150 साल पुराने एडल्ट्री कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने एडल्ट्री को परिभाषित करने वाली आईपीसी की धारा 497 की वैधता खारिज करने को लेकर दायर की गई याचिका पर 23 अप्रैल 2018 को मामले की सुनवाई होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.
Five-judge bench of Supreme Court decriminalises adultery in a unanimous judgement pic.twitter.com/EzbAUL3dER
— ANI (@ANI) September 27, 2018
फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि लोकतंत्र आप और हम से है, यही लोकतंत्र की खूबसूरती है. पति और पत्नी के रिश्ते में कोई भी सर्वेसर्वा नहीं है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा- एडल्ट्री कोई अपराध नहीं हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 497 (एडल्ट्री) असंवैधानिक नहीं है जब तक की ये आत्महत्या की वजहों का कारण न बनें. कानूनी रूप से अगर किसी एक को वर्यता दी जाए या ऊपर रखा जाए तो यह बिल्कुल गलत है. समाज में महिलाओं को उचित दर्जा देने और तीन तलाक पर जस्टिस नरीमन की टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा एडल्ट्री शादी को तोड़ने का कारण हो सकती है लेकिन ये कोई अपराध नहीं है.
#WATCH: Petitioner's lawyer Kaleeswaram Raj explains the Supreme Court's verdict that declared section 497 (Adultery) of the IPC unconstitutional pic.twitter.com/8zYaWMzJcW
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मूल अधिकारों में महिलाओं का अधिकार भी शामिल है. समाज में एक व्यक्ति की अपनी गरिमा ज्यादा महत्वपूर्ण है. सिस्टम महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं कर सकता. महिलाओं से ये अपेक्षा हमेशा नहीं की जानी चाहिए कि वह समाज की हर बात के बारे में सोचें. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि एडल्ट्री तलाक का कारण हो सकती है लेकिन इसके लिए कई और उपाय भी हैं.
I welcome this judgement by Supreme Court. It was an outdated law which should have been removed long back. This is a law from British era. Although the British had done away with it long back, we were still stuck with it: Rekha Sharma, NCW chief on SC decriminalising adultery pic.twitter.com/mzXLl74hvQ
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इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस बात को माना था कि एडल्ट्री एक अपराध है और इसकी वजह से परिवार और विवाह दोनों ही बर्बाद हो रहे हैं. आईपीसी की धारा-497 (एडल्ट्री) के प्रावधान के तहत अभी तक सिर्फ पुरुषों को ही अपराधी माना जाता है जबकि इसमें महिलाओं को पीड़ित माना जाता था.
अब तक एडल्ट्री कानून के तहत किसी विवाहित महिला से उसके पति की मर्ज़ी के बिना संबंध बनाने वाले पुरुष को पांच साल की सज़ा हो सकती थी. दरअसल, एडल्ट्री यानी व्यभिचार की परिभाषा तय करने वाली आईपीसी की धारा 497 में सिर्फ पुरुषों के लिए सजा का प्रावधान करता था. महिलाओं पर कोई कार्रवाई नहीं होती थी. इसके चलते इस एडल्ट्री लॉ को खत्म किए जाने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.
याचिका कर्ता के वकील राजकलेश्वरम ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए कहा- ये एतिहासिक फैसला है. हम इससे बहुत खुश है और देशवासियों के भी इस पर खुशी होगी. एडल्ट्री पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एनसीडब्ल्यू की प्रमुख रेखा शर्मा ने कहा कि मैं इस फैसले का स्वागत करती हूं. ये बहुत पुराना कानून है जिसे पहले ही बदला जाना चाहिए था. आपको बता दें कि केरल के जोसफ शाइन की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया था कि 150 साल पुराना यह कानून मौजूदा दौर में बेमतलब है. ये उस समय का कानून है जब महिलाओं की स्थिति बहुत कमजोर थी. इसलिए, व्यभिचार यानी एडल्ट्री के मामलों में उन्हें पीड़ित का दर्जा दे दिया गया.
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