केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी अभूतपूर्व जंग बुधवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. शीर्ष अदालत आलोक वर्मा को उनके अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर 26 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सहमत हो गई है.
शीघ्र सुनवाई के लिए मामलों के उल्लेख करने की परंपरा के बारे में कठोर मानक निर्धारित करने वाले प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने आलोक वर्मा की ओर से अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन के उल्लेख पर विचार किया. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी के मुखिया और विशेष निदेशक को अवकाश पर भेजने के साथ ही संवेदनशील मामलों की जांच कर रहे अनेक अधिकारियों को बदल दिया गया है, इसलिए इस मामले में शीघ्र सुनवाई की आवश्यकता है.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने अधिवक्ता से कहा, 'शुक्रवार' को सुनवाई होगी. इस अधिवक्ता ने इस तथ्य की ओर भी पीठ का ध्यान आकर्षित किया कि केंद्रीय जांच आयोग ने आज सवेरे छह बजे वर्मा को उनकी ड्यूटी से मुक्त करने का निर्णय लिया.
आलोक वर्मा ने बाद में इस मामले में न्यायालय की रजिस्ट्री में याचिका दायर की. उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र जांच एजेन्सी की आवश्यकता है क्योंकि ऐसे अवसर आ सकते हैं जब उच्च पदाधिकारियों की कुछ जांच वह दिशा नहीं ले जिसकी सरकार अपेक्षा करती हो.
उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा के 1986 बैच के अधिकारी और जांच ब्यूरो के संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को जांच एजेन्सी के मुखिया का प्रभार सौंपने के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के फैसले को भी चुनौती दी है.
आलोक कुमार वर्मा ने सरकार के निर्णय को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की
आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच चल रही खींचतान हाल ही में काफी बढ़ गई और इसी प्रक्रिया में अस्थाना और जांच ब्यूरो के पुलिस उपाधीक्षक देवेन्द्र कुमार सहित कई अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई. देवेंद्र कुमार इस समय कथित रिश्वत के मामले में जांच ब्यूरो की हिरासत में हैं.
यह प्राथमिकी 15 अक्टूबर के सतीश बाबू सना की लिखिल शिकायत के अधार पर दर्ज की गयी. आरोप है कि मामले के जांच अधिकारी कुमार उन्हें बार बार सीबीआई कार्यकाल बुलाकर क्लीन चिट देने की एवज में पांच करोड़ रुपए की रिश्वत देने के लिए बाध्य कर रहे थे.
अस्थाना और कुमार दोनों ने ही इस प्राथमिकी को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है. इस मामले में हाईकोर्ट ने मंगलवार के जांच ब्यूरो को अस्थाना के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था.
केंद्र, केंद्रीय सतर्कता आयोग और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और जांच ब्यूरो के निदेशक और विशेष निदेशक को अवकाश पर भेजने का फैसला लिया.
इसके बाद ही जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा ने सरकार के निर्णय को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की.
आलोक कुमार वर्मा ने अपनी याचिका में कहा कि केंद्र और केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा उन्हें जांच ब्यूरो के मुखिया के अधिकारों से वंचित करने का रातोंरात लिया गया निर्णय 'सरासर गैरकानूनी' है और ऐसे हस्तक्षेप से इस प्रमुख जांच संस्था की स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता का क्षरण होता है.
याचिका में केंद्रीय जांच ब्यूरो को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से अलग रखने पर जोर दिया गया है. याचिका में कहा गया है कि चूंकि जांच ब्यूरो इसी विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है और यह स्थिति जांच ब्यूरो के स्वतंत्र रूप से काम करने को गंभीर रूप से प्रभावित करती है.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि अस्थाना द्वारा ‘पैदा की गयी अड़चनों और उनकी प्रतिष्ठा पर सवाल उठाने के लिए साक्ष्य गढ़ने में उनकी भूमिका ने ही जांच ब्यूरो को उनके खिलाफ अलग से प्राथमिकी दर्ज करने के लिए बाध्य किया. अस्थाना ने इस प्राथमिकी को उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुये इसे निरस्त करने का अनुरोध किया है.
याचिका के अनुसार शीर्ष अदालत ने बार बार कहा है कि इस जांच एजेन्सी को सरकार के प्रभाव से मुक्त किया जाये और उसकी मौजूदा कार्रवाई सीबीआई को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से स्वतंत्र करने की गंभीर आवश्वकता पर जोर देती है.
आलोक वर्मा ने उन्हें अधिकारों से वंचित करने और अवकाश पर भेजने के सरकार के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया है ताकि इस तरह के बाहरी हस्तक्षेप की पुनरावृत्ति नहीं हो सके.
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