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व्यंग्य: मर्द को भी दर्द होता है भाई

इतिहास गवाह है कि मुफ्त वैधानिक चेतावनी के आधार पर किसी ने आज तक कुछ नहीं छोड़ा है

Updated On: Jun 24, 2017 07:36 PM IST

Shivaji Rai

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व्यंग्य: मर्द को भी दर्द होता है भाई

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने फिल्म 'दीवार' में डॉयलाग क्या बोला कि 'मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, दौलत है, शोहरत है.' सभी उनकी दौलत और शोहरत के पीछे ही पड़ गए हैं. आम से लेकर खास तक सभी अमिताभ को वैराग्‍य अपनाने का सुझाव दे रहे हैं. कोई उन्‍हें सरकारी विज्ञापनों से दूर रहने की सलाह दे रहा है तो कोई ब्रांड एंबेसडर नहीं बनने की हिदायत दे रहा है.

कुछ तो पनामा मामले में स्वच्छ होने तक सरकारी अभियान और योजनाओं के प्रचार-प्रसार से दूरी बनाए रखने को कह रहा है. अमिताभ समझ नहीं पा रहे हैं कि इन मूर्खों को घोड़ा और घास की दोस्ती का सिद्धांत कैसे समझाएं. कैसे बताएं कि बिना सूद का उधार किसी काम का नहीं होता है. कैसे बताएं कि लोकप्रियता लोकतांत्रिक हो सकती है पर बिना अर्थ लाभ के उसमें सामंती हनक नहीं दिखती है.

बिग बी नहीं तो कौन करेगा विज्ञापन!

bachchan in gst

बड़े बुजुर्ग भी कह गए हैं कि सांप अगर काटना छोड़ दे, सूखे रुद्राक्ष की माला लगने लगता है. उस लिहाज से सदी का महानायक सरकारी विज्ञापनों का चेहरा नहीं बनेगा, तो क्या कनछेदी लाल की तरह सिर्फ सिनेमा में 'पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी' की धुन पर कमर मटकाएगा.

वैसे भी विज्ञापन में व्यक्ति का क्या महत्‍व. विज्ञापन में तो भाव-भंगिमा और भाषा का महत्‍व होता है. शब्‍द दोअर्थी हों और भाव-भंगिमा भड़कीला हो तो सदी के महानायक हों या सन्नी लियोनी दोनों का एक सा असर होगा. विरोध करने वालों को समझना चाहिए कि विज्ञापन में नेचुरल लेबर पेन नहीं होता है. यह तो सिजेरियन केस की तरह होता है. बिना दर्द, बिना छटपटाहट के ही लल्ला-लल्ला लोरी गाने का सौभाग्‍य मिल जाता है.

 

फिर अदने विज्ञापन को लेकर बिग-बी पर सियासी लोभ का तोहमत लगाना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है. सिनेमा का सियासत से क्‍या सरोकार. वैसे भी नेता और अभिनेता में कोई सीधा संबंध नहीं होता. नेता कभी नाटक नहीं करते हैं और अभिनेता कभी देश का चिंतन नहीं करते हैं. समाजवादी अमर सिंह की वजह से दोनों का जुड़ाव भी होता है तो मीडिया में हो-हल्‍ला हो जाता है.

आज किसी ने कुछ छोड़ा है!

Mumbai: Bollywood actor Amitabh Bachchan walks the ramp in an outfit by designers Abu Jani and Sandeep Khosla in Mumbai on Sunday. PTI Photo(PTI2_27_2017_000072B)

भले ही दोनों क्षेत्रों में नकछेदी लालों और शूर्पणखाओं की कमी नहीं है. बावजूद इतना तो मानना ही होगा कि बिग-बी ना तो नकछेदी लाल हैं और ना ही शूर्पणखा. वह तो आसमानी होते हुए भी जमीन पर खेलते रहे हैं. हजारों अन्‍नदाताओं की तरह वह एक 'किसान' हैं. यह अलग बात है कि उनके किसान होने पर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. इतिहास गवाह है कि मुफ्त वैधानिक चेतावनी के आधार पर किसी ने आज तक कुछ नहीं छोड़ा है, फिर अमिताभ बच्‍चन जीएसटी के ब्रांड एंबेसडर का पद कैसे छोड़ दें.

अमिताभ 'देवदास' फिल्‍म के देव बाबू थोड़े ही हैं जो लोगों की मांग पर एक-एक चीज छोड़ते जाएं और अंत में हाथ में सिर्फ शराब की बोतल रह जाए. वैसे भी वैराग्‍य अपनाने का सुझाव देने वाले दिव्‍यदृष्टि प्राप्‍त महाभारत के संजय नहीं हैं ये तो अंगूर खट्टे हैं वाले निराश कांग्रेस के संजय (निरूपम) हैं. ज्ञानीजन भी कहते हैं कि बाल-बच्‍चेदार व्‍यक्ति की छोड़ने की एक सीमा होती है और वैराग्‍य की राय देने वाले का स्‍तर होता है. इसमे दोनों ही मामले नहीं बनते हैं.

क्या करें, क्या न करें 

खुद सत्‍ता के मोह में मरे जा रहे प्रबुद्ध कांग्रेसी कह रहे हैं कि व्यापारियों के हित में जीएसटी का विज्ञापन न करें. समाजवादी अमर सिंह कह रहे हैं कि पनामा में स्वच्छ होने तक अतुल्य भारत अभियान से दूर रहें. पिछले यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव कह रहे थे कि गुजराती गधों का महिमा मंडन न करें. यह तो 'क्‍या करें, क्‍या ना करें' की स्थिति है.

आज अमर सिंह और अखिलेश विज्ञापनों में सरकार की सोच का चेहरा नहीं बनने की सलाह दे रहे हैं. कल तक उन्हीं के पिता और अमर सिंह के जिगरी दोस्‍त मुलायम ने अमिताभ को यूपी की सोच का चेहरा बनाया था.और विज्ञापनों में 'यूपी में है दम, क्‍योंकि यहां अपराध है कम' का जयघोष कराया था.

अवधू गुरु का तो कहना है कि 'सरकार' को सत्‍ता बरकरार रखने के लिए इन सुझावों नजरअंदाज करना चाहिए. गुरु का कहना है कि 'मर्द को दर्द नहीं होता' वक्‍त के हिसाब से अमिताभ ने भले कह दिया. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मर्द को दर्द नहीं होता है. लिहाजा अमिताभ को विज्ञापन से नहीं, अपने ज्ञान-विज्ञान की गलत सोच को बदलें!

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