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सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर पर कोर्ट के फैसले से सीबीआई कुछ सबक लेगी?

पिछले दिनों सीबीआई की विशेष अदालत ने सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया.

Updated On: Jan 02, 2019 09:22 PM IST

Ravishankar Singh Ravishankar Singh

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सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर पर कोर्ट के फैसले से सीबीआई कुछ सबक लेगी?

पिछले दिनों सीबीआई की विशेष अदालत ने सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया. सीबीआई की विशेष अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि वो मजबूरी में यह फैसला कर रहे हैं क्योंकि इस केस के सभी गवाह और सुबूत हत्या और साजिश को साबित नहीं कर पाए. अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा है.

मुंबई की सीबीआई कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि इस केस से जुड़े सभी पुलिसकर्मियों पर केस चलाने के लिए सीबीआई ने उचित रजामंदी भी नहीं ली. सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने सीबीआई के काम करने के तरीके पर भी सवाल खड़ा किया. सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर में सीबीआई ने कुल 38 लोगों को आरोपी बनाया था, जिनमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और आईपीएस अधिकारी डीजी बंजारा समेत 16 आरोपियों को अदालत ने 2014 में ही बरी कर दिया था.

सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर में कोर्ट का फैसला तो आ गया है, लेकिन कई सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब अभी भी नहीं मिल पाए हैं. जैसे सीबीआई ने किस आधार पर एनकाउंटर को फेक कहा था? सोहराबुद्दीन शेख आखिर कौन था? क्या सोहराबुद्दीन शेख आतंकी था? सीबीआई ने अपनी जांच रिपोर्ट में अदालत में क्या कहा? एनकाउंटर कैसे हुआ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब अब भी तलाशा जा रहा है. स्पेशल कोर्ट के इस फैसले के बाद पीड़ित पक्ष ऊपरी अदालत जाने की तैयारी कर रहा है.

बता दें कि सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर में राजस्‍थान और गुजरात के कुल 21 पुलिसकर्मी आरोपी थे. एक बाहरी व्यक्ति को मिला कर इस केस में कुल 38 लोगों को सीबीआई ने आरोपी बनाया था. 16 लोगों को तो 2014 में ही बरी कर दिया गया लेकिन बचे 22 पर बीते 21 दिसंबर को फैसला आया था. कोर्ट का लिखित बयान बीते 31 दिसंबर को जारी हुआ. सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 358 पन्‍नों का फैसले में कहा कि जांचकर्ताओं ने दो लोगों को चश्‍मदीद बताया था, लेकिन वे बयान से पलट गए. ऐसे में पूरा केस परिस्थितिजन्‍य साक्ष्‍यों पर निर्भर था.

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358 पेज की जजमेंट की कॉपी आने के बाद कोर्ट ने एक-एक मामले को विस्तार से बताया है. सीबीआई की विशेष अदालत ने अपने फैसले में पुलिसवालों की कार्रवाई पर कहा कि अगर उन लोगों ने सोहराबुद्दीन शेख और उसके साथियों के खिलाफ ऐसा नहीं किया होता तो उन पर काम में लापरवाही का आरोप लगता. सीबीआई जज एसजे शर्मा ने अपने फैसले में लिखा, 'अगर आरोपी पुलिसकर्मियों ने उन लोगों पर कार्रवाई नहीं की होती, जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों में शामिल होने की सूचना थी तो बरी किए गए व्‍यक्तियों पर कर्तव्य में लापरवाही का आरोप लगता.'

जज ने आगे कहा कि सभी आरोपी पुलिसकर्मी प्रथम दृष्टया निर्दोष नजर आते हैं और संभव है कि राजनेताओं को फंसाने की स्क्रिप्‍ट को सही साबित करने के लिए सीबीआई ने इन्‍हें फंसा दिया. कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को आपराधिक कार्रवाई के नियमों की धारा 197 के तहत लाभ मिलना चाहिए था. इस धारा के तहत सरकारी सेवा में कार्यरत लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने से पहले संबंधित अधिकारी से अनुमति लेनी होती है. जज ने कहा कि भले ही पुलिसकर्मियों ने अपनी क्षमता से आगे जाकर काम किया, लेकिन केस चलाने से पहले अनुमति जरूरी होती है जो कि सीबीआई ने नहीं ली.

