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प्रदूषण कम करने के लिए गाड़ियां बैन करने का फैसला कितना सही?

2015 में अपने एक आदेश के जरिए एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने दिल्ली-एनसीआर में 10 साल से ज्यादा पुरानी डीजल और 15 साल से ज्यादा पुरानी पेट्रोल गाड़ियों को चलाने पर पाबंदी लगा दी थी.

Updated On: Nov 02, 2018 01:22 PM IST

Pallavi Rebbapragada Pallavi Rebbapragada

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प्रदूषण कम करने के लिए गाड़ियां बैन करने का फैसला कितना सही?

2015 में अपने एक आदेश के जरिए एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने दिल्ली-एनसीआर में 10 साल से ज्यादा पुरानी डीजल और 15 साल से ज्यादा पुरानी पेट्रोल गाड़ियों को चलाने पर पाबंदी लगा दी थी. साथ ही एनजीटी ने सार्वजनिक इलाकों में गाड़ी पार्क करने पर भी रोक लगा दी थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी एनजीटी के आदेश पर मुहर लगा दी है. सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि ऐसी गाड़ियों को जब्त कर लिया जाए, जो एनजीटी के इस आदेश के खिलाफ जा कर चल रही हैं. पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की आबो-हवा बिगड़ने के साथ ही परिवहन विभाग ने एक नोटिस के जरिए चेतावनी दी कि सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेश के खिलाफ जाकर जो 10 साल से ज्यादा पुरानी डीजल और 15 साल से ज्यादा पुरानी पेट्रोल गाड़ियां दिल्ली में चल रही हैं, उन्हें जब्त कर लिया जाएगा.

नोटिस में लिखा था कि ऐसी सभी गाड़ियों के मालिकों को इस सार्वजनिक नोटिस के जरिए सूचित किया जाता है कि वो ऐसी गाड़ियां दिल्ली-एनसीआर में न चलाएं, वरना उनकी गाड़ियों को जब्त कर लिया जाएगा. पीटीआई ने अपनी रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से लिखा कि मोटे अंदाजे के मुताबिक अकेले दिल्ली में ही इस दर्जे में आने वाली करीब 38-40 लाख गाड़ियां हैं. अब, सवाल ये उठता है कि अगर 1.70 करोड़ आबादी वाले सूबे में ही 40 लाख गाड़ियों को जब्त करना होगा, तो ऐसे आदेश पर अमल कैसे होगा? 2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली के परिवहन विभाग में कुल 1464 पद हैं.

पूर्व परिवहन सचिव दिनेश मोहन ने हमें बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने उस कमेटी की रिपोर्ट की अनदेखी कर दी है, जिसे 2025 के लिए ऑटो फ्यूल विजन ऐंड पॉलिसी पर सिफारिशें देने के लिए बनाया गया था. ये कमेटी भी इससे पहले की विशेषज्ञों की एक कमेटी 2003 में बनाई गई थी. डॉक्टर रघुनाथ अनंत माशेलकर की अगुवाई वाली इस कमेटी की सिफारिशों के आधार पर ही बीएस 3 और बीएस 4 के पैमाने पर खरे उतरने वाली गाड़ियों के ही रजिस्ट्रेशन की इजाजत दी गई थी.

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इस रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में चलने वाली कुल गाड़ियों की तादाद का पता क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों यानी आरटीओ से मिल सकता है. यहीं पर गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन होता है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि इस सरकारी आंकड़े में बड़ी खामी है. और वो है कि इस डेटाबेस में दिल्ली में 'चल रही गाड़ियों' और 'इस्तेमाल की जा रही गाड़ियों' के आंकड़े बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दर्ज हैं. निजी गाड़ियों के मालिकों को इसी बात की दिक्कत है कि उन्हें गाड़ी खरीदते वक्त गाड़ी के पूरे जीवनकाल का टैक्स भरना होता है.

अक्सर, जब ऐसी गाड़ियां रिटायर कर दी जाती हैं, या बेच दी जाती हैं, तो इसकी जानकारी सरकार को नहीं दी जाती है. माशेलकर कमेटी में सलाहकार रहे दिनेश मोहन कहते हैं, 'भारत में लोगों को गाड़ी खरीदते वक्त ही टैक्स देना होता है. बाद में जब वो कार को कबाड़ में फेंकते हैं, या फिर बेच देते हैं, तो उन्हें परिवहन विभाग को टैक्स नहीं देना होता. लोगों के पास पुरानी गाड़ियों की आरसी होती है, जिनका खात्मा हो चुका होता है. मगर कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है, जो इन दस्तावेजों की निगरानी करे.'

