सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते माहवारी वाली महिलाओं से प्रतिबंध उठने के बाद सबरीमाला मंदिर जाने की कोशिश कर रही युवा महिलाओं या उनकी मदद करने वाली महिलाओं पर बढ़ते हमलों को लेकर सिविल सोसाइटी की चुप्पी पर केरल की महिलाएं अचंभे में हैं. महिला एक्टिविस्ट ने तीर्थयात्रा के लिए 50 साल से कम उम्र की महिलाओं को समर्थन देने वाली 39 वर्षीय एक्टिविस्ट के घर पर हमले को लेकर चिंता जताई है. अपर्णा शिवाकामी के घर पर पत्थर फेंकने की घटना तब हुई, जब वह 41 दिनों के ‘व्रतम’ (तपस्या) के बाद मंदिर जाने को तैयार तीन महिलाओं के लिए कोच्चि में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की तैयारी कर रही थीं.
मंदिर में दर्शन को जाने वाली इन तीन युवा महिलाओं का प्रवेश का विरोध करने वाले महिलाओं को उकसाने का कोई इरादा नहीं था. उन्होंने मीडिया से कहा कि वह तब तक इंतजार करने को तैयार थीं, जब तक उन्हें शांतिपूर्वक मंदिर जाने की इजाजत नहीं दे दी जाती. फिर भी प्रदर्शनकारी उनको सुनने के लिए तैयार नहीं थे, उन्होंने पहले उन पर हमला किया और बाद में उनके घरों में तोड़फोड़ की.
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शिक्षक और कैंसर सर्वाइवर शिवाकामी कहती हैं, ‘मैंने व्यक्तिगत हमले की उम्मीद नहीं की थी, क्योंकि इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने सिर्फ उन लोगों को निशाना बनाया था जिन्होंने मंदिर जाने की कोशिश की थी. मैंने शुरुआत में यह स्पष्ट कर दिया था कि मेरा दर्शन को जाने का कोई कार्यक्रम नहीं है. मेरे घर पर हमले से पता चलता है कि प्रदर्शनकारी उन लोगों को भी नहीं छोड़ेंगे जो महिलाओं के मुद्दे का समर्थन कर रहे हैं.’
अपर्णा शिवाकामी के घर पर धर्मरक्षकों ने हमला किया था
वह कहती हैं कि सु्प्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने वाले लोग महिलाओं को आतंकित करने की कोशिश कर रहे थे, ताकि कोई भी सबरीमाला में जाने की हिम्मत ना कर सके. वह कहती हैं प्रदर्शनकारी लैंगिक समानता की वकालत करने वाली एक्टिविस्ट तृप्ति देसाई को कोच्चि हवाई अड्डे से वापस लौटने पर मजबूर करने के बाद जश्न मनाते दिख रहे थे.
मंडलाकला मकराविलाक्कु फेस्टिवल सीजन के शुरू होने के बाद तीर्थयात्रा का प्रयास करने वाली 50 साल से कम उम्र की पहली महिला तृप्ति को वापस लौटने को मजबूर होना पड़ा, क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने 16 नवंबर को लगभग 13 घंटे हवाई अड्डे पर उन्हें घेरे रखा था. राज्य के विभिन्न हिस्सों में सबरीमाला जाने के लिए निकली इसी तरह आधा दर्जन अन्य महिलाओं को बीच रास्ते में अपने इरादे को त्यागने के लिए मजबूर होना पड़ा. तब से, केरल पुलिस द्वारा संचालित डिजिटल क्राउड मैनेजमेंट सिस्टम में दर्शन के लिए पंजीकृत लगभग 800 महिलाओं समेत प्रतिबंधित आयु-वर्ग की किसी भी महिला ने मंदिर में प्रवेश करने का कोई प्रयास नहीं किया है. इस बखेड़े से न सिर्फ महिलाएं बल्कि बहुत से पुरुष तीर्थयात्री भी सबरीमाला से दूर रहे, जिससे श्रद्धालुओं की संख्या में भारी गिरावट देखी गई.
विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार ने 50 वर्ष से कम आयु की महिलाओं को सुप्रीम कोर्ट के ‘निर्णय’ द्वारा उनको दिए अधिकार का प्रयोग नहीं करने के लिए कहा है, जो कि उनके द्वारा मंदिर की परंपराओं और रूढ़ियों पर विश्वास का स्पष्ट संकेत हैं. हालांकि, कई सोशल एक्टिविस्ट का कहना है कि प्रतिबंधित आयु वर्ग की महिलाएं इस पहाड़ी मंदिर में संघ द्वारा बनाई गई युद्ध जैसी स्थिति के कारण आगे नहीं आ रही थीं. कम्युनिटी हेल्थ स्पेशलिस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. ए.के जयश्री कहती हैं कि अगर संघ और बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को हटा लेते हैं तो सैकड़ों युवा महिलाएं दर्शन को आएंगी.
सिविल सोसायटी, खासकर सांस्कृतिक नेताओं की चुप्पी से अचंभित हैं
‘केरल की महिलाओं की आस्था अटल है, लेकिन उनमें से बहुत सी महिलाएं आस्था और मानवाधिकारों के बीच संतुलन रखती हैं. जाति, धर्म और लिंग की सभी बाधाओं के खिलाफ निरंतर संघर्ष के माध्यम से राज्य ने एक नई सामाजिक व्यवस्था हासिल की है. आज की महिलाएं शिक्षित, कामकाजी और संपूर्ण हैं. जयश्री कहती हैं, ‘यह सोचना बेवकूफी है कि वे आस्था के लिए अपने कड़ी मेहनत से हासिल अधिकारों का त्याग कर देंगी.’
