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मुसलमानों के खिलाफ नफरत का ट्रेंड रोकना जरूरी

जो लोग सत्ता में हैं वे ऐसी ताकतों पर लगाम लगाएं न कि आग में और घी डालें जिससे सांप्रदायिक तनाव और बढ़ जाए

Updated On: Aug 19, 2017 05:07 PM IST

Shantanu Mukharji

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मुसलमानों के खिलाफ नफरत का ट्रेंड रोकना जरूरी

इन दिनों तकरीबन हर दिन भारत में बहुसंख्यक समुदाय के एक सेगमेंट द्वारा मुसलमानों को निशाना बनाने की खबरें आ रही हैं. धार्मिक आधार पर लिंचिंग की घटनाएं बार-बार होती दिखाई देती हैं. इस बात में सच्चाई है कि भारतीय समाज के एक वर्ग में कुछ इनटॉलरेंस का लेवल बढ़ रहा है जो कि गौहत्या और बीफ खाने का विरोध करता है.

पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के बयान को लेकर पैदा हुए विवाद और उनकी फेयरवेल स्पीच का समर्थन करने वालों की वजह से समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा हो गया. कम से कम यह एक ट्रेंड बन गया है.

लगातार बढ़ते रहना भारत की खासियत

इन घटनाक्रमों का पूरे तौर पर मतलब यह नहीं है कि इंडिया को मुस्लिमों की असुरक्षा का कोई तत्काल खतरा है. भारत की खूबसूरती यह है कि इस तरह की परेशान करने वाली छिटपुट घटनाओं के बावजूद यह अपनी चाल से आगे बढ़ता रहता है. गुजरे वक्त में, ऐसे कई मौके आए हैं जबकि ऐसा लगा कि देश की अखंडता खतरे में पड़ रही है.

मिसाल के तौर पर, 1980 और 90 के दशक में खालिस्तानी ताकतों और कश्मीरी अलगाववादियों ने आतंक की ऐसी लहर पैदा की कि देश से इन अहम राज्यों के टूटने का डर सामने आ खड़ा हुआ.

हमारी पुलिस और मिलिटरी लीडरशिप और कुछ विजनरी राजनेताओं को इस बात के लिए धन्यवाद देना होगा कि उन्होंने देश को एक बनाए रखा और हम वक्त के इस तकलीफदेह दौर से आगे बढ़ गए. ऐसे में एकता की ताकतों ने हमें कभी नाकाम नहीं किया.

हमें यह भी याद रखना होगा कि हम एक दुश्मन के खिलाफ जंग में थे और यह इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) थी जो कि कश्मीर और पंजाब में मुश्किलें पैदा कर रही थी. भारत के साथ बैर ठाने बैठे इस हर तरह के हथकंडे अपना रहे इस दुश्मन के सामने जीत हासिल करना आसान नहीं था. इसके बावजूद हम जीते.

अब सांप्रदायिक रंग से जुड़े हुए मौजूदा घटनाक्रमों पर वापस लौटते हैं. देश में 20 करोड़ मुसलमान रह रहे हैं और हर मुस्लिम को टेररिस्ट या एंटी नेशनल ठहरा देना किसी भी नजर से उचित नहीं होगा. एक हालिया घटना मेरे तर्क को बल देती है.

A Muslim man waves an Indian flag during a march to celebrate India’s Independence Day in Ahmedabad, India, August 15, 2016. REUTERS/Amit Dave - RTX2KWWX

भारतीय हाजियों ने काबा में फहराया तिरंगा

सउदी अरबिया में मक्का में हज के दौरान स्वतंत्रता दिवस की संध्या पर काबा पर एक तिरंगा फाहराया गया. मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एमएसओ) ऑफ इंडिया के नेशनल जनरल सेक्रेटरी शुजात अली कादरी ने अन्य भारतीय हाजियों के साथ काबा के सामने भारतीय ध्वज फहराया. काबा के सामने भारतीय तिरंगा फहराना एक बेहद फख्र की बात है. माना जाता है कि एमएसओ इंडिया की सबसे बड़ी स्टूडेंट बॉडी है और इसमें 10 लाख सूफी मुस्लिम स्टूडेंट्स हैं.

वहां पर कई देशों के लोग शुजात अली के पास आए और उनसे पूछा कि क्या आज भारत का स्वतंत्रता दिवस है. देशभक्ति का जबरदस्त जज्बा दिखाते हुए साथी हाजियों को बताया गया कि भारतीय हाजी तिरंगे को भारत से अपने साथ लाए थे. इन लोगों के लिए ऐसा करना जरूरी नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने मन से ऐसा किया.

