एक राज्य के तौर पर तमिलनाडु हमेशा से खुद को इंडस्ट्री फ्रेंडली यानि औद्योगिक विकास के पक्षधर के तौर पर पेश करता आया है. राज्य के कई हिस्सों में औद्योगिक विकास और कार्य लंबे समय से होते आये हैं. तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई भारत का ‘डेट्रॉयट’ (अमेरिका के मिशिगन में बसा सबसे बड़ा औद्योगिक शहर) के नाम से मशहूर हुआ और इसके साथ बहुत सारे नए उद्यमी और व्यवसाय भी यहां फले-फूले.
तिरूप्पर को अपनी कॉटन टेक्सटाइल्स, कांजीपुरम को अपनी सिल्क, कोयंबटूर को अपनी बढ़ती व्यवसायिक पहचान- जिसमें कई बड़ी और छोटी सफल कंपनियां शामिल हैं, नामाक्कल को अपने ट्रक के बिजनेस, शिवकासी को पटाखों की फैक्ट्री के कारण देश-विदेश में काफी नाम मिला. इसके अलावा चेन्नई का सरावना भवन शुद्ध वेजिटेरियन रेस्त्रां का अंतराष्ट्रीय चेन भी है जो पूरी दुनिया में बेहद मशहूर है.
अपनी उच्च साक्षरता दर, एक के बाद एक कई बेहतर शैक्षनिक संस्थाओं और अपने सराहनीय स्वास्थ्य सेवाओं के कारण तमिलनाडु देश भर के बड़े और छोटे सभी तरह के निवेशकर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. इन निवेशकर्ताओं को कभी भी इस बात की चिंता नहीं रही कि दूसरे प्रदेश से यहां आकर बिजनेस खड़ा करने में कितना खर्च हो सकता है, न ही वे कभी इस बात से परेशान हुए कि राज्य में सत्ता या सरकार किस द्रविड़ पार्टी की है.
मुख्यमंत्री के तौर पर अपने अंतिम कार्यकाल जे.जयललिता का इस बात पर काफी जोर था कि राज्य में ज्यादा से ज्यादा निजी क्षेत्र के निवेशकर्ता अपना पैसा लगाएं. तमिलनाडु देश का चौथा सबसे बड़ा राज्य है और औद्योगिक विकास के क्रम में कई बार दूसरे पायदान पर भी रहा है, इसने पिछले कुछ सालों में अपना जीडीपी ग्रोथ रेट यानि सकल घरेलू उत्पाद के विकास दर को 8% भी रखने में सफलता हासिल की है जो राष्ट्रीय दर से भी बेहतर रही है.
लेकिन पिछले कुछ सालों में ये देखा गया है कि राज्य की राजनीतिक व्यवस्था कई बार इन फैक्ट्रियों और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के हक में नहीं रही है. दोनों ही प्रमुख द्रविड़ पार्टियों का अपने लेबर विंग भी है. लेकिन, इसके बावजूद यहां स्ट्राइक या हड़ताल होते हुए काफी कम देखा गया है, जबतक कि ऐसा करने से किसी एक दल का बड़ा फायदा न जुड़ा हो.
और अब एक प्रमुख बंदरगाह वाले और कृषिप्रधान इलाके थुटुकुडी में प्रदर्शनकारियों पर बर्बरतापूर्वक गोली चलवाई गई है. इस इलाके में सत्ताधारी एआईएडीएमके का वर्चस्व है. यहां ये बताना जरूरी है कि थुटुकुडी से चुने गए एकमात्र सांसद और सभी छह विधायक एआईएडीएमके से हैं.
अब जबकि देशभर के सभी नेता चाहे वो दूसरे राज्यों से हों या केंद्र से, राज्य सरकार की इस हरकत की भर्त्सना कर रहे हैं तब एआईडीएमके के पदाधिकारियों ने इस घटना के लिए किसी तरह की कोई जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया है. उन्होंने अपनी पुलिस के खिलाफ भी एक शब्द नहीं कहा है वो भी तब जब वायरल हो चुके एक वीडियो में ये साफ नजर आ रहा है कि कैसे हथियारों से लैस पुलिसकर्मियों ने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं हैं.
इसके अलावा न तो राज्य के भीतर काम कर रही या राज्य से बाहर किसी राष्ट्रीय औद्योगिक संस्था या व्यापार संघ ने इस घटना के विरोध में खुलकर सामने आए हैं. किसी ने भी इस घटना में मारे गए लोगों के समर्थन में कुछ भी नहीं कहा है.
स्टरलाइट कॉपर स्मेल्टिंग यूनिट कम से कम 20 साल पुराना है और इस समय देश का सबसे बड़ा कॉपर स्मेलटिंग प्लांट है. इसे पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने पहले के कार्यकाल में शुरू करवाया था. उसके बाद साल 2007 में करुणानिधि के कार्यकाल के दौरान इस कंपनी को एनवायरनमेंटल क्लियरेंस यानि पर्यावरणीय मंजूरी भी तब की डीएमके की सरकार ने दे दी थी.
कंपनी के विस्तार की योजना को मनमोहन सिंह सरकार की तरफ से मंजूर कर लिया गया था. जिससे इसे साल 2009 के लिए भी एनवायरेनमेंटल क्लियरेंस मिल गया. इसमें डीएमके की भी सहमति शामिल थी. लेकिन बाद में इस कंपनी को गैस लीकेज का दोषी पाया गया, जिस कारण इलाके के लोगों को स्वास्थ्य समस्या झेलनी पड़ रही थी. इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी पर 100 करोड़ का जुर्माना लगाया था.
