बीते दो जाड़ों से दिल्ली को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां लग रही हैं कि यहां की हवा जहरीली है. राजनयिकों की नियुक्ति दिल्ली में हो जाय तो कई देश इसे उनके लिए ‘पनिशमेंट पोस्टिंग’(दंडस्वरूप कहीं नियुक्त किए जाने की जगह) का नाम देते हैं. मौजूदा साल भी कुछ अलग नहीं साबित होने वाला क्योंकि हवा की गुणवत्ता अभी ही बहुत गिरावट पर है और इस बात को लेकर खबरें बन रही हैं.
अक्सर आरोप ये लगता है कि जाड़े के दिनों में धुएं और धुंध का से भरा स्मॉग दिल्ली में बढ़ जाता है तो इसके जिम्मेदार नजदीकी राज्य हैं क्योंकि यहां पराली जलाई जाती है. पड़ोस के राज्य पंजाब में धान के खेतों में हर साल आग लगाई जाती है क्योंकि इस सूबे में सरकार भूजल के संरक्षण की कोशिशों में लगी है.
यह मसला दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच विवाद का विषय बन चुका है. दोनों के बीच ट्विटर पर इस मसले पर नोंकझोंक भी हुई है.
इस साल पंजाब में 30 लाख हेक्टेयर से ज्यादा के रकबे में धान की खेती हुई है. पिछले साल तकरीबन 29 लाख हेक्टेयर रकबे में धान की खेती हुई थी. और, सरकार का आकलन है कि पंजाब में सालाना 1 करोड़ 50 लाख टन पराली जलायी जाती है.
पंजाब में धान की खेती की मुश्किल
धान की फसल में पानी की खपत ज्यादा होती है. साल 2008 तक पंजाब में किसान किसी भी वक्त धान की खेती कर सकते थे. खेत को साफ करने के लिए कई किसान एक बड़ा गड्ढा बनाते थे. उसमें धान की पुआल भर दी जाती है और इस तरह पुआल से खाद तैयार किया जाता था. उस वक्त पंजाब में अप्रवासी मजदूर भी मजदूरी की सस्ती दर पर मिल जाते थे और पुआल हटाने में ये अप्रवासी मजदूर मदद करते थे.
लेकिन भूजल के संरक्षण के मकसद से सूबे की सरकार ने पंजाब प्रिजर्वेशन ऑफ सब-स्वॉयल वाटर एक्ट 2009 के अंतर्गत एक अधिसूचना जारी की. अधिसूचना में कहा गया कि 10 जून से पहले धान की बुआई-रोपाई नहीं की जा सकती.
बाद के वक्त में, एक अधिसूचना 2014 में आई और इसमें तारीख बढ़ाकर 15 जून कर दी गई. इस साल तारीख आगे और खिसकाकर 20 जून कर दी गई है.
फसल की बुआई-रोपाई देर से होने के कारण उसकी कटाई में भी देरी होती है और ऐसे में किसानों के पास अगली अहम फसल गेहूं की बुआई के लिए वक्त कम होता है.
खेत में धान की फसल 20 जून के बाद लगने के कारण उसकी कटाई अक्टूबर के मध्य में हो पाती है जबकि गेहूं की बुआई का समय अक्टूबर के आखिर से नवंबर के महीने तक होता है. इस कारण धान की पराली जल्दी से हटाने की जरुरत के मद्देनजर किसान उसे जला डालना ठीक समझते हैं. इस मुश्किल ने बीते दशक में और ज्यादा कठिन रूप लिया है.
एक विचार यह है कि धान की पराली जलानी ही है तो ऐसे जलाई जाए कि उससे बिजली पैदा हो. लेकिन यह विचार कभी परवान ना चढ़ सका क्योंकि फिलहाल ऐसे पावर-हाऊस लगा पाना तकरीबन नामुमकिन है जिसमें डेढ़ करोड़ टन पराली जलाई जा सके.
बासमती की जगह कोई और धान
बीते सालों के दरम्यान पंजाब की सरकार किसानों का रुख किसी और फसल की तरफ मोड़ पाने में नाकाम रही. नतीजतन राज्य के ज्यादातर हिस्से में धान की खेती ने जोर पकड़ा है.
धान की फसल भूजल के अत्यधिक इस्तेमाल की मांग करती है. इस कारण सूबे की सरकार किसानों को धान उपजाने के एवज में बिजली मुफ्त फराहम करती है- इससे किसानों को धान की खेती के लिए प्रोत्साहन मिलता है.
धान की फसल का रकबा वक्त बीतने के साथ बढ़ता गया है लेकिन बासमती की खेती का रकबा हरियाणा और पंजाब में क्रमश: 8 फीसद तथा 9 फीसद घटा है.
बासमती पर न्यूनतम समर्थन मूल्य न होने के कारण किसान इस फसल को उपजाने में संकोच करते हैं जबकि बासमती की खेती करने पर पराली जलाने के चलन में कमी आ सकती है. बासमती के पुआल का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रुप में किया जाता है, उसे जलाया नहीं जाता.