जब किसी ने उनसे पूछा कि क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक मकसद है तो ध्वज उठाए शख्स ने जिगर मुरादाबादी के ये शब्द गुनगुनाए:

‘जिनका काम है अहले सियायत वह जानें, मेरा पैगाम है मुहब्बत जहां तक पहुंचे’

उन्हें कुछ लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है कि उन्होंने धर्म को देशभक्ति के साथ क्यों मिलाया. देश में पृथकतावादी रुझान हमेशा से मौजूद रहे हैं और ये हमेशा बने रहेंगे, लेकिन यहां ऐसी भी ताकतें हैं जो कि सेक्युलरिज्म और उदारवाद के साथ खड़ी हुई हैं. यह देश ऐसे ही लोगों से ताकत पाता है.

Muslims offer the first Friday prayers of the holy fasting month of Ramadan outside the Jama Masjid in Jaipur, India June 2, 2017. REUTERS/Himanshu Sharma - RTX38NO1

कट्टरपंथ को नकारा है भारतीय मुसलमानों ने

भारत में 1.2 अरब लोग रहते हैं और इसमें एक छोटी मात्रा ऐसे मुसलमानों की है जो कि कट्टरपंथ की राह पर हैं. मालदीव में छोटी सी आबादी का एक बड़ा हिस्सा रैडिकलाइज्ड है और इनमें से ज्यादातर लोग सीरिया में आईएस की ओर से लड़ाई लड़ रहे हैं. भारतीय मुसलमानों को इस चीज का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.

ऐसी कई गिरफ्तारियां हुई हैं जहां मुस्लिम आईएस में जुड़कर और लड़ने के लिए जाते वक्त पकड़े गए. सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों ने जिस सतर्कता से काम किया है उससे ऐसी ज्यादातर कोशिशें नाकाम हो गईं. साथ ही देश के ज्यादातर मुसलमान नहीं चाहते कि उनके बच्चे जहरीली मानसिकता का शिकार हों. इसके बावजूद सोशल मीडिया और मौजूदा वक्त में आईएस हेडक्वॉर्टर्स से चलाए जा रहे साइबर आधारित रैडिकलाइजेशन प्रोग्राम से बचना भी इतना आसान नहीं है.

ये फैक्टर तो बने ही हुए हैं, लेकिन सांप्रदायिक जुनून को बढ़ाने वाले कुछ नए मामले भी आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का नेशनल इनवेस्टिगेटिव एजेंसी (एनआईए) को केरल में लव जिहाद के मामलों की जांच करने का दिया गया हालिया निर्देश कट्टरपंथियों को फिर से लोगों को भड़काने का मौका देगा. हालिया शिया वक्फ बोर्ड का अयोध्या में हिंदू मंदिर बनाने की इजाजत देने का फैसला भाईचारे को बढ़ाने का एक सही कदम है. इसका बड़े पैमाने पर शांति और सौहार्द के लिहाज से फायदा उठाया जाना चाहिए.

तोड़ने वाली ताकतें कामयाब न हो पाएं

इस बात के पूरे आसार हैं कि कट्टरपंथी ताकतें समाज को विभाजित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगीं. जरूरत इस बात की है कि जो लोग सत्ता में हैं वे ऐसी ताकतों पर लगाम लगाएं न कि आग में और घी डालें जिससे सांप्रदायिक तनाव और बढ़ जाए.

मुस्लिमों से जुड़ी हुई चिंताओं को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं है. छिटपुट चीजों को स्थायी खतरा नहीं माना जाना चाहिए. जिस चीज की तारीफ होनी चाहिए वह यह है कि मुस्लिम इस देश के साथ एकजुट होकर रहना चाहते हैं. वे मुख्यधारा में शामिल रहना चाहते हैं, भले ही उन्हें भड़काने की कितनी भी कोशिशें क्यों न हों.

बॉलीवुड में कई बेहतरीन मुस्लिम सितारे हैं और ऐसा ही हमारी स्पोर्ट्स और एथलेटिक्स की टीमों में भी है. ये शांति और सौहार्द के असली दूत हैं. एक-दूसरे समुदाय के खिलाफ छिटपुट भड़काऊ भाषण की घटना से कोई फर्क नहीं पड़ता. टीवी चैनल्स पर ऊंची आवाज में होने वाली डिबेट्स से आम राय नहीं बनती. जिस रफ्तार से देश आगे बढ़ रहा है, वह कायम रहनी चाहिए.

कभी-कभार होने वाली हलचलों से निपटा जा सकता है और हर मसले का सामान्यीकरण करना ठीक नहीं है. ऐसा नहीं होगा कि भारत में शांति की प्रक्रिया को धक्का पहुंचेगा और सबसे अहम इससे मुसलमानों को दिक्कत होगी.

(लेखक रिटायर्ड आईपीएस अफसर और सोशल एनालिस्ट हैं. उनकी व्यक्त की गई राय निजी है)

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