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स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों के बीच सुरक्षा को लेकर उठती आशंका

10 अगस्त को दिल्ली पुलिस ने अल-कायदा के एक कार्यकर्ता रज़ा-उल-अहमद को गिरफ्तार किया जो नेपाल भागने के फिराक में था

Updated On: Aug 13, 2017 11:17 AM IST

Shantanu Mukharji

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स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों के बीच सुरक्षा को लेकर उठती आशंका

15 अगस्त जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, देश में अमन-चैन को खतरा पैदा करने वाले कुछ मंजर भी हमारे सामने आने लगे हैं. ऐसा कोई खास खतरा तो नजर नहीं आ रहा है जिसकी हमारी खुफिया एजेंसियां नोटिस लें. लेकिन अलग-अलग बातों को एक साथ जोड़कर देखें तो खतरे की एक तस्वीर नजर आती है. इसी नाते खुफिया एजेंसियों ने आने वाले स्वतंत्रता दिवस के मद्देनजर सुरक्षा का माहौल बनाये रखने के गरज से अतिरिक्त चौकसी और निगरानी बरतने की हिदायत की है.

हाल के एक घटनाक्रम में 10 अगस्त को दिल्ली पुलिस ने आतंकी संगठन अल-कायदा के एक कार्यकर्ता रज़ा-उल-अहमद को गिरफ्तार किया, जो नेपाल भागने की फिराक में था. उसके पास से बड़ी मात्रा में जाली भारतीय नोट बरामद हुए. शुरुआती जांच से पता चला है कि रज़ा-उल-अहमद बांग्लादेशी है और पश्चिम बंगाल पुलिस को उसकी तलाश है. एक अहम बात यह भी है रज़ा-उल-अहमद प्रतिबंधित अंसार-उल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) का सदस्य और कार्यकर्ता है.

क्या बला है एबीटी?

इस संदर्भ में, बांग्लादेश के इस इस्लामी अतिवादी संगठन के बारे में समझ बनाना बहुत जरुरी हो जाता है. साल 2013 से 2015 के बीच अनीश्वरवादी ब्लॉगर्स और उदारवादियों को इस्लाम का विरोधी मानकर इस आतंकी संगठन ने उनका कत्ल-ए-आम मचा रखा था. यह संगठन इस्लामी छात्र शिविर (आईसीएस) से भी बड़ी गहराई से जुड़ा है. इस्लामी छात्र शिविर प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी की छात्र-शाखा है.

जमात ए इस्लामी धार्मिक कट्टरपंथ की पैरोकारी करता है. जो इस्लामी कट्टरपंथ का विरोध करते हैं उन्हें अपना निशाना बनाता है. एक बात यह भी है कि एबीटी को भारतीय उप-महाद्वीप में अल-कायदा का अग्रणी मोर्चा माना जाता है. एबीटी की वेबसाइट पाकिस्तान में मुकामी है. सो, यहां हमें बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच एक मिलीभगत नजर आ रही है जिसे भारत की सुरक्षा के लिहाज से अच्छा नहीं कहा जाएगा.

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ऐसे में, दिल्ली में रज़ा-उल-अहमद का पकड़ा जाना, उसकी पहचान का संदिग्ध होना तथा पाकिस्तान से जुड़ाव रखने वाले एक अतिवादी बांग्लादेशी संगठन से संबंधित होना मामले को और भी ज्यादा संदेहास्पद बना देता है. रज़ा-उल-अहमद की गिरफ्तारी का वक्त भी अहम है, उसे संयोग भर करार नहीं दिया जा सकता.

Terrorist

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

सहारनपुर को क्यों चुना ममनून ने?

इससे पहले एंटी टेरर स्क्वायड (एटीएस) ने यूपी के सहारनपुर से अब्दुल्ला-अल-ममनून नाम के एक शख्स को गिरफ्तार किया. वह भी बांग्लादेशी है और उसका रिश्ता मैमनसिंह जिले से बताया जाता है. उसने दलालों और अवांछित तत्वों के मार्फत महज 9000 रुपए खर्च कर के एक जाली भारतीय पासपोर्ट बनवाया. उसके नाम पर असम से जारी एक मतदाता पहचान-पत्र भी है. वह त्रिपुरा के रास्ते भारत में दाखिल हुआ और पिछले चार साल से गुपचुप तरीके से सहारनपुर में रह रहा था.

अगर गहराई से देखें तो यह सारा मंजर काफी परेशान करने वाला नजर आता है. आखिर अब्दुल्ला-अल-ममनून ने अपने रहने के लिए सहारनपुर को ही क्यों चुना. इस सवाल के पेश-ए-नजर सारी बातें बड़ी रहस्यमय जान पड़ती हैं. कुछ दिनों पहले सहारनपुर वहां भड़के जातिगत संघर्ष के कारण सुर्खियों में था.

सहारनपुर में सांप्रदायिक दंगे भी हुए हैं. सहारनपुर में ही देवबंद का मदरसा है और बहुत संभव है कि इस मदरसे से जुड़े कुछ लोगों को एक बड़ी योजना का हिस्सा बनाने की खिचड़ी पकाई जा रही हो. यह मामला सुरक्षा एजेंसियों की हर शाखा से गहरी छानबीन की मांग करता है.

