जम्मू-कश्मीर में पुलवामा के अवंतीपोरा इलाके में रविवार को सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) के ट्रेनिंग सेंटर पर हुए फिदायीन हमले ने सुरक्षाबलों और खुफिया एजेंसियों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. इस आतंकी हमले में 5 जवान शहीद हो गए, जबकि तीन घायल हुए हैं. वहीं सुरक्षाबलों ने 3 आतंकियों को ढेर कर दिया. इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है. कश्मीर में जैश का फिर से सक्रिय होना घाटी के लिए अशुभ संकेत है. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि जैश जल्द ही हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा से दक्षिण कश्मीर का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकता है.
अवंतीपोरा हमले में लोगों को सबसे ज्यादा इस बात ने चौंकाया है कि, तीन फिदायीन हमलावरों में से 2 स्थानीय कश्मीरी युवक थे. इससे पहले जैश-ए-मोहम्मद की तरफ से कराए गए सभी फिदायीन हमलों में पाकिस्तानी आतंकी ही शामिल होते थे. साथ ही जैश की तरफ से ज्यादातर हमले एलओसी पर किए गए थे. लेकिन अब जैश ने न सिर्फ कश्मीरी युवकों को फिदायीन बनाना शुरू कर दिया है, बल्कि रिहायशी इलाकों और सार्वजनिक जगहों पर भी हमले शुरू कर दिए हैं.
पहली बार जैश में शामिल हुए हैं स्थानीय युवा
अतीत में जैश के फिदायीन हमलावर कश्मीर में सिर्फ सुरक्षाबलों को ही निशाना बनाया करते थे. लेकिन पिछले 14 साल में ऐसा पहली बार हुआ है कि, जैश के फिदायीन दस्ते में कश्मीर के स्थानीय युवक शामिल हुए हैं. इन युवकों को सुसाइडल मिशन के लिए बाकायदा ट्रेनिंग दी गई है. अवंतीपोरा में हमला करने वाले आतंकियों के पास भारी मात्रा में हथियार थे. सीआरपीएफ के ट्रेनिंग सेंटर पर हमला करते वक्त आतंकी ऑटोमेटिक हथियारों का इस्तेमाल करते हुए गोलियां बरसा रहे थे, साथ ही ग्रेनेड भी फेंक रहे थे.
ये भी पढ़ें: अलविदा 2017: इस साल में सबसे ज्यादा 117 युवा आतंकी संगठन में हुए शामिल
चिंता की एक बात यह और है कि, बीते दो साल में दक्षिणी कश्मीर में आतंकवाद में शामिल होने वाले स्थानीय युवकों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है. कई पढ़े-लिखे और अच्छे घरों के युवक भी बहक कर आतंक के रास्ते पर निकल पड़े हैं. दक्षिण कश्मीर के युवकों के फिदायीन बनने की घटना को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. ऐसी आशंका है कि, अवंतीपोरा के हमलावरों के नक्शे कदम पर चलकर कई और स्थानीय युवक जैश के आत्मघाती दस्ते का हिस्सा बन सकते हैं.
अवंतीपोरा आतंकी हमले के लिए आतंकियों ने यकीनन पुख्ता रणनीति बनाई थी. ऐसा लगता है कि, हमले के लिए कई हफ्तों तक प्लानिंग की गई. यही वजह है कि, सभी आतंकी लेथीपोरा गांव में ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरे और तगड़े सुरक्षा इंतजाम वाले सीआरपीएफ के कमांडो ट्रेनिंग सेंटर में घुसने में कामयाब हो गए. जम्मू-कश्मीर के डीजीपी एसपी वैद्य ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि, आतंकी किसी बड़े और महत्वपूर्ण सरकारी ठिकाने या दफ्तर को निशाना बनाने की फिराक में थे, जिसमें वो कामयाब भी हो गए.
पुलिस वाले का बेटा भी बन गया आतंकी
अवंतीपोरा में हमला करने वाले तीन फिदायीन हमलावरों में एक 16 साल का युवक भी शामिल था. फरदीन अहमद खांडे नाम का यह युवक 12वीं कक्षा का छात्र था. फरदीन पुलवामा जिले के त्राल इलाके का रहने वाला था. दिलचस्प बात यह है, कि फरदीन के पिता जम्मू-कश्मीर पुलिस में हैं. सोमवार को फरदीन का अंतिम संस्कार किया गया, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए. वहीं दूसरे आतंकी का नाम मंजूर अहमद बाबा है, जो पुलवामा के द्रबगाम इलाके का रहने वाला था. फिलहाल यह पता नहीं चल पाया है कि मंजूर आतंकी गतिविधियों में कब शामिल हुआ. वहीं अगर फरदीन की बात की जाए तो, वह हाल ही में आतंक के रास्ते पर उतरा था. खुद फरदीन के परिवार ने इस बात की तस्दीक की है.
ये भी पढ़ें: कश्मीर 2017: साइडलाइन हो चुकी अलगाववादी राजनीति का भविष्य क्या है?
जम्मू-कश्मीर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने सोमवार को फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि, 'अब कश्मीर घाटी की सड़कों और गलियों में हमें बच्चों की भी तलाशी लेना पड़ेगी, किसे पता, कौन बच्चा अपने जिस्म पर बम बांधे घूम रहा है.' उन्होंने आगे कहा, 'समस्या यह है कि, हम किसी इमारत के अंदर बैठे आतंकी को तो ढेर कर सकते हैं, लेकिन उस व्यक्ति का क्या करें, जो खुद को ही मारना चाहता है?'
