सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिमों में तीन तलाक के जरिए दिए जाने वाले तलाक की प्रथा 'अमान्य', 'अवैध' और 'असंवैधानिक' है. शीर्ष अदालत ने 3:2 के मत से सुनाए गए फैसले में तीन तलाक को कुरान के मूल तत्व के खिलाफ बताया.
प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर जहां तीन तलाक की प्रथा पर छह माह के लिए रोक लगाकर सरकार को इस संबंध में नया कानून लेकर आने के लिए कहने के पक्ष में थे, वहीं जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस यू यू ललित ने इस प्रथा को संविधान का उल्लंघन करार दिया.
अलग-अलग धर्मों (हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी) के पांच जजों वाली सदस्यीय पीठ ने कहा कि तीन तलाक धार्मिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा नहीं है.
जस्टिस नरीमन ने कहा है कि ट्रिपल तलाक इस्लाम का अहम हिस्सा नहीं है और इसे आर्टिकल 25 की कोई प्रोटेक्शन नहीं मिलती. इसे खत्म किया जाए. तीन तलाक 1934 ऐक्ट का हिस्सा. इसकी संवैधानिकता का परीक्षण किया जा सकता है.
वहीं सीजेआई जेएस खेहर और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर ने कहा कि सरकार को इसमें दखल देना चाहिए और तलाक के लिए कानून बनाना चाहिए. तीन तलाक पर छह महीने की रोक लगाई जानी चाहिए. अगर सरकार छह महीने में कानून नहीं बनाती, तो रोक जारी रहेगा.
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