मौजूदा प्रदर्शन कंपनी की उस योजना के विरोध में था जिसके तहत कंपनी अपने प्लांट की उत्पादक क्षमता को दोगुना करना चाहती है. न तो प्रदर्शनकारियों और न ही कंपनी ने अपने-अपने दावों को साबित करने के लिए किसी तरह के वैज्ञानिक तथ्यों को सामने रखा. और लगातार कई दिनों से चल रहे प्रदर्शन के बावजूद सरकार ने भी इस मामले में लिये गए अपने किसी फैसले या कदम की जानकारी लोगों को दी है, जिसकी मांग डीएमके के नेता एमके स्टालिन लगातार करते आ रहे हैं.
इसके बावजूद जिस कठोर तरीके तरह से एआईएडीएमके ने उग्र प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई की वो चौंकाने वाली है. खासकर, तब जब ये पूरी तरह से साफ है कि ऐसी कार्रवाई का सीधा फायदा एआईएडीएमके के भीतर टीटीवी दिनाकरन गुट के नेता लेने की कोशिश करेंगे. टीटीवी दिनाकरन गुट की अम्मा मक्कल मुनेत्र कज़घम ने स्टरलाइट के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान शुरू किया था.
कुछ मीडिया संगठनों ने पुढिया पोढु उडामाई लयाक्कम और पुरुतचिकरार इलाईग्नार मुनानी जैसे नए और कम जाने-पहचाने संगठनों के राजनीतिक पहचान और इरादों पर भी सवाल खड़ा किया है. ये संगठन उस विरोध प्रदर्शन का हिस्सा भी थे. और उम्मीद के अनुसार, इस पूरे घटनाक्रम के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है और उंगलियां आरएसएस की भूमिका की तरफ भी उठाए जाने लगी है. जिसके जवाब में कांग्रेस के एक नेता की स्टरलाइट के साथ संबंधों पर सवाल किया जा रहा है.
अन्य जगहों की तरह जहां औद्योगिक गतिविधियों के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान के खिलाफ जब भी विरोध प्रदर्शन किया गया है तब उसके बाद वहां का कामकाज रुक गया है. जैसा कि ओडिशा के नियमगिरी की पहाड़ियों में स्थित बॉक्साइट की खदानों में हुआ था. तमिलनाडु में इस तरह का विरोध प्रदर्शन कभी भी सफल नहीं हुआ है.
इंटरनेट से पहले के समय में, कोडाईकनाल में एक मल्टीनेश्नल कंपनी के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन किया गया गया था. उस कंपनी पर आरोप था वो इस्तेमाल किया गया पारा खुली जगह में फेंक रहा था जिससे इलाके का पानी का स्रोत जहरीला होता जा रहा था. इस प्रदर्शन के बारे में अन्य जगहों के लोग जान भी नहीं पाए न ही इसका कुछ बड़ा असर हुआ.
हालांकि, कंपनी ने बाद में अपना कामकाज यहां बंद कर दिया था. हालांकि, तमिलनाडु में होने वाले इन हालिया प्रदर्शनों ने, सोशल और डिजिटल मीडिया के कारण लोगों का ध्यान तो अपनी ओर ज़रूर खींचा, जिस कारण प्रदर्शनकारियों में कई एनजीओ भी नजर आए. इससे पहले का सबसे बड़ा और सफल प्रदर्शन कुडनकूलम के न्यूक्लीयर प्लांट के विरोध में हुआ था. लेकिन, प्रदर्शनकारियों के शुरुआती शोर-शराबे के बाद अब वो प्लांट फिर से चालू हो गया है और बड़ी ही शांति से चल रहा है.
मौजूदा समय में जब पर्यावरण को लेकर लोगों में काफी सजगता आ गई है, तब न तो सरकारें और न ही ये कंपनियां पर्यावरण को लेकर उदासीन रह सकतीं हैं. बड़ी कंपनियां खासकर, बहुराष्ट्रीय कंपनियां ऐसा हर्गिज़ नहीं कर सकती हैं. असल में, हाल ही में वेदांता के खिलाफ इंग्लैंड और अमेरिका में भी प्रदर्शन हुए हैं. लेकिन, थुडुकुडी में वेदांता और स्टरलाइट जैसी कंपनियों को पहले से ही गौण कर दिया गया है.
इस पूरे घटनाक्रम का जो सबसे दिलचस्प पहलू सामने आया है, वो अचानक से तमिल फिल्म इंडस्ट्री के महानायकों का अचानक हुआ अवतरण है और जिस तरह से वे लोग इस हादसे में मारे गए लोगों के परिवारों और प्रदर्शनकारियों के समर्थन में आ खड़े हुए हैं. इनमें सबसे अहम हैं हाल ही में फिल्मों से राजनीति में पदार्पण करने वाले नेता कमल हासन, जिन्होंने इस घटना को ध्यान में रखते हुए बुधवार को बेंगलुरु में एचडी कुमारास्वामी के शपथ समारोह में जाने की योजना को कैंसिल कर दिया था और दूसरे हैं फिल्मों से ही राजनीति में अपना पैर जमाने आए सुपरस्टार रजनीकांत.
( लेखक द वीक मैगजीन में एडिटर-इन-चार्ज रह चुके हैं.)
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