवा दें. मगर हमने टॉयलेट बनवा दिया. 10-12 साल बाद जब मैं वहां गया तो देखा कि टॉयलेट में बकरियां बंधी हैं.
हमारे यहां जितने स्कूल हैं उसकी तुलना में पढ़ाई का स्तर पीछे है. मगर हम शिक्षा स्तर सुधारने के लिए काम करते हैं. हमें स्वच्छता के लिए भी यही सोच लानी पड़ेगी.
अपने आलोचकों पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मोदी को गाली देने के लिए हजारों विषय हैं, मगर समाज के दायित्व वाले विषयों को राजनीति से अलग रखना चाहिए. चित्र बनाने और निबंध लिखने जैसी अलग-अलग ऐक्टिविटीज़ का मकसद जागरुकता बढ़ावा देना है.
प्रधानमंत्री ने इस अभियान में मीडिया की भूमिका की भी सराहना की. उन्होंने कहा कि आज से चार-पांच साल पहले टीवी पर कई ऐसी खबरें आती थीं जिनमें स्कूल में सफाई करते बच्चों को देखकर लोग गुस्सा होता थे. आज स्वच्छता अभियान में सफाई करते स्कूल के बच्चों को देख कर लोग खुश होते हैं.
सिविल सोसायटी और मीडिया ने अपना पूरा करके दिखा दिया है अगर अब भी ये अभियान सफल न हो तो हमें अपने अंदर सोचना पड़ेगा. आंकड़ों से लगता है कि ये सब सही गति से दिशा में जा रहा है. स्वच्छता के विषय को जब तक महिला के नजरिए से नहीं देखेंगे, समस्या का अंदाजा नहीं लगेगा.
उन्होंने कहा कि स्वच्छता के बारे में पुरुषों से एक सवाल है. आप लोग तो कहीं भी फारिग होने खड़े हो जाते हैं. मगर महिलाओं को अपने शरीर का दमन करना पड़ता है. इस समस्या को समझे बिना बदलाव नहीं आएगा. खुले में शौच जाने वाली महिलाएं दिन की रौशनी में शौच नहीं जा सकती हैं. ये महिलाओं के स्वास्थ्य पर बड़ा असर डालता है.
यूनिुसेफ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए नरेंद्र मोदी बोले कि एक परिवार में टॉयलेट न होने से सालान 50,000 का अतिरिक्त खर्च पड़ता है. जो लोग मुझे काम मांगने के लिए अपना बायोडेटा देते हैं, मैं उनसे स्वच्छता में सहयोग करने के लिए कहता हूं. ऐसे लोग फिर वापस नहीं आते.
जिन बच्चों ने सवच्छता के लिए सहयोग दिया है. मैं उनको दिल से बधाई देता हूं. बापू की जन्म जयंती के पर मैं सभी सवच्छाग्रही लोगों को धन्यवाद देता हूं. जो देश के लिए कुछ और नहीं कर सकते वो स्वच्छता में सहयोग दें.
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