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सेना की कुर्बानी को सियासत के चश्मे से न देखें महबूबा मुफ्ती, सुप्रीम कोर्ट सब देख रहा है

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से न सिर्फ सेना का मनोबल बढ़ेगा बल्कि राष्ट्रहित में ऐसे फैसले की सख्त जरूरत भी है

Updated On: Feb 12, 2018 08:07 PM IST

Kinshuk Praval Kinshuk Praval

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सेना की कुर्बानी को सियासत के चश्मे से न देखें महबूबा मुफ्ती, सुप्रीम कोर्ट सब देख रहा है

शोपियां फायरिंग मामले में जम्मू-कश्मीर सरकार और पुलिस को सुप्रीम कोर्ट ने आईना दिखा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर सरकार से दो हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने शोपियां फायरिंग मामले में आर्मी मेजर आदित्य के खिलाफ दर्ज केस पर न सिर्फ स्टे लगाया बल्कि यह भी कहा कि मेजर आदित्य के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं की जाए.

कश्मीर और कश्मीरी के नाम पर सियासत कर रही महबूबा सरकार को ये जबरदस्त झटका है तो नसीहत भी. सेना जैसी सर्वोच्च संस्था पर तुच्छ राजनीति करने की कोशिश नाकाम हो गई. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से न सिर्फ सेना का मनोबल बढ़ेगा बल्कि राष्ट्रहित में ऐसे फैसले की सख्त जरूरत भी थी.

लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर जम्मू-कश्मीर की सियासत क्या चाहती है? क्या सेना के जवान भी डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित की तरह भीड़ की हैवानियत का शिकार बनते रहें? ये सवाल इसलिए क्योंकि शोपियां फायरिंग मामले में सेना के मेजर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर महबूबा सरकार ने अपनी ऐसी ही मंशा नुमाया की थी.

army and Kashmir

शोपियां फायरिंग की असली वजह

27 जनवरी को शोपियां के पास गनोवपोरा गांव से गुजरते वक्त सेना का काफिला सैकड़ों पत्थरबाजों की भीड़ में फंस गया था. पत्थरबाजों की भीड़ सेना के काफिले पर टूट पड़ी थी. उसी वक्त हिंसक भीड़ ने सेना के एक जेसीओ की राइफल छीन ली और उसे मारना शुरू कर दिया था.

जब सेना के पास कोई रास्ता नहीं बचा तो उसे मजबूरी में फायरिंग करनी पड़ी. फायरिंग के बाद ही भीड़ तितर-बितर हुई लेकिन दो लोगों की मौत भी हो गई. जिसके बाद महबूबा सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुलिस को आदेश देकर सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. मैजिस्ट्रेट जांच के आदेश भी दे दिए. लेकिन अब इस मामले में खुद महबूबा मुफ्ती की सरकार फंसती दिखाई दे रही है.

मेजर के पिता ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

दरअसल इस एफआईआर में मेजर आदित्य का नाम भी है. मेजर आदित्य के पिता लेफ्टिनेंट कर्नल कर्मवीर सिंह ने एफआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उन्होंने अपनी याचिका में जम्मू-कश्मीर के बदतर हालातों से जूझते सेना के जवानों की सुरक्षा की दलील रखी और एफआईआर रद्द करने की गुजारिश की थी. उनकी याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार को दो हफ्ते में जवाब देने का नोटिस दिया तो साथ ही सेना के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास की धारा में दर्ज हुई एफआईआर को रद्द करने का आदेश भी सुनाया.

India's CRPF personnel carry a coffin containing a body of their colleague, who was killed during a gun battle with suspected militants at CRPF training centre, in Lethpora in south Kashmir’s Pulwama district

बेहद मुश्किल हालात में निभाते हैं फर्ज

जम्मू-कश्मीर में सेना के जवान मुश्किल हालात में अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. उनके सामने छिपा हुआ दुश्मन है जो कभी भी घात लगा कर हमला कर देता है. उन आतंकियों के साथ घाटी का स्लीपर सेल एक्टिव है तो अलगाववादियों का खुला समर्थन भी मिला हुआ है. सीमा पार से आए आतंकियों को घाटी में पनाह देने वाले कई इलाके हैं तो एक सोच इसी दिशा में तीन दशकों से काम भी कर रही है.

हाल ही में हॉस्पिटल से फरार हुआ आतंकी अबु हंजोला ताजा मिसाल है. जो दो पुलिस वालों को मार कर फरार ही नहीं हुआ बल्कि अपने सुरक्षित ठिकाने तक पहुंच भी गया. ये तभी मुमकिन है जबकि लोकल सपोर्ट हासिल हो.

Photo Source: ANI

Photo Source: ANI

एक तरफ पाकिस्तान सीमा पार से लगातार फायरिंग कर रहा है तो दूसरी तरफ आतंकी हमले कर ललकार रहे हैं. पिछले शनिवार को सुंजवान में आर्मी कैंप में आतंकी हमला हुआ जिसमें सेना के पांच जवान शहीद हो गए. जवानों की कुर्बानी को महबूबा सरकार भले ही अनदेखा कर दे लेकिन देश नहीं कर सकता है. दो मोर्चों पर सेना देश के लिए ही डटी हुई है.

सेना के हालातों के समझने के लिए सियासत का चश्मा उतारना होगा. पत्थरबाजों की वकालत करने वाली सूबे की सरकार को डीएसपी अयूब पंडित की मौत के बाद तो कम से कम ये समझना होगा कि सेना कितने मुश्किल हालातों में अपना फर्ज निभा रही है. पत्थरबाजों की भीड़ में सेना से हिसाब बराबर करने वालों की तादाद होती है. यही भीड़ मौका मिलने पर किसी की भी जान ले लेती है. इसे न तो पुलिस की वर्दी का खौफ है और नही सेना की.