पिछले कई सालों से ठंडी पड़ी थीं जैश की गतिविधियां
सुरक्षाबलों की नजर में जैश-ए-मोहम्मद अबतक एक ऐसा आतंकी समूह था, जिसके सदस्य सीमापार से आसानी के साथ घुसपैठ करने में कामयाब हो जाते थे. वहीं दूसरी तरफ जैश में सुरक्षाबलों के मुखबिरों की एंट्री भी आसान मानी जाती थी. मुखबिरों की एंट्री कराकर ही सुरक्षाबलों ने जैश की कमर तोड़ रखी थी. कई सालों से कश्मीर में जैश की गतिविधियां लगभग ठंडी पड़ी हुई थीं. आतंकी संगठन जैश के गठन को 14 साल हो चुके हैं. इस दौरान उसे साल 2013 में सबसे बुरे दिन देखना पड़े. सुरक्षाबलों की चौकसी और मुखबिरों की पुख्ता सूचनाओं की बदौलत जैश के सभी मंसूबे धरे के धरे रह गए. 2013 के मध्य में तो जैश विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया था.
ये भी पढ़ें: कश्मीर: ऑपरेशन 'ऑल आउट' सफल लेकिन क्या घाटी का जिम्मा बस सेना का है?
पिछले हफ्ते सुरक्षाबलों ने जैश के सबसे वांछित कमांडरों में से एक नूर मुहम्मद तंत्री उर्फ नूर त्राली को पंपोर के संबूरा इलाके में मुठभेड़ के दौरान ढेर कर दिया था. 47 साल का नूर मुहम्मद जैश का मास्टर रिक्रूटर (युवकों को संगठन में शामिल करवाने वाला) था. नूर मुहम्मद आतंकवाद के एक मामले में साल 2000 में पैरोल पर छूटा था, और तभी से फरार था. नूर मुहम्मद जब से आतंकवाद के रास्ते पर उतरा था, तभी से वह युवाओं को जैश में भर्ती होने के लिए लुभाता आ रहा था. स्थानीय कश्मीरी युवकों को जैश में भर्ती कराने में नूर मुहम्मद का ही हाथ था. अवंतीपोरा हमले को त्राली की हत्या से जोड़कर देखा जा रहा है. सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि, त्राली की हत्या से तिलमिलाए आतंकियों ने अवंतीपोरा ट्रेनिंग सेंटर को निशाना बनाया.
दो साल पहले कश्मीर में जैश की गतिविधियां लगभग बंद थीं. उसका कोई भी कैडर काम नहीं कर रहा था. यही वजह है कि, जम्मू-कश्मीर पुलिस के पास भी संगठन के सदस्यों और उनकी संख्या के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पिछले साल फर्स्टपोस्ट को बताया था कि, कश्मीर में जैश के आतंकियों की संख्या 10 से 15 के बीच हो सकती है. तब से लेकर अबतक कश्मीर में जैश के करीब दो दर्जन आतंकी मारे जा चुके हैं, लेकिन संगठन दिन ब दिन मजबूत होता जा रहा है.
साल 2017 में मारे गए कुल 206 आतंकी
जैश ए मोहम्मद काफी अरसे बाद सुरक्षाबलों के रडार पर पिछली साल यानी 2017 में आया. पिछली साल पुलवामा डिस्ट्रिक लाइंस पर जैश के हमले में पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के 8 जवान शहीद हो गए थे. इस हमले में 3 आतंकी भी मारे गए थे. इसके बाद आतंकियों ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर बीएसएफ कैंप पर भी हमला किया था, जिसमें बीएसएफ के एक अधिकारी की जान चली गई थी, वहीं 3 आतंकी मारे गए थे.
जैश में पदोन्नति का हकदार बनने के लिए घुसपैठ में दक्षता एक महत्वपूर्ण शर्त मानी जाती है. संगठन के प्रमुख मसूद अजहर ने घाटी में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए अपने भतीजे तल्हा राशिद को भेजा था. लेकिन सुरक्षाबलों ने तल्हा को पुलवामा में एक मुठभेड़ में मार गिराया. जम्मू-कश्मीर के डीजीपी वैद्य ने रविवार को बताया कि साल 2017 में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में कुल 206 आतंकी मारे गए, इनमें 85 आतंकी स्थानीय थे और 121 विदेशी.
डीजीपी वैद्य के मुताबिक, घाटी में आतंकवाद में शामिल होने वाले स्थानीय युवाओं की संख्या में गिरावट आ रही है. लेकिन वह इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि, आतंकियों के खिलाफ सुरक्षाबलों की व्यापक कार्रवाई के बावजूद जैश घाटी में फिर से पैर जमाने में कैसे कामयाब हो गया. अब स्थानीय युवकों के जैश और बाकी के आतंकी संगठनों में शामिल होने से स्थिति और गंभीर हो गई है. अवंतीपोरा के कमांडो ट्रेनिंग सेंटर पर हुए हमले में शामिल तीन आतंकियों में से दो स्थानीय कश्मीरी थे. इस एक घटना ने कश्मीर के तथाकथित नवयुगीन आतंकवाद में नया अध्याय जोड़ दिया है.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.