2014 की संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की 'गाड़ियों के इस्तेमाल' से जुड़ी रिपोर्ट में इसी से जुड़ी एक दिलचस्प बात का जिक्र था. रिपोर्ट में कहा गया था कि पेट्रोल पंप के आंकड़ों पर नजर डालें, तो ज्यादातर गाड़ियां यानी 68 फीसद पांच साल या इससे भी कम पुरानी हैं. और 2007 से 2012 के बीच रजिस्टर की गई गाड़ियों की कुल संख्या 8 लाख 26 हजार 500 है. इस रिपोर्ट के हिसाब से इस्तेमाल की जा रही गाड़ियों की कुल संख्या 12 लाख, 15 हजार 500 है.

ये संख्या 2012 में सरकार के आंकड़ों में दर्ज कराई गई कुल गाड़ियों का 51 प्रतिशत है. पेट्रोल पंप पर आधारित सर्वे को मानें तो 71 फीसद गाड़ियां पांच साल से कम पुरानी हैं. वहीं पिछले पांच सालों में 14 लाख 79 हजार गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. यानी कुल रजिस्टर्ड गाड़ियों में से केवल 45 फीसद ही इस्तेमाल हो रही हैं.

इस रिपोर्ट के आधार पर ये आकलन किया गया कि किसी और माध्यम से इस्तेमाल की जा रही गाड़ियों की संख्या का जो अंदाजा लगाया जाता है, वो कुछ ज्यादा ही है. क्योंकि इस में ये माना जाता है कि पिछले पांच साल में जितनी गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन कराया गया, वो सभी इस्तेमाल हो रही हैं, जो कि शायद सही आकलन नहीं है. दिनेश मोह ने 2015 की आईआईटी दिल्ली की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया.

'बेंचमार्किंग व्हीकल ऐंड पैसेंजर ट्रैवल कैरेक्टरेस्टिक्स इन दिल्ली फॉर ऑन रोड एमिसन एनालिसिस' नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दिल्ली में कारों और दोपहिया वाहनों की उम्र का औसत आंकड़ा ये बताता है कि शहर में ज्यादातर गाड़ियां पांच साल या इससे भी कम पुरानी हैं. दिल्ली की सड़कों पर चल रही कमोबेश सभी गाड़ियां 15 साल से कम ही पुरानी हैं. इसकी वजह है दिल्ली में बड़ी तादाद में गाड़ियों की बिक्री.

दिल्ली में डब्ल्यूआरआई के इंटीग्रेटेड अर्बन ट्रांसपोर्ट के निदेशक अमित भट्ट ने तो दिल्ली में चल रही गाड़ियों की उम्र का आकलन करने और परमिट खत्म होने के बाद भी चल रही गाड़ियों का पता लगाने के में जुटी ट्रैफिक पुलिस की चुनौतियां गिनाते हैं. भट्ट कहते हैं, 'अगर ट्रैफिक पुलिस इन गाड़ियों को नोटिस भेजती भी है, तो सवाल ये उठता है कि पुलिस इन गाड़ियों का करेगी क्या.' भट्ट के मुताबिक समस्या ये है कि भारत में पुरानी कारों के खात्मे की कोई व्यवस्था और नीति नहीं है. 2018 में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि गाड़ियों को नष्ट करने की नीति कमोबेश तैयार है. सड़क परिवहन और हाइवे मंत्रालय ने एक कॉन्सेप्ट नोट तैयार किया था. इसके तहत स्वैच्छिक रूप से नई गाड़ियों में निवेश के कार्यक्रम को विचार के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी के पास भेजा जाना था.

