आम यात्री अगर रेल के डिब्बे में ही खुद को सुरक्षित नहीं महसूस करे तो फिर बाकी यात्रा किसके भरोसे करें? रेल के डिब्बे में पहले यात्रा प्रभु भरोसे थी तो अब जिंदगी राम भरोसे?
रोजाना सवा करोड़ लोगों को उनकी मंजिल पर पहुंचाने वाले दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में शुमार भारतीय रेल में अब हादसे पटरी के ऊपर भी होते हैं तो डिब्बे के भीतर भी. रेल के पटरी से नीचे उतरने वाले हादसों में कमी लाई जा सकती है लेकिन रेल के डिब्बे के भीतर होने वाले हादसे को रोकने के लिए भारतीय रेल के पास सुरक्षा का स्थाई बंदोबस्त क्या है?
क्या जीआरपी और आरपीएफ के बावजूद ट्रेन में बदमाशों के हौसले इतने बुलंद रहेंगे कि वो लोगों को चलती ट्रेन से फेंकते रहेंगे? ये सारे सवाल इसलिए हैं क्योंकि चलती ट्रेन से बाहर फेंकने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. बल्लभगढ़ में जुनैद हत्याकांड की दुखद तस्वीर अभी जेहन से उतरी भी नहीं थी कि एक दूसरी वारदात ने दिल दहला कर रख दिया.इस बार दो लोगों को चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया.
नई दिल्ली–आगरा कैंट इंटरसिटी ट्रेन में बल्लभगढ़ के पास कुछ लोगों ने देवेंद्र और ललित कुमार नाम के दो युवकों को चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया. देवेंद्र की मौके पर ही मौत हो गई जबकि ललित गंभीर हालत में एम्स मे भर्ती है. पुलिस की जांच में पता चला कि विवाद एक बर्थ को लेकर हुआ और उसके बाद कहासुनी ने झगड़े का रूप ले लिया. बदमाशों ने बल्लभगढ़ के पास असावटी स्टेशन पहुंचने से पहले दोनों युवकों को चलती ट्रेन से फेंक दिया.
रेल के भीतर इतनी बड़ी घटना हो गई लेकिन जीआरपी या फिर आरपीएफ को पता तक नहीं चला. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि फिर किस कोच में कौन सुरक्षित है?
सामान चोरी होना तो आम बात, जान की भी गारंटी नहीं
साजो-सामान की चोरी होना या फिर चेन खींचने जैसी घटनाएं आम बात हैं लेकिन जब सिर्फ सीट जैसी छोटी सी बात जानलेवा बन जाए तब रेलवे सुरक्षाबल की मौजूदगी के क्या मायने हैं? यात्रियों की सुरक्षा का दावा करने वाली भारतीय रेल आखिर किस तरह की सुरक्षा का वादा कर रही है?
जुनैद की भी हत्या चलती ट्रेन में हुई. वहां भी जांच में पता चला कि सीट को लेकर विवाद हत्या तक पहुंच गया. बड़ा सवाल ये है कि चलती ट्रेन में झगड़ा हो या फिर लूट हो तब रेलवे की सुरक्षा का जिम्मा उठाने वाली जीआरपी और आरपीएफ कहां गायब रहती है?
चलती ट्रेन में हत्या या फिर लूटपाट की खबरें भारतीय रेल की सुरक्षा के दावों पर गंभीर सवाल खड़ा करती हैं. आखिर रेलवे सुरक्षा बल की तैनाती के बावजूद ऐसी वारदातों में कमी क्यों नहीं आ रही?
पश्चिम बंगाल के 24 परगना में बदमाशों ने छेड़छाड़ का विरोध करने पर एक महिला को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया था. महिला को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया. अगर उस वक्त मौके पर आरपीएफ या फिर जीआरपी के जवान होते तो ये वारदात नहीं होती.
चंडीगढ़ में तो बदमाशों ने दिव्यांग कोच से ही एक दिव्यांग को चलती ट्रेन से फेंक दिया. पीड़ित दिव्यांग केरल संपर्क क्रांति एक्सप्रेस में सवार हुए थे जहां तीन युवकों से उनकी बहस हुई. युवकों को जब उन्होंने सिगरेट पीने के लिए मना किया तो उन्हें चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया.
किराया तो बढ़ाया पर सुरक्षा कहां हैं?
भारतीय रेल कभी हादसों से दहलती है तो उस रेल में यात्रा करने वाला मुसाफिर डिब्बे के भीतर उनके साथ होने वाली वारदातों से. सेफ्टी के नाम पर किराए में लगातार बढ़ोतरी होती आई है. लेकिन रेल दुर्घटनाएं और रेल में होने वाली वारदातों में कमी नहीं आई है. जुनैद, देवेंद्र और ललित जैसे बेगुनाह रेल में मुट्ठी भर लोगों के हमले का शिकार हो जाते हैं और रेलवे से तनख्वाह, पेंशन और हथियार लेने वाले सुरक्षा बल वारदात के मौके पर नदारद पाए जाते हैं.
रेलवे में यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के मकसद से रेल मंत्रालय जीआरपी का नियंत्रण अपने हाथों में लेना चाहता है. लेकिन कुछ राज्य सरकारों का इस मामले में विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है.
रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने लोकसभा में बताया था कि यात्रियों और उनके साजो सामान की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिये रेलवे ने कई कदम उठाए हैं. उसी कड़ी में वो जीआरपी और आरपीएफ का एकीकरण भी करना चाहते हैं.
रेलमंत्री का ये कदम रेलवे की सुरक्षा में मील का पत्थर साबित हो सकता है क्योंकि जीआरपी पर राज्य सरकारों का नियंत्रण होता है. जिससे कई मामलों में सरकारी लेटलतीफी और उदासीनता का खामियाजा रेलवे को भुगतना पड़ जाता है. खास बात ये है कि जीआरपी कर्मचारियों का पचास फीसदी वेतन रेल मंत्रालय वहन करता है इसके बावजूद उसके पास जीआरपी का अधिकार नहीं होता है. ट्रेन में यात्रियों की सुरक्षा या वारदात से जुड़े मामले दिल्ली-एनसीआर की पुलिस के बीच सीमा विवाद की तरह बंट कर रह जाते हैं.
सुरक्षा-सुविधाएं नदारद और बातें बुलेट ट्रेन की
आज बुलेट ट्रेन का इंतजार है तो दिल्ली-आगरा रूट पर सेमी हाईस्पीड ट्रेन का ट्रायल किया गया है. रेल मंत्री सुरक्षित और सुविधाजनक रेल यात्रा देने का वादा कर रहे हैं. ऐसे में सुरक्षा को लेकर सरकार को ठोस कदम उठाने पड़ेंगे ताकि यात्री भारतीय रेल को संदेह की नजर से न देखें.
आज रेल में बुनियादी जरूरतों से ज्यादा बड़ा सवाल जिंदगी का हो गया है. दुर्घटनाएं अप्रत्याशित होती हैं जिस पर किसी का जोर नहीं होता लेकिन डिब्बे के भीतर छेड़छाड़, लूटपाट या फिर हत्या जैसी वारदातों पर तो अंकुश लगाया ही जा सकता है.
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