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खुफिया एजेंसियों को अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि सहारनपुर में गिरफ्तार ममनून का दिल्ली में पकड़े गए रज़ा-उल-अहमद से कोई संपर्क था या नहीं. अगर दोनों के बीच किसी किस्म के जुड़ाव का पता चलता है तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय हितों को चोट पहुंचाने की नीयत से विघटनकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए दुश्मन ताकतें किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने के काम पर लगी हुई हैं.

अब्दुल्ला ममनून फिलहाल रिमांड पर पुलिस हिरासत में है. शुरुआती तफ्तीश में उसने पुलिस को बताया है कि असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा से लगती सीमा से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक भारत में घुसपैठ कर रहे हैं.

आईएसआई भारत के खिलाफ चला रहा है छद्म युद्ध

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परेशान करने वाली बात यह भी है कि ये घुसपैठिए खुद को छात्र बताकर भारतीय सीमा में प्रवेश कर रहे हैं. यह सचमुच बड़ी चिंता की बात है. अप्रवासियों पर नजर रखने के लिए पुलिस बल की तैनाती के साथ सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सक्रिय सहयोग से सीमा पर चौकसी बढ़ाने की जरुरत है.

अब यह बात एक स्थापित तथ्य है पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) बांग्लादेश और भारत में चोरी-छुपे अपनी गतिविधि चलाती है. बीते एक साल में बांग्लादेश ने पाकिस्तान उच्चायोग के कई कर्मचारियों को उनकी संदिग्ध गतिविधियों के कारण देश में रहने के नाकाबिल घोषित किया है.

आईएसआई भारत में अपना छद्म युद्ध जारी रखने और खुफिया ऑपरेशंस के लिए अपने बांग्लादेशी सदस्यों का इस्तेमाल करता है. हमारी चौकसी और निगरानी के बावजूद आईएसआई की भारत में गतिविधियां जारी हैं.

मौके की तलाश में हैं आतंकी ताकतें

आईएसआई भारत में रणनीतिक अहमियत के ठिकानों और भारतीय फौज से जुड़ी अहम जानकारी जुटाने के गरज से ज्यादा से ज्यादा जगहों पर अपनी गतिविधियां संचालित करने के फिराक में है. ऐसा नहीं लगता कि उसकी ऐसी हरकतों पर कारगर ढंग से लगाम लगा है.

हफ्ते भर पहले एक ताजा घटनाक्रम में यूपी एटीएस ने झांसी में आईएसआई के एक एजेंट से पूछताछ की. झांसी में सरकारी दफ्तर के निचले स्तर के एक अधिकारी से अपने आईएसआई सरपरस्त को सेना संबंधी अहम जानकारी देने के संबंध में विस्तार से पूछताछ हुई है.

ध्यान देने की बात है कि झांसी में बड़ी फौजी छावनी कायम है. वहां 21वीं कार्प का जमावड़ा है जिसमें एक पूरा डिवीजन और एक बिग्रेड की मौजूदगी शामिल है. यहां एक विशाल फायरिंग रेंज भी है जहां सेना और अर्धसैन्य बलों की इकाइयों के फायरिंग में इस्तेमाल होने वाले हथियार जमा हैं.

RedFort

लाल किले से पीएम मोदी करें भारतीय बलों की तारीफ

आईएसआई की बढ़ती गतिविधियां, दो संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले बांग्लादेशी नागरिकों की गिरफ्तारी. उनके पकड़े जाने का समय जबकि 15 अगस्त का दिन कुछ ही कदम दूर है- यह सारी बातें संकेत करती हैं कि भारतीय सुरक्षा को चोट पहुंचाने वाली ताकतें सक्रिय हैं. आशंका है कि अपने लिए माकूल मौका देखकर ये बुरी ताकतें भारत पर हमला करेंगी.

शुक्र कहिए कि भारतीय खुफिया एजेंसियां आपस में पूरे तालमेल से काम कर रही हैं ताकि हमारे सुरक्षा-तंत्र को चोट पहुंचाने की खुराफाती योजनाओं को नाकाम किया जा सके.

बहुच अच्छा होगा अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त को लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में पुलिस और खुफिया एजेंसियों की सराहना में कुछ शब्द कहें कि इन संस्थाओं ने दुश्मन को नाकाम करने के लिए अथक प्रयास किए हैं.

कश्मीर में हालात सामान्य करने की दिशा में जम्मू-कश्मीर की पुलिस ने बढ़-चढ़कर कोशिश की है. इसके लिए प्रधानमंत्री के भाषण में जम्मू-कश्मीर पुलिस की विशेष रूप से चर्चा की जा सकती है.

मौजूदा हालात को देखते हुए सुरक्षा बलों का मनोबल हर वक्त ऊंचा बनाए रखने की जरुरत है. लोकतंत्र के सबसे ऊंचे यानी प्रधानमंत्री के पद से सुरक्षाबलों की सराहना में चंद शब्द कहें जाएं तो यह उनके मनोबल को ऊंचा रखने में निश्चित ही बहुत मददगार साबित होगा.

(लेखक रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर, सुरक्षा विश्लेषक और इंडिया पुलिस फाउंडेशन के सीनियर फेलो हैं. यहां व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)

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