देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/STs) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) के लिए आरक्षित पदों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई. कोर्ट ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में टीचर्स के लिए आरक्षित पदों में कटौती को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों की नियुक्तियों में दिए जाने वाले आरक्षण में विभाग को 'यूनिट माना जाएगा न कि विश्वविद्यालय को'.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया है, जिसमें शिक्षकों की विश्वविद्यालय स्तर पर नियुक्ति में आरक्षण देने संबंधी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के गाइडलाइंस को दरकिनार कर दिया गया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि शिक्षकों की नियुक्ति में अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण विभागीय-वार लागू होगा, न कि विश्वविद्यालय स्तर पर.
केंद्र सरकार ने सात अप्रैल 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी कि हाईकोर्ट का आदेश सही नहीं है. सरकार का कहना था कि आरक्षण के लिए विश्वविद्यालय को यूनिट माना जाना चाहिए, न कि विभाग को यूनिट मानना चाहिए. यूजीसी और एचआरडी मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार करने की गुजारिश की. लेकिन, जस्टिस उदय यू ललित की अध्यक्षता में बेंच ने इस याचिका को खारिज कर दिया.
बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को तार्किक करार दिया है. बेंच ने कहा कि एक विश्वविद्यालय में समान योग्यता, वेतनमान और स्थिति के आधार पर पदों के बंटवारा नहीं किया जा सकता. बेंच ने टिप्पणी की, 'भूगोल के प्रोफेसर के साथ एनाटॉमी के प्रोफेसर के पद की तुलना कैसे की जा सकती है? क्या आप सेब के साथ संतरे को क्लब कर सकते हैं?'
बता दें कि विश्वविद्यालयों में 2006 से आरक्षण का रोस्टर लागू है. इसके तहत विश्वविद्यालय को यूनिट मानकर ओबीसी और एससी-एसटी के लिए आरक्षण लागू किया जाता है. नियम के हिसाब से भर्तियों में 15 फीसदी आरक्षण अनुसूचित जाति, 7.5 फीसदी अनुसूचित जनजाति और 27 फीसदी आरक्षण ओबीसी के लिए तय है.
(साभार: न्यूज18)
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