सीबीआई की विशेष अदालत ने सबूतों और गवाहों की जांच के बाद पाया कि सीबीआई और सीआईडी क्राइम किसी बड़े षड्यंत्र या पुलिस-राजनेता की साठगांठ को साबित नहीं कर पाई. जज ने कहा कि यह बात साबित नहीं हो पाई कि तुलसीराम, सोहराबुद्दीन शेख और कौसर बी के साथ एक ही बस में सफर कर रहे थे. साथ ही वह किसी घटना का गवाह होने के कारण मारा गया इस बात को भी साबित नहीं किया गया.

सीबीआई जज ने अपने फैसले के आखिर में इस बात पर खेद जताया कि एक गंभीर मामले में किसी को सजा नहीं हो रही है. लेकिन आगे जोड़ा, 'कानून इस बात की अनुमति नहीं देता है कि नैतिक आस्‍था या संदेह के आधार पर कोर्ट किसी को सजा सुनाए.' उन्‍होंने सीबीआई को फटकार लगाते हुए कहा कि वह सच को ढूंढने के बजाय पहले से तय एक थ्‍योरी को साबित करने में लगी हुई थी.

सीबीआई इस केस में स्थानीय नेताओं और कुछ अधिकारियों की सांठगांठ साबित करने में नाकाम साबित हुई. सीबीआई हत्याओं की मंशा बताने में नाकाम रही इसलिए कोर्ट ने कहा कोई संभावना नहीं है कि वरिष्ठ अधिकारी किसी साजिश का हिस्सा रहे हों.

कोर्ट ने 2010 में सीबीआई के मुख्य जांच अधिकारी रहे अमिताभ ठाकुर की गवाही का हवाला देते हुए कहा, एक तरफ एफआईआर में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जैसे नेताओं को इन हत्याओं से राजनीतिक लाभ लेने का आरोप था, लेकिन अदालत में जब ठाकुर से साक्ष्य उपलब्ध कराने को कहा गया तो वह साक्ष्य देने में नाकाम साबित हुए.

सीबीआई कोर्ट ने अपने फैसले में किसी भी तरह की साजिश से इंकार करते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा है कि जो साक्ष्य और सुबूत कोर्ट में पेश किए गए हैं उसके मुताबिक किसी भी तरह की साजिश नहीं दिखती.

बता दें कि सोहराबुद्दीन शेख 23 नवंबर 2005 की रात बस से अपनी पत्नी कौसर बी के साथ हैदराबाद से अहमदाबाद जा रहा था. आधी रात को गुजरात एटीएस ने महाराष्ट्र के सांगली के पास बस रुकवाई और दोनों पति-पत्नी को बस से उतार लिया. 3 दिन बाद यानी 26 नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन की गोली लगने से मौत हो गई. गुजरात पुलिस के डिप्टी इंसपेक्टर जनरल डीजी वंजारा ने इसे एक एनकाउंटर करार दिया था.

गुजरात एटीएस ने उस समय कहा था कि शेख अहमदाबाद के नरोल इलाके में मोटरसाइकिल से जा रहा था पुलिस ने उसे रोकने की कोशिश की तो पुलिस पर उसने फायरिंग की. पुलिस वालों ने अपनी रक्षा में गोली चलाई जिससे उसकी मौत हो गई. उस समय सोहराबुद्दीन को लेकर अलग-अलग तरह की खबरें आती रहती थी.

