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'मेरे भाई जैसा हमने तुम्हारे साथ किया, किसी और के साथ ना करें'

कुछ लोग शायद ये भी कहेंगे कि आत्महत्या कायरता है पर भीम राजू तुम कायर नहीं हो सकते...

Updated On: Apr 16, 2017 12:03 PM IST

Nikhil Sachan

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'मेरे भाई जैसा हमने तुम्हारे साथ किया, किसी और के साथ ना करें'

प्यारे भीम राजू,

6 अप्रैल को तुमने खुद को आग लगाकर, IIT BHU के रामानुजम हॉस्टल के तीसरे माले से कूद कर, आत्महत्या कर ली. तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारे दोस्त और जानने वाले कयास लगा रहे हैं कि तुम्हारी मौत का सेमेस्टर एग्जाम में खराब नंबर से सीधा नाता है. बताया जाता है कि तुम डिप्रेस्ड थे.

मैं हैरान हूं, सोच रहा हूं कि IIT BHU, जिसे मैं जन्नत मानता था, वहां कोई दुखी या डिप्रेस्ड कैसे हो सकता है?

मालूम होता है डिप्रेशन इस हद तक बढ़ गया है कि वो जन्नत तक पहुंच चुका है!

BHU

कुछ लोग शायद ये भी कहेंगे कि आत्महत्या कायरता है पर भीम राजू तुम कायर नहीं हो सकते. एक कायर आदमी पूरे शरीर को जला नहीं सकता. मुझे मालूम है कि महज गर्म भाप से जल जाना ही कितना कष्ट देता है. एक बार मेरा हाथ तवे से छू गया था और मैं चीख पड़ा था और फिर तुम तो पूरा जल गए. उस पर तुम तीसरे माले से भी कूद गए.

शायद तुम ये पक्का करना चाहते होगे कि तुम कहीं बच न जाओ और तुम उन लोगों के बीच न रहो जो तुम्हें समझते नहीं है.

तुम कायर तो कतई नहीं हो सकते और हम तुम्हें किस अधिकार से गलत कहें, गलती तो शायद हमसे हो गई. बेहतर होता कि हम तुम्हारे पास आते, तुमसे बात करते, तुम्हें समझते. तुम्हारे कंधे पर हंसते हुए धौल जमाते, तुम्हें गले लगाते. तुम्हें ये कह कर इगनोर नहीं मार देते कि तुम तो चुपचाप, अकेले-अकेले रहते हो.

हम ही नहीं समझ पाए कि ‘डिप्रेशन' ‘हौआ’ नहीं है, ये किसी को भी हो सकता है, और जिन्हें हो जाता है वो लोग पागल से नहीं होते.

राजू हम ही नहीं समझ पाए कि हमारे देश में हर घंटे में कोई न कोई स्टूडेंट सुसाइड जरूर करता है. अभी हाल ही में तुम्हारी मौत के दो-एक दिन बाद अरुण भारद्वाज ने एक होटल से छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली. उसने तो खुद की मौत को फेसबुक पर लाइव स्ट्रीम भी किया. हम ही नहीं समझ पाए कि अगर पिछले पांच सालों में चालीस हजार स्टूडेंट्स ने सुसाइड कर लिया तो उसकी वजहें क्या-क्या रही होंगी.

Depression

हम भी तो उन्हें ये समझाने में चूक गए कि वो ख़ुद एक ग़लती नहीं थे, बल्कि वो तो कुछ बिलियन सालों के एवोल्यूशन के परिणाम थे. वो दनिया की सबसे समझदार स्पीसीज़ का हिस्सा थे. हमने बस उन पर अपनी उम्मीदें थोप दीं. हम चाहते थे कि वो खुद को भीड़ से अलग साबित करें लेकिन हमने उन्हें वही करने भेजा जो एक भीड़ करती है - दसवीं पास करना, बारहवीं पास करना, डॉक्टर-इंजीनियर हो जाने की तैयारी करना, फिर ज़िन्दगी भर किसी सड़ी-गली नौकरी में फंसकर बाकी जिन्दगी भर ईएमआई भरना.

यार हम लोग कौन होते हैं तुमको तुम्हारी काबिलियत का सर्टिफिकेट बांटने वाले. एक सेमेस्टर एग्जाम खराब हो गया तो कौन सी बड़ी बात हो गई. तुम एक बारगी ये तो सोचते कि हम इस लायक थे ही नहीं कि तुमको जज करते. तुम कितनी बार दुखी मन से उदास चेहरा लिए हमारे सामने से निकल जाते होगे लेकिन हमने तुम्हारी उदासी को नजरअंदाज कर दिया होगा. क्योंकि उसे हम रोज देखते-देखते उसके आदी हो गए होंगे. जैसे हम हर उदास और डिप्रेस्ड इंसान के साथ करते हैं.

तुम्हें पता है हमारे देश में मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स की 87 प्रतिशत कमी है? इतने बड़े देश में सिर्फ 3800 साइकियाट्रिस्ट हैं. वो भी तब जब दुनिया भर में 15 से 29 साल के यूथ के सुसाइड के मामलों में भारत दुनिया के सबसे अलार्मिंग देशों में से एक है. हमारे यहां एक मिलियन लोगों के बीच बस तीन साइकियाट्रिस्ट हैं. WHO नॉर्म्स के हिसाब से हमारे यहाँ 66200 साइकियाट्रिस्ट की कमी है.

doctor

काश हम समझ पाते कि डिप्रेशन में होना क्या होता है. काश हम इतनी गंभीर बीमारी को कम से कम इतनी गंभीरता से तो लेते जितना हम ज़ुकाम-बुखार जैसी मामूली बीमारी को लेते हैं. लेकिन हम तो उतना भी नहीं करते. मेंटल हेल्थ पर खर्च के मामले में हम बांग्लादेश से भी पीछे हैं और अगर हमारे घर में या दोस्तों में कोई डिप्रेशन का शिकार हो रहा होता है तो हम उसे डांट देते हैं. चिल्ला पड़ते हैं कि, “ये बेवकूफी है. तुम्हें रोने का शौक है क्या".

हम उसे कभी प्यार से गले लगाकर ये नहीं समझा पाते कि हम उसके साथ हैं. और भले ही जो भी हो जाए हम हमेशा उसके साथ रहेंगे.

प्यारे भीम राजू, हमें माफ करना. हम कोशिश करेंगे कि हम ‘डिप्रेशन' को समझें.

ईश्वर तुम्हें जन्नत बख्शे. तुम दुबारा फिर आना. लेकिन यार एक वायदा करो. अबकी बार हम तुम्हें नहीं समझ पाएं तो कम से तुम ही जोर से गले लगाकर हमें बता देना कि तुम तकलीफ में हो. ये जिन्दगी बड़ी प्यारी होती है यार. इसे ऐसे ही नहीं खत्म करते.

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