‘कोर्ट से हमारा घर, सबसे नज़दीक है लेकिन जिस फैसले की आप बात कर रहे हैं वह तो कल दोपहर को जेल में होना है, वहीं कोर्ट लगेगा. और आपके घर से जेल कितनी दूर है? जेल भी डेढ़-दो किलोमीटर पर है’. भई आप तो शायर और कवि भी हैं, जोधपुर के हैं, आने वाले फैसले को लेकर कोई डर तो नहीं है, खासतौर से तब, जब शहर में कानून-व्यवस्था को देखते हुए धारा-144 लगाई गई हो? ‘उसकी वजह तो आपको पता ही है, मतलब आप एक जोधपुरी के चश्मे से देखें तो आपको भी अजीब सा जरूर लगेगा’.
आप तो इसी शहर से हैं, आपको कैसा लग रहा है? 'देखिए हमारे अंदर जो जोधपुर है उसके लिए मैं अपने दादा मरहूम ‘रम्ज़ी इटावी’, जो यूपी से आकर यहां बसे थे, उनका एक शेर आपको सुना देता हूं, 'और शहरों में खून मिलता है/ जोधपुर में सुकून मिलता है'. लेकिन हमने तो ये तमाशे जोधपुर में खूब देखे हैं, जितने ये बाबा के चेले-चपाटे आते हैं, कभी सड़कों पे लेट जाते हैं तो कभी और कोई तमाशा करते हैं. उनका यहां आश्रम भी है. लोग तो यह भी अनुमान लगाते हैं कि भई, इनके पास पैसे की कमी नहीं, इनके ख़िलाफ़ गवाही देने वालों के साथ बहुत कुछ हुआ भी है...’
तो ऐसे में धारा-144? 'जी अब क्या कहा जाए इसे, ये तो जोधपुर वालों को उनके उन गुनाहों की सज़ा मिल रही है जो उन्होंने किए भी नहीं. एक आसाराम के फैसले की क्या बात की जाय, भई! आसाराम है, मलखान है, मदेड़ना है, भंवरी-काण्ड है, सलमान खान है. बहुत सारे फैसले इस शहर ने देखे हैं. एक बार जब यहां पर कोर्ट में फायरिंग भी हुई थी तो हमारी ही रोड पर हुई. जिसमें एक आदमी भागा था. तो ये तो वो गुनाह हैं जिसमें किसी जोधपुरी का कोई रोल नहीं है लेकिन अब क्या कीजिये’.
क्या कल शहर में लोग नहीं निकलेंगे? ‘नहीं ऐसा तो नहीं है, लोग निकलेंगे क्यों नहीं, लेकिन बस ये है कि थोड़ा सा... सहमे हुए निकलेंगे. क्योंकि राम-रहीम वाले में जो अनुभव हरियाणा सरकार को हुआ वह भी सामने है. वहां भी बीजेपी की सरकार थी यहां भी भाजपा की सरकार है. यह सब भी यहां के लोगों के ध्यान में है. ऐसे में एक खौफ तो रहेगा ही. लेकिन रोजमर्रा की मजबूरियां तो निकालेंगी उन्हें’.
‘यहां शहर के हर होटल को, हर चार घंटे पर चेक किया जा रहा है’. रेलवे-स्टेशन का वह गेट जो जेल की तरफ खुलता है उसे कम्पलीटली बंद कर दिया गया है. प्रशासन पूरी तरह चाहेगा कि शहर का अम्नो-अमान न बिगड़े. लेकिन इसके बावजूद शहरी इस खौफ में रहेंगे कि कुछ हो न जाए, और सरकार भी हर सूरत में चाहेगी कि हरियाणा दुबारा न रिपीट हो’.
ये है जोधपुर के एक शहरी का बयान जो संवेदनशील है, शायर है, नाम है माहिर-जोधपुरी. जोधपुर के एक कॉलेज में उर्दू और हिस्ट्री पढ़ाता है. उस शहर का बाशिंदा है जहां कल आसाराम के जुर्मों पर अदालत अपना फैसला देगी. जिन धराओं में आसाराम जेल गए थे, वैसी धाराओं के अनगिनत फैसले देश की हजारों अदालतों में हैं और जिनपर लगभग रोज फैसले लिए जाते हैं. हर फैसले में तो प्रशासन को 144 की जरूरत नहीं पड़ती. सलमान खान के फैसले के समय भी प्रशासन की व्यवस्था ऐसी ही चाक-चौबंद थी मगर 144 की जरूरत फिर भी नहीं पड़ी थी.