डीजी वंजारा

डीजी वंजारा

कभी सोहराबुद्दीन को जबरन वसूली करने वाला बताया जाता था तो कभी वह आतंकवादी करार दिया जाता था. कुछ तो उसे भ्रष्ट पुलिस वालों का लठैत कहते थे. सोहराबुद्दीन पर 50 से ज्यादा मामले दर्ज थे. हालांकि, वह किसी भी मामले में दोषी साबित नहीं हुआ था. हालांकि गुजरात पुलिस के पास उस समय भी कोई सुबूत नहीं था कि वह एक आतंकवादी है. आईपीएस अधिकारी वंजारा ने उस समय उसको अंडरवर्ल्ड से संबंध रखने वाला एक शार्प शूटर कहा था. वंजारा ने कहा था कि वह आईएसआई के इशारे पर कुछ बड़े राजनेताओं की हत्या की साजिश रच रहा था.

इस एनकाउंटर के कुछ दिन बाद सोहराबुद्दीन के भाई ने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिख कर गुजरात पुलिस पर सवाल उठाया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर गुजरात पुलिस को जांच के आदेश दिए थे. बाद में इस मामले की जांच करने वाली गुजरात पुलिस की सीआईडी (क्राइम) आईजी गीता जौहरी ने सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने उस रिपोर्ट के आधार पर ही एनकाउंटर की जांच सीबीआई के हवाले किया.

जानकारों का मानना है कि इस एनकाउंटर को लेकर गुजरात के आईपीएस लॉबी में भी दो फाड़ हो गए थे. हद तो तब हो गई जब 1992 बैच के गुजरात कैडर के ही एक आईपीएस अधिकारी रजनीश राय के नेतृत्व में इस एनकाउंटर से जुड़े दर्जनों पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. रजनीश राय ने डीजी वंजारा के अलावा आईपीएस अधिकारी राजकुमार पांडियन और राजस्थान कैडर के आईपीएस अधिकारी दिनेश एमएन को अपने दफ्तर में पूछताछ के लिए बुलाया और बाद में वहीं पर गिरफ्तार कर लिया.

उस समय इस गिरफ्तारी को लेकर देश में काफी चर्चाएं हुई थीं. हालांकि इन गिरफ्तारियों के बाद रजनीश राय गुजरात में काफी विवादित हो गए. कुछ दिनों बाद ही रजनीश राय को इस केस की जांच से हटा दिया गया था.

एनकाउंटर को लेकर सीबीआई की तरफ से तैयार की गई सभी थ्योरी को कोर्ट ने रिजेक्ट कर दिया. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई स्थानीय नेताओं और अधिकारियों के बीच किसी भी तरह की सांठगांठ साबित करने में असफल रही. इसलिए इसकी कोई संभावना नहीं कि वरिष्ठ अधिकारी किसी साजिश का हिस्सा रहे हों.

इस एनकाउंटर के शुरुआती दिनों में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का नाम सामने आ रहा था इसलिए विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस इसे लेकर सियासी मायने तलाश रही थी, लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद नए साल के पहले ही दिन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सीबीआई के बहाने कांग्रेस पार्टी पर जोरदार हमला बोला.

Smriti Irani

स्मृति ईरानी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘2010 में कांग्रेस ने सत्ता का दुरुपयोग कर अमित शाह के विरुद्ध मामला दर्ज कराया था. अमित शाह को कांग्रेस लंबे से प्रताड़ित भी करती रही. सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि शाह के खिलाफ कोई सुबूत नहीं था. कांग्रेस नेतृत्व के निर्देश पर ही सीबीआई ने अमित शाह को गिरफ्तार किया था और उसी दिन आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया था.’

ईरानी ने आगे कहा, ‘कांग्रेस पार्टी राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ षड्यंत्र रचने का काम करती रही है. सीबीआई की अदालत ने इस केस में 210 गवाहों के बयान लिए लेकिन अमित शाह के खिलाफ आरोप साबित नहीं हो पाए. अमित शाह और उनका परिवार पिछले 8 सालों से इस मामले को लेकर संघर्ष कर रहा है. अब अदालत के फैसले से साबित हो गया है कि सच को झुठलाया नहीं जा सकता.’

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