उनका कहना है कि आर्थिक व्यवस्था के कारण बड़ी संख्या में महिलाएं दबाई जाती रही हैं, जो विवाह और पारिवारिक जीवन के पारंपरिक मूल्यों में भी समाहित हो गया. वह कहती हैं, ‘महिलाओं के पास अपने अस्तित्व के लिए इसे स्वीकार करने के सिवा कोई चारा नहीं है. दक्षिणपंथी संगठन अपने संकीर्ण लाभ के लिए इस परिस्थिति का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.’ जयश्री का मानना है कि दक्षिणपंथी धर्मरक्षक इसलिए हावी हो रहे हैं, क्योंकि समाज के प्रगतिशील वर्गों में कोई हलचल नहीं है. जयश्री कहती हैं कि वह सिविल सोसायटी, खासकर सांस्कृतिक नेताओं की चुप्पी से अचंभित हैं, जो मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे पर हमेशा मुखर रहते थे.
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सोशल एक्टिविस्ट चेतावनी देती हैं कि अगर दक्षिणपंथियों को अपनी चलाने की छूट दी जाती है तो लोग स्वतंत्रता और सुरक्षा खो देंगे. वह सभी लोकतांत्रिक सोच वाले लोगों से आग्रह करती हैं कि अयप्पा दर्शन के लिए यात्रा करने का हौसला दिखाने वाली महिलाओं को निशाना बनाने और अलग-थलग करने की कोशिशों का विरोध करें. मानवाधिकार वकील संध्या राजू कहती हैं कि जनता की राय गढ़ने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले सांस्कृतिक नेताओं की सामाजिक जिम्मेदारी है कि वो ‘राज्य को वापस पाषाण युग में ले जाने वाली’ प्रतिगामी शक्तियों का विरोध करें. उन्होंने कहा कि कई ने खतरे को महसूस करना शुरू कर दिया है, लेकिन उनकी आवाजों को धर्मरक्षक समूहों द्वारा दबा दिए जाने का खतरा है.
सिद्धांत को देख पाने में असमर्थ हैं
राजनीतिक विश्लेषक बीआरपी भास्कर कहते हैं कि महिलाओं को सबरीमाला तक पहुंचने की अनुमति देने के लिए आंदोलन नहीं हो रहा है, क्योंकि राजनीतिक दलों ने सत्ता में बने रहने के लिए समाज की प्रतिगामी शक्तियों के साथ समझौता करने का फैसला लिया है. भास्कर का कहना है कि, ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू किए जाने के विरोध से टक्कर लेने आगे आने वाली कुछ प्रगतिशील महिलाओं के सिवा, यह मुद्दा अभी तक एक आंदोलन में तब्दील नहीं हुआ है. ऐसा खासकर इसलिए है क्योंकि महिलाओं ने पितृसत्तात्मक प्रणाली को स्वीकार कर लिया है और इस मुद्दे में समानता के सिद्धांत को देख पाने में असमर्थ हैं.’
सोशल एक्टिविस्ट प्रीता जीपी का मानना है कि सिविल सोसायटी ने इस मामले से दूरी बनाए रखी है, क्योंकि वो इसे लैंगिक-भेदभाव के बजाय धार्मिक मुद्दा मानते हैं. दक्षिणपंथी संगठन मंदिर में प्रवेश करने के लिए 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को अनुमति देने के मुद्दे पर लैंगिक भेदभाव के आरोप की काट में परंपरा की दुहाई दे रहे हैं.
सोशल एक्टिविस्ट स्वामी अग्निवेश कहते हैं कि यह जटिल स्थिति बीजेपी-आरएसएस गठबंधन द्वारा ‘केरल के सामाजिक और आध्यात्मिक ढांचे के नष्ट हो जाने’ के दुष्प्रचार का नतीजा है. उन्होंने केरलवासियों से खुद से यह पूछने का आग्रह किया है कि क्या उन्हें गुमराह किया जा रहा है और उनकी आस्था का दुरुपयोग एक भ्रष्ट राजनीतिक संगठन द्वारा किया जा रहा है जो देवताओं को बेचता है, मंदिरों का अपहरण करता है और आमजन की धार्मिकता को भ्रष्ट करता है.
स्वामी अग्निवेश ने एक बयान में कहा है, ‘संघ जानता है कि सांप्रदायिकता और जाति से प्रेरित राजनीति से मुकाबले में केरल सबसे मजबूत किला है. उनका मानना है कि यहां घुसपैठ का सबसे अचूक तरीका धर्म को एक उपकरण के रूप प्रयोग करना है. यह छोटे फायदों या जातीय समीकरणों की गिनती करने का समय नहीं है. राज्य को अभूतपूर्व खतरे का सामना करना पड़ रहा है. अगर समझदारी से इसका सामना नहीं जाएगा, तो यह इसकी मनोदशा पर स्थाई घाव दे सकता है.’ आरएसएस-बीजेपी की रणनीति धर्म के संबंध में केरलवासियों को आसानी से बरगला लेने की धारणा पर बनाई गई है. अग्निवेश कहते हैं, अब केरलवासियों के लिए यह साबित करने का समय है कि ये लोग राजनेताओं की तुलना में ज्यादा बुद्धिमान हैं.
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