गांव भोकर रहेड़ी, जिला मुजफ्फरनगर के 70 साल के किसान मास्टर इकबाल सिंह आर्य कहते हैं, ‘14 बार बाबा (महेंद्र सिंह टिकैत) के साथ जेल जा चुका हूं. राकेश टिकैत के साथ भी एक बार मध्य प्रदेश के शहडोल में 6 दिन का जेल काट चुका हूं. भारतीय किसान यूनियन के लिए बंबई से लेकर देश के दूसरे हिस्सों में भी धरना और प्रदर्शन में शरीक हो चुका हूं, लेकिन इस बार जो हमारे साथ हुआ इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. मोदी जी से किसानों को बड़ी उम्मीद थी. इसी उम्मीद से मोदी जी को जिताया भी था, लेकिन मैंने अब कसम खाई है कि बीजेपी के किसी नेता को अपने गांव में घुसने नहीं दूंगा.’
मंगलवार को यूपी-दिल्ली बॉर्डर पर दिल्ली पुलिस के डंडों से घायल हुए 22 वर्षीय शिवा मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं. वो अपनी पीठ पर छपे लाठी के निशान को दिखाते हुए कहते हैं, ‘देखिए कैसे मेरे पीठ पर दिल्ली पुलिस के सिपाहियों ने मारा है. मैं पिछले 10 दिनों से इस आंदोलन में भाग ले रहा था. हरिद्वार से गाजियाबाद तक मार्च में शांतिपूर्ण भाग लिया और यूपी बॉर्डर पर हमारे साथ वैसा सलूक किया गया जैसे मानो हम आतंकवादी हैं? क्या मैं किसान घाट नहीं जा सकता हूं? क्या मैं राजघाट नहीं जा सकता?’
गांव सोनता रसूलपुर जिला शामली के 50 बीघे जमीन के मालिक मो. माजिद, गांव ककराला जिला मुजफ्फनगर के गैयूर हसन हों या फिर सहारनपुर के भारतीय किसान यूनियन के मंडल सचिव अनुज पहलवान सभी का कहना था कि इस बार बीजेपी को करारा जवाब मिलेगा.
जब गुस्से में थे किसान तो माने कैसे?
किसानों आंदोलन समाप्त हो चुका है. किसान अपने-अपने घर को लौट चुके हैं. अब सवाल यह उठता है कि आखिर किसानों के इस आंदोलन को सरकार ने कैसे खत्म कराया? किसान नेताओं को वापस घर जाने के लिए कैसे मनाया गया? ‘किसान क्रांति यात्रा’ लेकर किसान घाट या राजघाट जाने और फिर वहां से पार्लियामेंट तक मार्च करने के किसानों के प्लान को रोकने के पीछे दिल्ली पुलिस का मकसद क्या था?
क्या थी सरकार की योजना
हरिद्वार से चली किसान क्रांति यात्रा के गाजियाबाद पहुंचने तक तो सबकुछ शांतिपूर्ण था लेकिन आईबी की रिपोर्ट थी कि किसानों का यह आंदोलन दिल्ली में प्रवेश करने पर भड़क सकता है. केंद्र सरकार को ऐसी सूचनाएं मंगलवार सुबह से ही आने लगी थीं. आईबी की रिपोर्ट के बाद ही हालात को नियंत्रण में कैसे रखा जाए इसको लेकर केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार सक्रिय हो गई थीं.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ये जानकारी पीएम मोदी तक भी पहुंची थी. पीएम ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह को पूरा मामले जिम्मेदारी सौंपी. राजनाथ सिंह ने सबसे पहले देश के कृषि मंत्री राधामोहन सिंह और कुछ मंत्रियों के साथ किसानों की मांग पर बैठक की. फिर बाद में राजनाथ सिंह ने किसान नेता राकेश टिकैत से फोन पर बात कर किसान नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया.
मंगलवार सुबह 11 बजे राजनाथ सिंह की किसान नेताओं के साथ बैठक शुरू हुई. राजनाथ सिंह ने किसानों की अधिकांश मांगें लगभग मान लीं, लेकिन इस बीच किसानों पर लाठीचार्ज और वाटर कैनन इस्तेमाल करने की खबर आई, जिससे किसान भड़क गए.