AyubPandith

अयूब पंडित

डीएसपी अयूब पंडित घाटी के साथ भी यही हुआ था. वो लोकल चेहरा थे. जम्मू-कश्मीर पुलिस का हिस्सा थे. लेकिन हिंसक भीड़ ने उन्हें बख्शा नहीं. श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में भीड़ अचानक डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित पर टूट पड़ी और उन्हें पीट पीट कर मार डाला गया. अयूब अपनी ड्यूटी पर तैनात थे. अगर अयूब अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से फायर करते तो शायद उनकी जान बच भी जाती.

अपनी हिफाजत के लिए क्यों न चलाए हथियार सेना?

अपनी सुरक्षा में हथियार चलाने का अधिकार पुलिस और सेना के पास होता है. उसके बावजूद यही कोशिश रहती है कि फायरिंग नहीं की जाए. लेकिन शोपियां के हालात बद से बदतर थे. जुनियर कमीशन ऑफिसर को भीड़ जान से मारने पर आमादा थी. सेना अपने जवान को न तो मरते देख सकती थी और न ही मरता छोड़कर जा सकती थी. सेना ने वही किया जो दुनियाभर की सेनाएं करती हैं और करती आई हैं.

इससे पहले सेना ने ऐसी ही पत्थरबाजों की हिंसक भीड़ से निपटने का तरीका निकाला था. उस वक्त भी सेना पर ही सवाल खड़े कर दिए गए थे. श्रीनगर में उपचुनाव के वक्त सैकड़ों पत्थरबाजों की भीड़ से बचने के लिए ही सेना को एक शख्स को जीप से बांध कर मानव ढाल के रुप में इस्तेमाल करना पडा था. सेना अगर ऐसा नहीं करती तो उस वक्त भी फायरिंग होती और कई जानें चली जातीं. शोपियां में भी सेना के सामने वैसे ही हालात थे और सेना के जवान ऐसे ही हालातों से हर रोज दो-चार होते हैं.

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सेना पर सवाल उठाने वाले कब सुधरेंगे?

सेना के जवानों पर सवाल उठाने वालों से पूछा जाए कि आखिर किसके लिए ये जवान जान की बाजी लगा रहे हैं?

अपने घरों और परिवारों से दूर ये जांबाज जिनकी जिंदगी का फैसला सिर्फ एक गोली किसी भी वक्त कर जाती है वो सिर्फ शहीद होने के लिए फौज में नहीं आए हैं. उनकी शहादत और जज्बे को सियासत के तराजू से तौलने वाले हुक्मरान अलगाववादियों की जुबान बोलकर कश्मीर में कभी अमन की बहाली नहीं चाहेंगे.

कश्मीर के उरी अटैक में मारे गए रवि पॉल का शव ले जाते भारतीय सैनिक (REUTERS)

कश्मीर के उरी अटैक में मारे गए रवि पॉल का शव ले जाते भारतीय सैनिक (REUTERS)

 

सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद अब सीएम महबूबा मुफ्ती ने एक नया विवादित बयान दिया है. वो चाहती हैं कि घाटी में अमन के लिए पाकिस्तान से बात की जाए. महबूबा ने ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कहा, ‘घाटी में खूनी-खेल को रोकने के लिए पाकिस्तान से बातचीत की जरूरत है,’

राज्य सरकार का ये सरेंडर और लोकल अवाम को खुश करने की कोशिश ही घाटी के हालातों को सामान्य बनाने में सबसे बड़ा रोड़ा है. अगर सेना कार्रवाई करे तो उसके जवानों के खिलाफ एफआईआर की जाती है और जब आतंकी हमले बढ़ते हैं तो पाकिस्तान से बातचीत की बात की जाती है. महबूबा ये भी बताएं कि पाकिस्तान से बातचीत में मुद्दा क्या होगा? हुकूमत ही अलगावादियों की जुबान बोलेगी तो आम जनता भी भीड़ के साथ जाने में ही अपना मुस्तकबिल देखेगी.

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मेजर आदित्य के पिता ने कोर्ट से ये भी गुजारिश की कि ऐसी गाइडलाइन्स जारी की जाए ताकि भविष्य में किसी जवान के ड्यूटी के दौरान लिए गए एक्शन को आधार बनाकर आपराधिक कार्रवाई न की जा सके. वाकई ये चिंता गंभीर है और इस पर अमल होना चाहिए. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का फैसला महबूबा सरकार को कड़ा संदेश है ताकि सेना के जवानों के खिलाफ पत्थरबाजों के हौसले ठंडे पड़ सकें.

सेना के मुताबिक किसी भी आपराधिक कार्रवाई के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी लेना जरूरी होता है. पिछले तकरीबन दो दशक में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 50 मामलों में सेना के खिलाफ केस चलाने की इजाजत मांगी है जिनमें से 47 मामलों में इसे ठुकरा दिया गया और तीन मामलों में कोई फैसला नहीं लिया गया.

जब भी कुछ ऐसा मामला होता है तो सेना खुद भी जांच बिठाती है. शोपिया फायरिंग मामले में भी सेना ने यही किया. इसके बावजूद महबूबा सरकार ने सेना की जांच रिपोर्ट आने के पहले ही एफआईआर के आदेश दे दिए. मुल्क की हिफाजत के लिए जान कुर्बान करने वाले जवानों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने पर यही कहा जा सकता है कि, ‘मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ, वो मेरे हक में क्या फैसला देगा.

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