छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुए नक्सली हमले के बाद अब सवाल एक बार फिर से खड़े होने लगे हैं. इस बार सवाल सरकार की नीति पर भी खड़े हो रहे हैं और सरकार की इच्छाशक्ति पर भी.
सवाल इसलिए भी खड़े हो रहे हैं कि बार-बार कड़े कदम उठाने की बात होती है. कहा जाता है कि हर हाल में हम नक्सलियों के मंसूबो पर पानी फेर देंगे लेकिन, इन तमाम दावों और वादों के बावजूद अबतक कुछ खास नहीं हो पा रहा है.
बीएसफ के पूर्व डीजी प्रकाश सिंह फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में कहते हैं कि पहले सरकार को अपनी नीति को ठीक करना होगा. अभी तक सीआरपीएफ के कार्यकारी डीजी के भरोसे ही काम चलाने के सरकार के फैसले पर प्रकाश सिंह सवाल खड़ा कर रहे हैं.
अब सरकार की तरफ से इस बात का दावा किया जा रहा है कि हर हाल में और कड़े कदम उठाए जाएंगे और जरूरत पड़ने पर नक्सल विरोधी रणनीति की समीक्षा भी की जाएगी.
सरकारी दिलासों से बनेगी बात?
सुकमा में नक्सली हमले के अगले ही दिन गृह-मंत्री राजनाथ सिंह ने छत्तीसगढ़ का दौरा करने के बाद नक्सलियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात की है.
राजनाथ सिंह ने कहा है कि नक्सली हताशा में इस तरह का कदम उठा रहे हैं. लेकिन, किसी भी सूरत में जवानों की शहादत बेकार नहीं जाएगी.
गृहमंत्री ने इस बात का दावा किया है कि केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से किए गए संयुक्त अभियान के चलते इस इलाके में नक्सलियों के खिलाफ बेहतर काम किया गया है. लेकिन, विकास काम से नक्सली बौखलाकर इस तरह का कदम उठा रहे हैं.
गृहमंत्री ने 8 मई को दिल्ली में एंटी नक्सल एक्टिविटी पर रणनीति के लिए एक बैठक बुलाई है. जिसमें फिर से नक्सल के खिलाफ अभियान की समीक्षा की जाएगी. इस मीटिंग में नक्सल प्रभावित राज्यों के अधिकारियों समेत गृह मंत्रालय और खुफिया विभाग के अधिकारी भी मौजूद रहेंगे.
लेकिन, सरकार के इन तमाम दावों के बाद भी सवाल यही उठ रहा है कि सरकार का अगला कदम क्या होगा. सरकार की तरफ से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़क बनाने से लेकर विकास के हर कदम उठाने की कोशिश हो रही है. लेकिन, यह कोशिश नक्सलियों को रास नहीं आ रही है. इसीलिए सड़क निर्माण के काम को नक्सली रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
सुकमा में बुर्कापाल से दोरनापाल के बीच की सड़क बनाने के काम में जिस तरह से सरकार लगी है, उससे नक्सली परेशान हैं. सीआरपीएफ के सभी जवान भी इन्हीं इलाकों में सड़क बनाने के काम में लगे कर्मचारियों को रक्षा कवच देने के काम में लगे हुए थे.
लेकिन, अब नक्सलियों के हमले के बाद सरकार के उपर फिर से अपनी रणनीति बदलने को लेकर दबाव है. माना यही जा रहा है कि सरकार की तरफ से एक बार फिर से नक्सलियों के खिलाफ सरकार बड़ा अभियान शुरू कर सकती है.
नक्सल विरोधी अभियान में बार-बार सेना का सहयोग
यूपीए सरकार के कार्यकाल में ऑपरेशन ग्रीन हंट नाम से नक्सलियों के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया गया था. सरकार की तरफ से एक बार फिर से इसी तरह के किसी बड़े अभियान को चलाए जाने की संभावना शुरू हो सकती है.
नक्सल विरोधी अभियान में बार-बार सेना से भी सहयोग लेने की बात भी उठती रही है. हालांकि, इस बात को लेकर पहले से ही कुछ मतभेद भी रहे हैं.
लेकिन, कुछ जानकार इस बात पर जोर देते हैं कि भले ही सेना का सीधे नक्सल विरोधी अभियान में इस्तेमाल न हो. लेकिन, नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके में अलग एक आर्मी बेस तैयार किया जाता है तो इससे नक्सलियों के मनोबल पर विपरीत असर पड़ेगा.
लेकिन, अब सबकुछ सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा. देखना है सरकार केवल बैठक करने की रस्मअदायगी करती है या फिर कुछ ठोस एक्शन करती है.
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