मेरी एक दोस्त है. वो कक्षा तीन (हम हिंदी मीडियम वाले हैं) में पढ़ती थी तो बड़ी होकर सुपर कमांडो ध्रुव से शादी करना चाहती थी. अब जब वो हिंदुस्तान में लड़कियों की शादी की संस्कारी, आदर्श उम्र से 4-5 साल आगे निकल चुकी है तो उसे सिंगल रहना अच्छा लगता है.
मगर वो आज भी कहती है कि ध्रुव जैसा कोई मिल जाए तो बिना सोचे ब्याह कर ले. वैसे बता दूं कि मैं भी बचपन में दफ्ती और लकड़ी से ध्रुव के फेंके जाने वाले स्टार बनाने की कोशिश लगभग हर गर्मी की छुट्टी में कर चुका हूं. अब रुकिए, इसके आगे हम देसी सुपरहीरो का नाम लेकर अपने बचपने के किस्से नहीं टिकाएंगे. चलिए नए तरीके से मिलते हैं सुपर कमांडो ध्रुव और उसके बाद दूसरे सुपरदोस्तों से.
क्यों सबसे खास है ध्रुव
ध्रुव के सबसे खास सुपर हीरो होने की वजह हमने उसे बनाने वाले से मतलब खुद अनुपम सिन्हा से पूछीं. उन्होंने बताया कि सुपर कमांडो ध्रुव की सबसे खास बात थी कि उसने कभी ज्यादातर भारतीय नायकों की तरह कोई उपदेश नहीं दिया. उसका हथियार इस्तेमाल न करना उसे ताकतवर बनाता है.
ध्रुव एक ऐसा हीरो है जिसके पास एक ही ऑप्शन होता है, जो सही है वही करना है. कह सकते हैं कि अपनी शर्तों पर जीने वाली पीढ़ी को जाने-अनजाने ही ‘माह लाइफ माह रूल्ज’ ध्रुव ने सिखाया.
पहला भारतीय सुपरहीरो
अनुपम बताते हैं कि इससे पहले हिंदुस्तान के पास कोई भी अपना कॉमिक्स सुपर हीरो नहीं था. या तो सिंदबाद या अलादीन जैसे अरेबियन नाइट के किरदार थे. या फैंटम और मैंड्रक जैसे अंग्रेजी के सुपरहीरो. चाचा चौधरी जैसा किरदार कार्टून और बच्चों के ज्यादा मुफीद था. ऐसे में ध्रुव और नागराज ने टीन एज बच्चों के सामने एक ऐसा ऑप्शन रखा जो उससे पहले था ही नहीं. इसके साथ ही ध्रुव को जिस तरीके से गढ़ा गया था वो भी खास था.
अक्सर आरोप लगता है कि हिंदुस्तानी सुपर हीरो अमेरिकी सुपर हीरो की नकल होते हैं. या उनकी कहानियों में फिल्मों का बहुत असर होता है. अनुपम सिन्हा इस पर कहते हैं कि जब ध्रुव बनाया जा रहा था तो किसी को नहीं पता था कि ये किरदार हिंदुस्तान का सबसे बड़ा सुपर हीरो बन जाएगा.
ऊपरी स्तर पर उसके कैरेक्टर की कुछ बातें बैटमैन जैसे हीरो से मिल सकती हैं. मगर ध्रुव का अपना एक यूनिवर्स है. जिसमें उसके दोस्त, परिवार और बाकी चीजें हैं. ध्रुव की ये राजनगर वाली दुनिया अपने आप में पूरी तरह ओरिजनल और देसी है, इसीलिए ध्रुव को पढ़ने वाले ज्यादातर लोग कभी डीसी और मार्वल कॉमिक्स पढ़ने पर शिफ्ट नहीं कर पाए.
एक किताब जिसने एक पीढ़ी को बदल दिया
‘प्रतिशोध की ज्वाला’ ध्रुव की पहली कॉमिक्स है. इसका नाम हिंदी की किसी मस्ट रीड लिस्ट में कभी नहीं होगा, मगर इस किताब ने एक पूरी पीढ़ी को कोर्स से इतर हिंदी पढ़ने की लत लगाई. आज अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर उस दौर के लिखने वाले तमाम लेखकों, पत्रकारों की बिरादरी में ज्यादातर ध्रुव के फैन मिलेंगे.
‘आदम खोरों का स्वर्ग’, ‘खूनी खिलौने’, ‘हत्यारा कौन’, ‘मैंने मारा ध्रुव को’, ‘चुंबा का चक्रव्यूह’, ‘राजनगर की तबाही’ (जिसमें पहली बार नागराज और ध्रुव साथ में आए) जैसी लाखों में बिकने वाली तमाम कॉमिक्स इस किताब के बाद निकलीं.
