तो काले हिरण का मामला आखिर अब अपने मुकाम पर पहुंच गया है! लेकिन सवाल रहेगा कि क्या मामला सचमुच अपने आखिर मुकाम पर पहुंचा है? बात ताकतवर और अमीर लोगों की हो, वीवीआईपी लोगों की हो तो कहना मुश्किल है कि मामला शुरू होकर आखिर कहां ठहरेगा. सलमान खान को दोषी तो पहले भी करार दिया गया है और अदालतों ने जमानत के कागजात पर दस्तखत करने में नरमी दिखाई है ताकि सलमान को रात जेल में ना गुजारनी पड़े. एक वक्त वह भी था जब एक हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को यह कहते हुए पलट दिया था कि ‘बेशक संदेह गहरा है कि जुर्म हुआ होगा लेकिन इसकी बिनाह पर किसी आदमी को मुजरिम करार नहीं दिया जा सकता’.
इसे कहते हैं आदमीयत- मतलब वही जो सलमान खान के टी-शर्ट पर लिखा दिख जाता है- बीईंग ह्यूमन!
अब इस नुक्ते को लेकर उलझने की जरुरत नहीं कि सलमान खान को जेल मिली जबकि मिलनी बेल (जमानत) चाहिए थी. कानून का अपना तरीका है, वह ऐसे ही काम करता है. हम सलमान खान पर इस बात के लिए गुस्सा नहीं पाल सकते कि उन्होंने हासिल तमाम साधनों का इस्तेमाल किया और मामला चाहे काले हिरण को मारने का हो या चिंकारा के शिकार करने का या फिर फुटपाथ के लोगों को रौंद डालने का- ऐसे हर मामले में अपने को कानून के कठघरे से खींच निकाला.
सजा होती या न होती, लोग फालतू के तर्क जरूर देंगे
सलमान खान को पांच साल की जेल हुई तो कुछ लोग कहेंगे कि एक सुपरस्टार को उसके सुपरस्टार होने के लिए सजा दी गई है- वामन ने बालि को पटखनी दी है, एक कमजोर की ईर्ष्या झांक रही है कि सामने वाला मुझसे बलवान कैसे! कुछ लोगों को लगेगा कि पांच की साल की जेल हुई लेकिन इंसाफ नहीं हुआ, कानून अंधा जो होता है! और कुछ लोग कहेंगे कि चलो जो कुछ अमुक-अमुक मामलों में होना चाहिए था और ना हो सका था, उसकी इस मामले में भरपाई हो गई.
अब बात चाहे जो हो लेकिन इन सबसे अलग हमलोगों के लिए सबसे ज्यादा आंख खोलने वाली यहां एक खास बात है. मामले में हमने देखा कि कानून अपनी राह पर काम करता रहा, इंसाफ का चक्का चलता रहा और एक काले हिरण को न्याय मिलने में पूरे 19 साल लग गए. मेहरबानी करके यहां याद कीजिए कि काले हिरण की जिंदगी 10-15 सालों की होती है.
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इस प्रक्रिया में हमने बहुत कुछ होते देखा. सलमान के वकील ने दलील रखी कि उन्हें झूठ-मूठ ही फंसाया गया है. साल 1998 में मैजिस्ट्रेट के सामने सलमान के ड्राइवर हरीश दुलानी का बयान दर्ज हुआ और उसे छोड़ दिया गया. और, दुलानी को हासिल आसानी देखिए कि वह इसके बाद कभी जिरह का सामना करने के लिए अदालत ही नहीं आया. फ़र्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अदालत में 38 गवाहों के बयानात हुए जिसमें 8 अपनी बात से मुकर गए.
एक ओर हमारे सामने यह सूचना आती है कि सलमान खान देर रात शिकार पर निकले, अपनी जिप्सी में जानवर का पीछा किया और उसकी गर्दन रेत डाली जबकि दूसरी तरफ हम एनडीटीवी पर सलमान खान को यह बताते सुनते हैं कि उन्होंने दुर्दशा में पड़े एक हिरण की जान बचाने की कोशिश की, उसे बिस्किट खिलाया, पानी पिलाया. यह हिरण झाड़ियों में फंस गया था. लेकिन क्या करें कि हिरण ना बच सका, ठीक वैसे ही जैसे फुटपाथ के वे लोग नहीं बच सके थे. अब इन दोनों बातों में से किसी एक बात से जज को सहमत तो होना ही था ना.
ऐसे तर्क कितने सही?
लेकिन इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प रहा यह देखना कि सलमान खान के मुहाफिज बने लोगों ने उनके बचाव में क्या-क्या कहा. फुटपाथ के लोगों पर कार चढ़ाने वाले मामले में गायक अभिजीत ने एक हंगामाखेज बयान दिया था. कहा था कि दोष उन्हीं का है जो फुटपाथ पर सो जाते हैं ताकि कार उनपर चढ़ जाए.
अभी के मामले में फिल्म ट्रेड एनालिस्ट (फिल्म व्यवसाय के विश्लेषक) सुमित कदील ने ट्वीट किया था कि 'सलमान खान को मामले की सुनवाई के दौरान पूरे बीस सालों तक लगातार जोधपुर के चक्कर लगाने पड़े. उन्होंने बहुत परेशानी झेली है. कानून के सामने बेशक सभी बराबर हैं लेकिन मुझे लगता है, सलमान खान का जुर्म ऐसा नहीं कि उन्हें जेल भेज दिया जाए.' सोचिए कि नैतिकता का यह कैसा विचित्र चश्मा है जिसको आंखों पर चढ़ाकर आप देख लेते हैं कि जिस इलाके में आपने जुर्म किया उस इलाके में मामले की सुनवाई चल रही हो और वहां जाने में आपको दिक्कत पेश आ रही हो तो आपके जुर्म की सजा पर विचार करते हुए इस परेशानी को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.