ये कमेटी पुरानी कारों को स्वैच्छिक रूप से नष्ट करने की व्यवस्था बनाने और करीब तीन करोड़ पुरानी गाड़ियों के खात्मे की नई व्यवस्था करने पर सिफारिशें देती. अब गाड़ियों को चलाने के नए परमिट जारी हो रहे हैं साथ ही पुराने परमिट भी चलन में हैं. परिवहन विभाग के अधिकारी गाड़ियों का औचक निरीक्षण करते हैं. उनके पास रजिस्टर्ड गाड़ियों की लिस्ट होती है. मसलन, दिल्ली के परिवहन विभाग के पास गाड़ियों से जुड़े कई आंकड़े हैं. इनमें पेट्रोल और डीजल दोनों गाड़ियां शामिल हैं, जिनके परमिट खत्म हो चुके हैं. अमित भट्ट सवाल उठाते हैं कि जांच के दौरान अधिकारी गाड़ियों की आरसी मांग कर उसकी पड़ताल कर सकते हैं. मगर वो इन गाड़ियों को चलने से कैसे रोकेंगे?

गाड़ियों का सालाना या दो-साल में एक बार रजिस्ट्रेशन होने की प्रक्रिया नहीं है. इसलिए जो गाड़ियां पुरानी पड़ जाती हैं, वो अक्सर छोटे शहरों और कस्बों में भी इस्तेमाल होती रहती हैं. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 14 भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण पर रिपोर्ट जारी की थी. यूपी के कानपुर, लखनऊ, आगरा और वाराणसी जैसे शहर इस लिस्ट में शामिल हैं. इन शहरों में दिल्ली से लाकर बड़ी तादाद में पुरानी गाड़ियां चलती रहती हैं. मेरठ में अंतरराज्यीय बस अड्डे के करीब ही एक किलोमीटर लंबा ऑटो के कल-पुर्जों का कबाड़खाना है. स्थानीय निवासी रूपक अग्रवाल ने फर्स्टपोस्ट को बताया था कि वहां गाड़ियों के पुर्जे हमेशा जलते रहते हैं. इनसे आने वाली बदबू और धुएं की वजह से जीना मुहाल होता है.

1988 का केंद्रीय मोटर व्हीकल एक्ट सार्वजनिक ठिकानों पर फेंकी गई या लावारिस गाड़ियां हटाने की जिम्मेदारी पुलिस पर डालता है. इस एक्ट से राज्य सरकारों को ये अधिकार मिलता है कि वो ये नियम लागू करे. हालांकि नियम के कहते हैं कि पुलिस इन गाड़ियों को ऐसी जगह ले जा सकती है, जो न लोगों के लिए खतरा हो, न उनकी राह में बाधा बने. इन नियमों से पुलिस की राह आसान नहीं होती, क्योंकि ये साफ ही नहीं कि पुलिस आखिर पुरानी गाड़ियों का करे तो क्या करे? हमारी टीम ने दिल्ली के मायापुरी में एक कबाड़ इलाके का दौरान किया था, जहां पर गाड़ियों में प्रदूषण नियंत्रित करने वाले पुर्जे यानी कनवर्टर यहां-वहां बिखरे हुए थे.

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

पुरानी कारों में आरएफआईडी यानी रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडी भी नहीं होती है, जिनसे उनसे जुड़े आंकड़े दर्ज होते रहें. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण के लिए केवल निजी गाड़ियां जिम्मेदार नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को अप्रैल 2001 में बसों की तादाद बढ़ाकर 10 हजार करने का निर्देश भी दिया था. अब ये टारगेट 11 हजार बसों का हो गया है. शहरी ट्रांसपोर्ट के विशेषज्ञ लघु पाराशर ने हमें बताया कि दिल्ली सरकार ने 2012 के बाद कोई नई बस नहीं खरीदी है. दिल्ली का मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट सिस्टम लोगों को लुभाने में पूरी तरह नाकाम रहा है. दिल्ली मेट्रो की वेबसाइट के मुताबिक 18 लोगों को ले जा सकने वाली कुल 149 लो-फ्लोर बसें ही वो चला रही है.

पाराशर कहते हैं, 'दिल्ली के 2021 के मास्टर प्लान के मुताबिक शहर में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली से ही 80 फीसद लोगों की आवाजही होनी चाहिए. अभी ये तादाद महज 45 प्रतिशत है. प्रदूषण का ठीकरा निजी गाड़ियों पर थोपने के बजाय, अधिकारियों को अपने सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुधारने की तरफ ध्यान देना चाहिए.' दिल्ली से दूर किसान जो आग लगा रहे हैं, दिल्ली की सड़कों पर चलने वाली गाड़ियां उस आग को बढ़ावा देती हैं.

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