2010 में ‘गेम ओवर’ कॉमिक्स के बाद ध्रुव को बनाने वाले अनुपम सिन्हा ने ध्रुव की कहानी लिखना छोड़ दिया था. इसके बाद ध्रुव के किरदार में कई ऐसे बदलाव आए जो पाठकों को कुछ खास पसंद नहीं आए. अब अनुपम फिर से इस देसी सुपरहीरो की कहानी नए सिरे से और एक नए स्तर पर ले जाकर लिख रहे हैं. ध्रुव की कहानी अंग्रेजी के सुपर हीरो की तरह अपने राजनगर के यूनिवर्स के अलग-अलग पहलुओं को एक्स्प्लोर कर रही है.
अभी क्या कर रहा है ध्रुव
हममें से ज्यादातर को लगता है कि अगर ध्रुव के ऊपर फिल्म नहीं बन रही है तो ध्रुव का किरदार कुछ कर नहीं रहा है. राज कॉमिक्स मुश्किल होते मार्केट के बाद भी कॉमिक्स ला रही है. खुद अनुपम सिन्हा की लिखी और डिजाइन की हुई ‘बाल चरित’ नाम की एक सीरीज आ चुकी है जिसमें ‘प्रतिशोध की ज्वाला’ यानी ध्रुव के पैदा होने से पहले और बचपन की कहानी लिखी गई है. अंग्रेजी सुपरहीरो फिल्मों की भाषा समझने वाले इसे एक तरह का रीबूट भी कह सकते हैं.
अनुपम जिस अगली सीरीज पर काम कर रहे हैं. वो बहुत रोचक है. हिंदुस्तान के सोशल मीडिया पर चल रहे फेमिनिज्म से जुड़े तमाम वाद और विवादों को लेकर कहानी लिखी जा रही है.
इस कहानी को अलग-अलग फ्रेम में तोड़कर अनुपम हर फ्रेम के स्केच बनाते हैं. इसके बाद इन स्केच की आउट लाइन को ब्लैक इंक से गहरा किया जाता है. इसके बाद रंग भरे जाते हैं और फिर शब्द लगाए जाते हैं. इस तरह से चार से छः महीने का समय लेकर एक कॉमिक्स तैयार होती है.
अनुपम बताते हैं कि हिंदुस्तान में कॉमिक्स का ये दुर्भाग्य रहा कि इसे सिर्फ बच्चों से जोड़ कर रखा गया. साथ ही एक पूर्वाग्रह बना दिया गया कि लगभग हर कॉमिक्स में कहानी फिल्मों वगैरह से कॉपी होती है. वो बताते हैं कि अप्रैल के आसपास 2015 में आई ध्रुव की एक कॉमिक्स का फाइट सीन उसी साल जुलाई में रिलीज हुई ब्लॉकबस्टर मूवी बाहुबली में हूबहू था. ये बात महज एक संयोग भी हो सकती है. लेकिन कहीं ये कॉमिक्स बाहुबली के बाद आई होती तो शायद सब इसे फिल्म से चोरी ही मानते.
ध्रुव पर फिल्म कब आएगी
इस सवाल का जवाब देने से पहले दो बातें. पहली ये कि फिल्म कॉमिक्स का एक एक्सटेंशन हो सकती है, उसका विकल्प नहीं. इसलिए जो लोग फैन होने का दावा करते हैं, उन्हें कॉमिक्स के प्रिंट फॉर्म को सहेजने के बारे में भी सोचना चाहिए. फिल्म बन जाने से कॉमिक्स इंडस्ट्री की मुश्किलें कम हो सकती हैं. खत्म नहीं होंगी.
दूसरी बात ये कि हिंदी सिनेमा के बड़े-बड़े सुपर स्टार्स को लगता है कि सुपर हीरो मतलब दक्षिण भारतीय फिल्मों के अतिश्योक्ति से भरे ऐक्शन को एक चमकीला सूट पहन कर करना भर है. इसीलिए वो द्रोणा बना लेते हैं, कृष बना लेते हैं, फ्लाइंग जट, रावन या जीवन के साथ प्रयोग कर लेते हैं मगर स्थापित सुपरहीरों और उन्हें बनाने वालों के साथ काम नहीं करते.
'हिंदी कॉमिक्स के सुपर स्टार क्यों फिल्म और बाकी मीडियम में अभी तक नहीं आ पाए हैं,' इसकी भी बात करेंगे मगर अगली किस्त में. तब तक के लिए एक बार अपने फेवरेट सुपर हीरो से जुड़े इस लिंक पर जाइए और नॉस्टेल्जिया में डुबकी लगा आइए. वैसे भी गर्मी की छुट्टियां आ गई हैं.
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