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जया बच्चन ने कहा कि 'मुझे बुरा लगा. उन्हें राहत मिलनी चाहिए थी. उन्होंने मानवता की भलाई के लिए काम किए हैं.' तर्क यहां भी वही है कि आपने कोई एक अच्छा काम किया है तो इसके आधार पर आपके दूसरे बुरे काम का दंड पर फैसला लेते समय विचार किया जाना चाहिए. सलमान खान ने मानवता की भलाई के लिए बेशक काम किए हैं लेकिन भलाई के इन कामों को क्या जेल का ताला खोलने की चाबी मान लिया जाए? जया बच्चन जिस पार्टी से सांसद हैं, उसके सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार से संबंधित कानून पर चली बहस में कहा था कि लड़के हैं, लड़कों से गलती हो ही जाती है और सलमान खान के मामले में भी उन्होंने इसी टेक पर कहा है कि 'सलमान खान तब नौजवान थे और गलती से हिरण को मार दिया था, नौजवानों से गलती हो ही जाती है. आज वे एक रोल मॉडल हैं, सो उन्हें सजा नहीं होनी चाहिए.'
नुकसान एक आम आदमी भी उठाता ही है, फिर सलमान क्यों नहीं?
ध्यान रहे कि सलमान खान तब 30 साल के हो चुके थे. संभव है, तब वे मनमौजी रहे हों लेकिन अगर उन्होंने कानून तोड़ा तो इसकी सजा मिलनी चाहिए. सिने-अभिनेताओं के अपने अंधे प्रेम में हम ये सीधी-सरल बात एक सिरे से ही भुला बैठते हैं. यह तर्क भी नहीं चल सकता कि जिन फिल्मों में सलमान खान अभी कोई किरदार निभा रहे हैं उन्हें नुकसान उठाना होगा, सो सलमान को जेल नहीं होनी चाहिए. नुकसान तो बहुत से कमजोर तबके के लोगों को भी उठाना पड़ता है, जिसमें वैसे लोगों के परिवार भी शामिल हैं जो विचाराधीन कैदी के तौर पर जेल में बंद हैं.
आने वाली ईद में फिल्म रिलीज होनी है- इस तथ्य का अदालत के फैसले पर कोई असर नहीं होना चाहिए. इस दलील का भी कोई तुक नहीं कि बहुत से बाघ मारे जा रहे हैं और इन बाघों के शिकारी छुट्टा घूमते हैं. यह तर्क भी नहीं दिया जा सकता कि इस मुल्क में तो जनसंहार के दोषियों तक को उनके जुर्म की सजा नहीं मिली. पिछले पाखंड को आगे लाकर सामने दिखती गलती को नकारना का तरीका कानून की दुनिया में नहीं चलता. कुछ लोगों ने मामले में एक मजहबी रंगत देखी और झट से टेलीविजन पर बोले कि मुस्लिम होने की वजह से सलमान को निशाना बनाया गया है. ध्यान रहे कि अगर सलमान बरी हो जाते तो कुछ लोग कहते कि आखिर जिस आदमी ने नरेंद्र मोदी के साथ पतंग उड़ाई हो उसके बारे में और क्या फैसला आता.
इतने पर भी पछतावा तक नहीं
इस पूरे फसाने में अगर कुछ नहीं दिख रहा है तो वह है जुर्म के आरोपी व्यक्ति का पछतावा. हमने देखा कि जुर्म के आरोपी पर अदालत में जो भी सवाल उठे, सबके जवाब में उसने कहा- गलत! फुटपाथ के लोगों पर कार चढ़ाने के मामले में हमने देखा कि बलि का बकरा ड्राइवर बना, सारा दोष उसने अपने मत्थे ले लिया. अब इन बातों से पछतावे की झलक कहां मिलती है. और अचरज कहिए कि जो लोग आज सलमान के माथे पर सांत्वना भरी थपकी देते हुए कह रहे हैं बिश्नोई समाज इस गुनाह को माफ कर दे, भुला दे, उन्हें यह तक नहीं महसूस हो रहा कि जुर्म का आरोपी आदमी जो अब दोषी करार दिया गया है, की भी कुछ जिम्मेवारी बनती थी कि वो कुछ पछतावा जाहिर करता.
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इस अर्थ में देखें तो बिश्नोई समाज के धीरज की दाद दी जानी चाहिए जो मामले में आए तमाम उतार-चढ़ाव के बीच काले हिरण और अपनी सामुदायिक आस्था के पक्ष में अविचल खड़ा रहा, उसने कभी हार ना मानी. कई लोग कह सकते थे कि बस एक हिरण की ही तो बात है. कुछ और बिश्नोई अपने मकसद को लेकर संघर्ष छेड़ दें तो इससे पर्यावरण-संरक्षण के आंदोलन का भला होगा.
सुनने में आया है कि फैसले को सुनकर सलमान खान के आंसू निकल पड़े. पता नहीं क्यों लेकिन मुझे लगता है- वे आंसू काले हिरण के लिए नहीं निकले होंगे, चिंकारा के लिए भी नहीं, फुटपाथ पर रौंदे गए लोगों के लिए भी नहीं. वे आंसू एक वीवीआईपी के इस गहरे संताप से निकले होंगे कि कभी-कभी ‘सब मैनेज हो जाएगा’ का मंत्र मौके पर काम नहीं करता. भले ही कोई एक रात ही जेल में गुजारनी पड़े लेकिन उस रात भर के लिए ही सही, कानून की नजर में हम सब एक साबित होंगे.
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