सुप्रीम कोर्ट में आधार पर बहस जारी है. गुरुवार को भी इस पर मंथन हुआ कि देश की मशीनरी अपने नागरिकों को आधार संख्या देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि लोग जब इंश्योरेंस और मोबाइल कंपनियों को अपना आधार दे सकते हैं तो सरकार को देने में क्या हर्ज है.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, परेशानी क्या है
सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल इस मामले में सुनवाई चल रही है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में 5 जजों की संवैधानिक पीठ मामले को देख रही है. बेंच ने कहा, 'आपको जब इंश्योरेंस पॉलिसी चाहिए होती है तो आप प्राइवेट कंपनी के पास जाते हैं. मोबाइल कनेक्शन के लिए प्राइवेट कंपनी के पास जाते हैं और अपनी पर्सनल जानकारी शेयर करते हैं..' 'लेकिन अब सरकार ने इसमें कई विकल्प जोड़ दिए हैं. जब सरकार आपसे एड्रेस प्रूफ और अन्य जानकारी मांगती है तो आपको इससे परेशानी होती है और आप कह देते हैं सॉरी...'
इसके जवाब में याची वकील श्याम दीवान ने कहा, 'अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से प्राइवेट कंपनियों को पर्सनल जानकारी देता है तो इसमें कोई परेशानी नहीं. लेकिन दिक्कत तब है जब किसी अनजान आदमी को अपनी जानकारी देने के लिए कहा जाता है, वह भी उसे जिसे जानते तक नहीं और न ही उससे कोई कॉन्ट्रैक्चुअल संबंध है.'
बेंच में जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण भी हैं जो आधार की संवैधानिक मान्यता पर दर्ज याचिका की सुनवाई कर रहे हैं.
वकील दीवान का करारा जवाब
वकील दीवान इस मामले में प्रतिनिधि याची हैं जो कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुट्टस्वामी, सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय, शांता सिन्हा और प्रख्यात लेफ्ट नेता वीएस अच्युतानंदन की उस याचिका की वकालत कर रहे हैं जिसमें कहा गया है कि सरकार अपने नागरिकों को अपनी पर्सनल जानकारी किसी को देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती. यहां तक कि प्राइवेट कंपनियों को भी, क्योंकि यह मूलभूत अधिकारों का हनन है.
दीवान ने कहा, जनगणना के तहत जुटाई गई पर्सनल और जनसंख्या की जानकारी जिस ढंग से सुरक्षित रखी जाती है, वैसा आधार के साथ नहीं है. उन्होंने कहा, प्राइवेट कंपनियां आधार अथॉरिटी के दायरे से बाहर हैं, इसलिए वे अपने कारोबारी मकसद से इसका दुरुपयोग कर सकती हैं. इतना ही नहीं, आधार अथॉरिटी और आधार डेटा जुटाने वाली प्राइवेट कंपनियों में कोई अनिवार्य अनुबंध भी नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि जो भी जानकारी जुटाई जा रही है उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत है.
फॉर्म में 'ऐच्छिक' शब्द का क्या मतलब
गुरुवार की सुनवाई में वकील दीवान ने आधार का एक फॉर्म भी दिखाया जिस पर स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि जो लोग अपना आधार दर्ज करा रहे हैं, वे जानकारी अपनी मर्जी से दे रहे हैं. दीवान ने बताया, कोई शख्स अगर डिटेल देने में आनाकानी करता है तो आधार का सॉफ्टवेयर उस व्यक्ति को रजिस्टर करने से मना कर देता है. ऐसे में फॉर्म में 'ऐच्छिक (वॉल्यूनटरी)' शब्द लिखने का कोई मतलब नहीं.
दीवान ने आधार स्कीम को 'शुरू से लेकर अंत तक असंवैधानिक करार दिया' और कहा कि शुरू में सरकार को इस बात का अधिकार नहीं था कि वह नागरिकों को जानकारी देने के लिए बाध्य करे, लेकिन परेशानी तब और बढ़ गई जब प्राइवेट कंपनियों को भी जानकारी देने के लिए कहा जाने लगा. आधार नामांकन के वक्त बैंक खाता नंबर और मोबाइल नंबर मांगे जाते हैं, उस वक्त किसी सरकारी अधिकारी को वहां होना चाहिए जो लोगों की जानकारी को प्राइवेट कंपनियों से सुरक्षित रख सके.
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