दिल्ली में 30 जनवरी को फोटोग्राफर अंकित सक्सेना की उसकी गर्लफ्रेंड सलीमा के माता-पिता के हाथों हत्या ने पूरे देश को सकते में डाल दिया है. यह उन किस्सों से थोड़ा अलग है जिसमें ऊंची जाति का हिंदू लड़का कथित 'ऑनर किलिंग' का शिकार होता है. अखबार रक्तरंजित विवरण से भरे हैं कि आठ इंच के चाकू से अंकित की हत्या के बाद सलीमा के पिता और चाचा को भागने में मदद के लिए सलीमा की मां ने किस तरह नकली रोड रेज का ड्रामा खड़ा किया.
अंकित सक्सेना केस के साथ ही लेकिन इससे अलग एक अन्य मामले की 4 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है. अदालत ने हालांकि इस मामले में याचिका का दायरा बढ़ाकर अंकित सक्सेना मर्डर केस को शामिल करने की मांग को खारिज कर दिया, लेकिन इस मामले ने शायद वह माहौल बनाया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने प्रेमी जोड़ों के लिए कुछ बड़े अनोखे सुझाव दिए.
पुलिस कमेटी बनाने का सुझाव
याचिका की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने प्रेमी जोड़ों पर पड़ने वाले खाप पंचायतों, परिवार और अन्य शक्तियों के गहरे दबाव को रेखांकित करते हुए कहा, 'अगर दो वयस्क रजामंदी से शादी का फैसला लेते हैं, तो किसी भी शख्स को, समूह को या सामूहिक रूप से दखल देने या उत्पीड़न करने का अधिकार या सामूहिक अधिकार नहीं है.' इसे खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस विषय पर अपनी सिफारिशें पेश करने को कहा कि क्या प्रेमी जोड़ों को 'विरोध करने वाली शक्तियां' से बचाने के लिए वास्तविक पुलिस कमेटियों की जरूरत है. (यहां याद दिलाते चलें कि हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने हदिया की शादी को गैरकानूनी घोषित कर दिया था क्योंकि वह उसकी पति की पसंद को मंजूर नहीं कर रहा था, तो क्या हाईकोर्ट भी विरोध करने वाली शक्तियों की सूची में शामिल होंगे?)
चाहे जो भी मामला हो, ऐसा लगता कि हमें जल्द ही 90 के दशक में बॉलीवुड के हीरो-हीरोइनों को घर से भागने में मदद करने वाले अधेड़ एंग्लो-इंडियन आंटी-अंकल जैसी भूमिका निभाने वाली अजीबो-गरीब पुलिस कमेटियां देखने को मिलेंगी. अगर यह बहुत अटपटी तुलना नहीं लगती है तो इसे इस तरह देखिए. केंद्र सरकार अगर यह कमेटी बनाने के अदालत के सुझाव पर अमल करती है तो हम ऐसे दौर के गवाह बनेंगे जहां एक तरफ जोड़ों को सुरक्षा देने वाली पुलिस कमेटी होगी और दूसरी तरफ यूपी सरकार के आदेश पर बनाया गया और अभी भी काम कर रहा एंटी रोमियो स्क्वायड (पुकारने में आसानी के फिलहाल इन्हें एआरएस का नाम दे देते हैं) होगा, जो सड़कों पर गश्त कर रहा होगा और किसी भी जोड़े को धमका रहा होगा.
तब क्या होगा जब रोमियो कमेटी की एंटी रोमियो स्क्वायड से मुलाकात होगी? कैसी भिड़ंत होगी और कौन जीतेगा? इसका जवाब कोई नहीं जानता.
लेकिन गंभीरता से देखें तो यह स्पष्ट जाएगा कि यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर ध्यान देने और कदम उठाने की जरूरत है. विचलित कर देने वाले आंकड़े बताते हैं कि 2014 से 2015 के दरमियान 'ऑनर किलिंग' में 800 फीसद का इजाफा हुआ है और आप कोई भी अखबार खोलें, ऐसा लगता है कि उसमें अंतर-सामुदायिक विवाह पर हत्या या हिंसा की एक नई रिपोर्ट जरूर देखने को मिल जाएगी.
ऑनर किलिंग और लव जिहाद
इसी सप्ताहांत अंकित सक्सेना की हत्या के साथ ही सुर्खियां बटोरते हुए कर्नाटक के एक हिंदुत्व ग्रुप ने 100 से अधिक फेसबुक प्रोफाइल प्रकाशित करके दावा किया कि ये लड़कियां जल्द ही 'लव जिहाद' का शिकार बनने वाली हैं और ग्रुप सदस्यों का आह्वान किया कि वो इन महिलाओं के प्रेमियों को 'खोज निकालें' और इन महिलाओं को वापस हिंदू धर्म में ले आएं. यह साफ है कि अंतर-सामुदायिक शादियों को परिवार के अंदर और बाहर बहुत ज्यादा विरोध और नफरत का सामना करना पड़ता है और बहुत से ग्रुप पहले से ही इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
जाने माने फोटोग्राफर मैक्स पिंकर्स की फोटोबुक विल दे सिंग लाइक रेनड्रॉप्स ऑर लीव मी थ्रस्टी (Will They Sing Like Raindrops or Leave Me Thirsty) में भारतीय शादियों के विभिन्न रूपों को प्रदर्शित किया गया है. उदाहरण के लिए इसमें लव कमांडो (Love Commandos), की एक तस्वीर है, जो कि दिल्ली में एक छोटा सा ग्रुप है और जिसका नारा है 'अब और ऑनर किलिंग नहीं', जिसके मुख्य कामों में मुश्किल में घिरे जोड़ों को सुरक्षा और राहत पहुंचाना शामिल है.