राज्य सरकार के कुछ उपाय
पराली जलाने से पैदा हुए प्रदूषण को लेकर विरोध की आवाजें तेज हुईं तो दबाव में पंजाब की सरकार ने पिछले महीने ऐलान किया कि 7 हजार से ज्यादा की तादाद में किसानों को फार्मिंग मशीन दी जाएगी ताकि पराली का निबटारा वैज्ञानिक तरीके से किया जा सके. पेशकश यह की गई कि कोई किसान अकेले इस मशीन को खरीदता है तो उसे मशीन की कीमत पर 50 फीसद की सब्सिडी मिलेगी और अगर किसानों की सहकारी समितियां मशीन खरीदती हैं तो उन्हें खरीद पर 80 प्रतिशत की सब्सिडी मिलेगी.
तीस लाख हेक्टेयर में होने वाली धान की पैदावार से पुआल को हटाने के लिए मशीनों का इस्तेमाल किया जाना है जिसमें पुआल कटाई की मशीन, मल्शर, आरएमबी प्लॉ, श्रब कटर, जीरो टिल ड्रिल तथा हार्वेस्टर में इस्तेमाल होने वाला सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम शामिल है.
सूबे में पराली जलाने के विरोध में चलाई जा रही मुहिम के नोडल ऑफिसर केएस पुन्नु हैं. उन्होंने कहा कि कृषि विभाग धान की फसल की कटाई के पहले निश्चित तौर पर किसानों को मशीन मुहैया करा देगा.
के एस पुन्नु ने बताया, 'सभी उपायुक्तों ( डिप्टी कमिश्नर) को निर्देश दिया है कि वो पराली जलाने के खिलाफ जोर-शोर से मुहिम चलाएं क्योंकि पराली जलाना उत्तर भारत में प्रदूषण की मुख्य वजह है.'
सरकार ने पराली जलाने पर अंकुश लगाने के लिए धान की फसल उपजाने वाले 8000 गांवों में भी नोडल ऑफिसर्स की नियुक्ति की है.
अतिरिक्त मुख्य सचिव विश्वजीत खन्ना के मुताबिक इस साल पराली जलाने के चलन पर रोक लगाने के लिए पंचायत तथा कृषि-विभाग, वन विभाग तथा मृदा संरक्षण (स्वायल कंजर्वेशन) तथा अन्य विभागों के कर्मचारियों को भी जोड़ा जाएगा.
हर 20 गांव पर एक अधिकारी को बहाल किया जाएगा. उसकी जिम्मेदारी होगी कि वो फसल की कटाई के बाद के समय में एक तफ्सीली रिपोर्ट तैयार करे ताकि मुख्य कृषि अधिकारी के दफ्तर में डेटा तरतीब के साथ जमा हो और रिकार्ड तथा संदर्भ के तौर पर इस्तेमाल में आए.
किसानों की मुश्किल
लेकिन किसान अब भी खेतों में पराली जलाने को मजबूर हैं. भारतीय किसान यूनियन(बीकेयू) के एक धड़े के मुख्य सचिव जगमोहन सिंह का कहना है कि धान की फसल में हाल के वक्त में हुई बारिश के कारण नमी बरकरार है और इस कारण फसल की कटाई में अभी देरी होगी.
उन्होंने बताया, 'गेहूं की बुआई के लिए खेतों को साफ करने के गरज से किसानों को मजबूर धान की फसल की छाड़न खेतों में ही जलानी होगी. ज्यादातर किसानों की हालत ऐसी नहीं कि वो अनुदानित मूल्य पर भी पराली हटाने की मशीन खरीद सकें.'
उन्होंने यह भी कहा कि पिछले पांच-सात सालों से ह्वाइट फ्लाई (लाही) के कारण पंजाब की मालवा पट्टी में कपास की फसल के बहुत बड़े हिस्से को नुकसान पहुंचा है और इस वजह से किसान धान की खेती करने पर मजबूर हुए हैं.
किसान एक लंबे अरसे से मांग कर रहे हैं कि खेतों से पराली हटाने के इंतजाम के लिए प्रोत्साहन दिया जाय.
बरनाला के 39 वर्षीय किसान बूटा सिंह ने कहा कि उनके गांव के कुछ किसानों ने एक समूह बनाया है ताकि अनुदानित मूल्य पर मिलने वाली मशीन को हासिल किया जा सके.
उन्होंने कहा, 'अगर आप तादाद के बारे में पूछें तो दरअसल सिर्फ एक फीसद किसानों को मशीन मिल पाई है. भले ही अनुदानित दर पर मशीनें मिल रही हों लेकिन गरीब किसानों के लिए उन्हें भाड़े पर लेना भी मुश्किल है. खेती के हर एकड़ रकबे से पराली हटाने के लिए सरकार की तरफ से किसी ना किसी रुप में सहायता जरुरी है.' उन्होंने यह भी कहा कि इस साल भी किसानों के पास विकल्प बस यही बचा है कि वो पराली खेतों में ही जलाएं.
( स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर सक्रिय लेखक लुधियाना में रहते हैं और जमीनी स्तर की रिपोर्टिंग करने वाले संवाददाताओं के अखिल भारतीय नेटवर्क 101Reporters.com के सदस्य हैं. )
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