एक नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार के आरोप में करीब साढ़े-चार साल से आसाराम जेल में हैं. इस दौरान हाई-कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, दर्जन भर जमानत याचिकाएं कर चुके हैं. देश के नामी और जिताऊ वकील चाहे वो राम जेठमलानी हों, सुब्रमण्यम स्वामी हों या सलमान खुर्शीद, सबसे अपने केस की पैरवी करवा चुके हैं. लेकिन भारतीय दंड-संहिता की वह 14 धाराएं इतनी बेरहम हैं कि बाबा की हवालात का ताला नहीं खुल रहा है.
पिछले दिनों उन्नाव, कठुआ जैसी बलात्कार की घटनाओं पर देश की जनता ने जिस आक्रोश की नुमाइश की है और राजस्थान-सरकार के इकबाल में जिस तरह की कमी देखी जा रही है उसके मद्देनजर सरकार अगर फिक्रमंद न हो तो अजीब ही बात होगी और धारा-144 लगाकर उसने सांकेतिक तौर पर यह इशारा तो कर ही दिया है कि कानून-व्यवस्था के साथ खेलने के परिणाम अच्छे नहीं होंगे.
लेकिन दूसरी तरफ देश में बाबा के भक्त हैं जो यह मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि उनके बाबा इतनी घिनौनी हरकतें कर सकते हैं. उन्हें इसमें साजिश लगती है या जो उन्हें लगता है उसकी कीमत उन्हें अच्छी लगती है. यह धाराएं हैं, 376 (एफ), 375 (सी), 509/34, 506, 354(ए), 370(ए), 120(बी), 109, पोक्सो एक्ट की पांच धाराएं और 375(सी). यह धाराएं ऐसे व्यक्ति पर लगती हैं जिसने रिश्तेदार, अभिभावक या धर्मगुरु बनकर किसी का बलात्कार किया हो या लड़की के अंगों को छेड़ा हो, शीलभंग किया हो, जान से मारने की धमकी दी हो, बाल तस्करी की हो या साजिश रची हो या अपराध के लिए मजबूर किया हो.
जोधपुर के ही एक और शहरी और क्रिमिनल के वकील फरजंद अली ने इसका कानूनी पक्ष बताते हुए कहा कि ‘सामान्य समझ में कहें तो कल अदालत इस बात का फैसला लेगी कि आसाराम दोषी हैं भी या नहीं. या तो वह बरी हो सकते हैं या फिर अगर दोषी पाए गए तो फिर सजा के बिंदुओं पर पॉइंट ऑफ़ सेंटेंस सुना जाएगा, कि आपको क्या कहना है, क्या नहीं कहना है वगैरह. इसको लेकर सुनवाई और भी टल सकती है, या फिर अदालत यह कह सकती है कि आपके अपराध को देखते हुए कोर्ट आपको ये ... ये सजाएं देती है.
लेकिन क्योंकि ये फैसला एक हाई-प्रोफाइल बाबा को लेकर है, जिसके समर्थक देश भर में हैं, व्यवस्था में हैं, सियासत में हैं, आस्था के कारोबार में हैं फलस्वरूप इस पूरे घटना-क्रम में वह सारे गुण मौजूद हैं जो देश की वर्तमान स्थितियों में चिंगारी बन सकते हैं. इसलिए माहिर जोधपुरी और उनके शहरियों को या देश के दूसरे नागरिकों को अगर कोर्ट के किसी फैसले को लेकर अपनी जान-माल का खतरा लगता है तो इसमें हैरत करने की क्या जरूरत है.
हैरत तो इस बात पर होनी चाहिए कि लोकतंत्र को मजबूत करते-करते हम उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं जहां अदालतों को फैसला लेने से पहले शहर-कोतवाल से इजाजत लेनी पड़ती है.
हुज़ूर आप कहें तो फैसला सुनाऊं!
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