जम्मू कश्मीर ने 1982 के संवेदनशील ‘जम्मू कश्मीर पुनर्वास अधिनियम’ की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई स्थगित करने का सोमवार को उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया. जम्मू-कश्मीर सरकार ने न्यायालय से कहा कि अभी राष्ट्रपति शासन वाले इस राज्य में कोई निर्वाचित सरकार नहीं है. राज्य सरकार ने कहा कि यह उपयुक्त होगा कि निर्वाचित सरकार बनने के बाद सुनवाई की जाए.
सरकार ने अधिवक्ता शोएब आलम के मार्फत दायर अपने हलफनामे में न्यायालय के उस सवाल का जवाब दिया है जो पिछली सुनवाई के दौरान पूछा गया था. न्यायालय ने पूछा था कि राज्य से बाहर चले गए कितने लोगों ने अधिनियम के प्रावधानों के तहत पाकिस्तान से लौटने के लिए अर्जी दी है.
राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा कि इस अधिनियम को उसने कभी अधिसूचित नहीं किया और इसलिए इस अधिनियम के तहत कोई अर्जी नहीं प्राप्त की जा सकी. इस मामले में याचिकाकर्ता जेकेएनपीपी (जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी) है. पार्टी अपने प्रमुख एवं वरिष्ठ अधिवक्ता भीम सिंह के जरिए दलील पेश कर रही है.
सिंह ने दलील दी कि यह विषय काफी समय से लंबित है और इस पर फैसला किए जाने की जरूरत है. उन्होंने 2001 में शीर्ष न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस अधिनियम को रद्द करने की मांग की थी.
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