उत्पीड़न करने वाली पुलिस रक्षक कैसे बनेगी?
लेकिन जागरूक नागरिकों का परेशानी में घिरे जोड़ों की मदद के लिए एक साथ आना और यही काम करने के लिए सरकार की बनाई पुलिस कमेटी में अंतर क्या है?
सबसे पहला तो यह कि जब प्रेमी जोड़ों को अकेला छोड़ देने की बात आती है तो इस मामले में पुलिस का बहुत अच्छा रिकॉर्ड नहीं रहा है. थोड़ा पीछे 2005 को याद करें जब मेरठ में पुलिस ने कुख्यात और हिंसक 'ऑपरेशन मजनूं' शुरू किया था, जिसमें उसने पार्कों में शांति से बैठे जोड़ों पर उनके हमले को कवर करने के लिए मीडिया को न्योता दिया था. तब से हम दिल्ली से लेकर हरियाणा या केरल तक की अनगिनत रिपोर्ट और वायरल वीडियो देख चुके हैं, जिनमें पुलिस सार्वजनिक जगहों पर बैठे जोड़ों का उत्पीड़न करती दिख रही है.
साल 2014 में हमने हरियाणा में घर से भागकर पुलिस से मदद मांगने वाले एक जोड़े की पुलिस के खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत देखी. ऐसा लगता है कि दक्षिण कर्नाटक में कोई हफ्ता ऐसा नहीं गुजरता जब धर्मरक्षकों से बचते हुए अंतर-सामुदायिक जोड़े पुलिस के पास मदद के लिए ना जाते हों, और बदले में वहां भी इनका बुरी तरह उत्पीड़न होता है. हम कैसे यकीन कर लें कि वही लोग अपनी आजीविका के लिए जोड़ों का उत्पीड़न कर रहे थे, रातों-रात उनके रक्षक बन जाएंगे?
सबसे जरूरी बात, ऐसे कई मामले हैं जहां पुलिस के दखल और प्रभाव पर कायदे से नजर रखने की जरूरत है, और प्रेम संबंध व शादी निश्चित रूप से इस लिस्ट में शामिल है. ऐसा सोचना थोड़ा अनिष्टकारी लगता है कि सभी परेशानी में घिरे जोड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक पुलिस कमेटी होगी, क्योंकि अगर पुराने अनुभव से कोई सबक लेते हैं तो हमें कोई आइडिया नहीं कि कैसे सुनिश्चित करेंगे कि इस पर अमल भी हो.
क्या हम ऐसी स्थिति बनाना चाहते हैं जिसमें पुलिस वाले हम पर निगरानी रखने का जिम्मा अपने सिर ले लेंगे और बताएंगे कि जिंदा रहने के लिए हमें क्या करना चाहिए, या एकदम सटीक रूप से उन्हें पता होगा कि हम अपना सारा समय कहां गुजारते हैं?
क्या सिविल पुलिसिंग करेगी सरकार?
और अंत में, देश में जो कुछ भी होता है, और जैसी भी स्थिति हो बढ़ाई हुई सरकार का वास्तविक जरूरत के मुताबिक ऑटोमेटिक रिस्पांस सिस्टम कैसे काम करेगा? जबकि राज्य पर अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, तो सशस्त्र संगठनों से सुरक्षा सिर्फ नागरिकों के जीवन में दखल बढ़ाकर नहीं की जा सकती है. बलात्कार (सीसीटीवी की मदद से समाधान) से लेकर कश्मीरी लड़कियों के सड़कों पर निकल कर राजनीतिक प्रदर्शन करने (जिसका सामना नई सिर्फ महिलाओं की पुलिस बटालियन की मदद से करेंगे) से लेकर उत्तर प्रदेश में लड़कियां छेड़ने वाले (एआरएस की मदद से समाधान) तक ऐसा सामाजिक माहौल है जो अंतर-समुदायिक शादी का विरोधी है. ऐसे में क्यों ऐसा लगता है कि किसी भी तरह की समस्या में सरकार का तयशुदा उत्तर सर्विलांस बढ़ाने और नागरिकों की पुलिसिंग होगा?
यह प्रवृत्ति उस जुमले से काफी प्रतिगामी महसूस होती है जिसमें मौजूदा सरकार द्वारा कहा जाता है कि वह 'मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिम गवर्नेंस' का प्रयास कर रही है. सरकार के कदम भले ही भविष्य की चुनावी तैयारी का हिस्सा लगते हैं, लेकिन नई सरकार की मशीनरी का जरूरत से ज्यादा दखल, जो कि वो कर चुके हैं, देखते हुए यह वास्तव में मिनिमम गवर्मेंट, मैक्सिम गवर्मेंट की स्थिति लगती है, हालांकि जब उन्होंने कहा था, तब शायद इसका यह अर्थ नहीं था.
(The Ladies Finger (TLF) महिलाओं की एक जानी मानी ऑनलाइन मैगजीन है, जिसमें राजनीति, संस्कृति, स्वास्थ्य, सेक्स, काम और इन सबके बीच में आने वाली हर बात पर ताजा व मजेदार विचार रखे जाते हैं)
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.