किसानों पर लाठीचार्ज और वाटर कैनन के इस्तेमाल की खबर जैसी ही मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगीं राजनाथ सिंह ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और यूपी के डीजीपी ओ.पी. सिंह से बात की. राजनाथ सिंह ने दोनों पुलिस प्रमुख को सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि किसी भी हालत में किसानों पर आक्रामक कदम नहीं उठाए जाएं. सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार की कोशिश थी कि किसानों पर किसी तरह का प्रयोग नहीं किया जाए, लेकिन तबतक काफी देर हो चुकी थी. किसान नाराज हो कर एक बार फिर से प्रदर्शन के मूड में आ गए थे.
दिल्ली से लखनऊ तक थी सक्रियता
किसानों को मनाने के लिए कई स्तरों पर सरकार सक्रिय थी. राज्य के सीएम ऑफिस से लेकर कई अधिकारियों को भी किसानों को मनाने के लिए लगाया गया था. मंगलवार को दिन में किसानों पर लाठीचार्ज और वाटर कैनन के इस्तेमाल के बाद लखनऊ से दो वरिष्ठ आईएस अधिकारी भुवनेश कुमार और अमित मोहन प्रसाद को हेलिकॉप्टर से विशेषतौर पर गाजियाबाद भेजा गया. आईएएस अधिकारी भुवनेश कुमार जहां मेरठ और मुजफ्फरनगर जोन के कमिश्नर रह चुके हैं तो वहीं अमित मोहन प्रसाद राज्य के प्रमुख सचिव कृषि पद पर तैनात हैं.
राज्य के डीजीपी ओ.पी. सिंह ने कुछ वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को भी इस काम के लिए विशेष तौर पर नियुक्त किया. गाजियाबाद के एसएसपी वैभव कृष्ण खुद अपने दल-बल के साथ बॉर्डर पर मौजूद रह कर स्थिति पर लगातार नजर रख रहे थे तो वहीं जिले की डीएम रितु माहेश्वरी भी लखनऊ में शासन-प्रशासन को स्थिति से अवगत करा रही थीं.
दूसरी तरफ मेरठ जोन के एडीजी प्रशांत कुमार और मेरठ रेंज के आईजी रामकुमार भी गाजियाबाद पहुंच कर अधिकारियों को दिशा-निर्देश दे रहे थे. इन सब के बीच मुजफ्फरनगर, बागपत, गाजियाबाद जिले में बतौर एसएसपी के तौर पर काम करने वाले आईपीएस अधिकारी दीपक कुमार, जो फिलहाल 41वीं वाहिनी के सेनानायक हैं, भी किसानों के आंदोलन को समाप्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे थे. राज्य के डीजीपी ओ.पी. सिंह की तरफ से इन अधिकारियों को लगातार दिशा-निर्देश मिल रहे थे. अधिकारी ने बीजेपी नेता संजीव बालियान और सुरेश राणा जैसे नेताओं के साथ मिलकर किसानों को लगातार आंदोलन समाप्त कराने में लगे हुए थे.
आंदोलन लंबा खींचने की थी चेतावनी
भारतीय किसान यूनियन के कई नेताओं का साफ कहना था कि वह एक महीने का राशन-पानी साथ ले कर आए थे. अगर सरकार उनकी बात नहीं मानती तो वह एक महीने तक दिल्ली में डेरा डालते और सरकार को झुकने पर मजबूर कर देते. लेकिन, सरकारी सक्रियता ने इस आंदोलन को लंबा खिंचने से रोक लिया.
मंगलवार को जिन पुलिसकर्मियों ने किसानों के ट्रैक्टरों के तार काटे और पहिए की हवा निकाली थी वही पुलिसकर्मी बुधवार को किसानों के ट्रैक्टरों को ठीक करने में लगे रहे. पुलिसकर्मियों की चिंता यह थी जितनी जल्द हो सके ट्रैक्टरों को सही कर किसानों को घर भेजा जाए. बुधवार सुबह का एक नजारा यह भी था कि किसानों ने चाय अपने लिए बनवाई थी उसे पुलिस वालों को भी पिलवाया.
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