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सबरीमाला मामला: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, TDB ने कहा- सभी उम्र की महिलाएं मंदिर में कर सकती हैं प्रवेश

28 सितंबर, 2018 में सुप्रीम कोर्ट के इस पर दिए निर्णय का कई हिंदूवादी और सामाजिक संगठनों ने घोर विरोध किया था. उनके मुताबिक इससे उनकी धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं पर चोट पहुंची है

Updated On: Feb 06, 2019 05:00 PM IST

FP Staff

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सबरीमाला मामला: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, TDB ने कहा- सभी उम्र की महिलाएं मंदिर में कर सकती हैं प्रवेश

केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश वाले फैसले पर दायर पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज यानी बुधवार को सुनवाई हुई. शीर्ष अदालत ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

सुनवाई के दौरान मंदिर की देखभाल (Manage) करने वाली ट्रैवनकोर देवास्वोम बोर्ड (TDB) ने कोर्ट में कहा कि सभी उम्र की महिलाओं को अयप्पा के मंदिर में प्रवेश की अनुमति देनी चाहिए.

इससे पहले नायर समाज की तरफ से वरिष्ठ वकील के.परासरण ने सुनवाई में पेश होकर निर्णय के खिलाफ दलील पेश की.

इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले पांच जजों की बेंच कर रही है. इस बेंच में जस्टिस आर.एफ नरीमन, जस्टिस ए.एम खानविलकर, जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं.

सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के दिए इस निर्णय पर कई हिंदूवादी और सामाजिक संगठनों ने नाराजगी जताई थी. उनके मुताबिक इससे उनकी धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं पर चोट पहुंची है. नेशनल अयप्पा डिवोटीज़ एसोसिएशन (NADA) और नायर सेवा समाज जैसे 17 संगठन मुख्य रूप से इस पुनर्विचार याचिका (Review Petition) को दायर करने में शामिल हैं.

निर्णय के खिलाफ केरल में जारी भारी विरोध-प्रदर्शनों के बीच सबरीमाला तीर्थयात्रा के बाद बीते 19 जनवरी को भगवान अयप्पा के मंदिर के कपाट को बंद कर दिया गया था.

सबरीमाला मंदिर पर क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में हर आयु की महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति दी थी. अदालत ने अपने ऐतिहासिक फैसले में मंदिर में 10 से लेकर 50 वर्ष उम्र की महिलाओं के प्रवेश करने को लेकर फैसला सुनाया था.

तत्कालीन चीफ जस्टिस (सीजेआई) दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने 4-1 के बहुमत से यह निर्णय सुनाया था. इस बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि मासिक धर्म (Menstruation Cycle) उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देना उनके मूलभूत अधिकारों और संविधान में बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है.

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