निर्भया कांड के एक आरोपी के नाबालिग होने के कारण कड़ी सजा से बच निकलने के बाद सरकार ने जेजे एक्ट में बदलाव किए, जो जनवरी 2016 से लागू हो गए. रायन स्कूल के प्रद्युम्न की हत्या के आरोपी छात्र के खिलाफ वयस्क आरोपी की तरह केस चलाने के जेजे बोर्ड के आदेश से इन मुद्दों पर कानूनी बहस छिड़ गई है.
बच्चे, किशोर और वयस्कों के लिए अलग कानून क्यों हैं?
कानून के अनुसार, अपराध के लिए आपराधिक मानसिकता जरूरी है और तभी किसी व्यक्ति को अपराधी माना जा सकता है. भारत में 7 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अपराध के लिए सजा नहीं हो सकती. इंग्लैड में 10 वर्ष, अमेरिका में 11 वर्ष, चीन में 14 वर्ष, रुस में 16 वर्ष और लग्जमबर्ग में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कानून में ऐसी छूट मिली है.
भारत में 7 से 18 साल तक की उम्र के बच्चों को किशोर कहा जाता है जिनके द्वारा किए गए अपराध के लिए विशेष कानून, विशेष अदालत और सुधार गृह बनाए गए हैं. जापान में 20 वर्ष और चीन में 25 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किशोर माना जाता है. वोट डालने और ड्राइविंग की उम्र 18 वर्ष, लड़कों के विवाह की 21 वर्ष और दिल्ली में शराब पीने की न्यूनतम उम्र 25 वर्ष होने से भारत के बच्चे कानूनी मकड़जाल का शिकार हो रहे हैं.
हिंसाग्रस्त अमेरिका से प्रेरित भारत में जेजे कानून में बदलाव
नये कानून के अनुसार जघन्य अपराधों (रेप-मर्डर जैसे अपराध जिनके लिए 7 साल की अधिक की सजा होती है) के लिए 16 से 18 वर्ष की उम्र के नाबालिग बच्चों के ऊपर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस जेएस वर्मा ने कानूनी बदलावों का विरोध किया था. नये कानून में बच्चों की न्यूनतम उम्र से सबंधित अन्य कानूनों और पॉक्सो कानून के दण्डात्मक प्रावधानों को समाहित नहीं करने से अनेक कानूनी विसंगतियां पैदा हो गई हैं.
झाबुआ में नाबालिग बच्चों को उम्रकैद की गैरकानूनी सजा
रायन मामले में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने बच्चे की मानसिकता और व्यवहार के बारे में विशेषज्ञों के आकलन के आधार पर सामाजिक रिपोर्ट बनवाई. स्कूल के छात्रों और शिक्षकों के अनुसार आरोपी छात्र आक्रामक प्रवृत्ति का होने के साथ शराब पीकर स्कूल आ चुका था और मना करने के बावजूद मोबाइल का इस्तेमाल करता था. रिपोर्ट के अनुसार आरोपी छात्र मानसिक स्थिति के साथ शारीरिक रूप से हत्या की घटना को अंजाम देने के लिए परिपक्व था, जिसके आधार पर उसके खिलाफ बालिग की तरह मुकदमा चलाने का फैसला हुआ है.
सीआरपीसी कानून से मुकदमे का ट्रायल होने के बावजूद आरोपी छात्र को नाबालिग होने की वजह से आईपीसी की धारा 302 के तहत फांसी या उम्रकैद की सजा नहीं दी जा सकती. मध्य प्रदेश के झाबुआ में दो नाबालिग बच्चों के ऊपर रेप और मर्डर अपराध के लिए वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया गया.
मामले में 53 दिन के भीतर सेशन्स कोर्ट जज ने 18 साल से कम उम्र के नाबालिग बच्चों को जेजे एक्ट की धारा 21 के संरक्षण के बावजूद आजीवन कारावास की गैर-कानूनी सजा का मार्च 2017 में फैसला दे दिया गया. रायन का आरोपी छात्र लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ सकता है पर पुलिस और अदालती सिस्टम के खिलाफ गरीब बच्चे कैसे लड़ें?
कोर्ट के आदेश का रायन के आरोपी नाबालिग छात्र के मुकदमे में प्रभाव
आरोपी छात्र की दसवीं की मार्कशीट के अनुसार उसकी उम्र लगभग 16.5 साल है. सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक जांच रिपोर्ट के आधार पर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने यह फैसला लिया है कि आरोपी छात्र के खिलाफ मामला अब एडीजे की विशेष अदालत (बाल अदालत) में चलेगा. सीबीआई के अनुसार उनकी कोशिश यह है कि मामला स्पेशल कोर्ट से पंचकूला की सीबीआई अदालत में ट्रान्सफर हो जाए पर पाक्सो और जेजे एक्ट के कानून के अनुसार यह सम्भव नहीं दिखता.
आरोपी छात्र के पैरेंट्स जेजे बोर्ड के आदेश के खिलाफ सेंशन कोर्ट, फिर हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं. जुवेनाइल मानने पर आरोपी छात्र को 3 वर्ष से अधिक की सजा नहीं हो सकती थी, पर इस फैसले के बाद अब उसे 10 वर्ष तक की सजा हो सकती है. अदालत द्वारा अपराध सिद्ध होने और सजा सुनाने के बाद 21 साल की उम्र तक आरोपी बाल सुधार गृह में रहेगा और बाकी सजा जेल में काटनी पड़ सकती है.
गरीब कंडक्टर अशोक कुमार का अब क्या होगा?
हरियाणा पुलिस और एसआईटी ने प्रद्युम्न की हत्या के तुरन्त बाद बस कंडक्टर अशोक कुमार को 8 सितम्बर को गिरफ्तार कर लिया था. इसके बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया जिसने 22 सितम्बर को मामला दर्ज करने के बाद 7 नवम्बर को नाबालिग छात्र को गिरफ्तार कर लिया. अशोक कुमार के अनुसार उसे यातना देकर इकबालिया बयान देने के लिए मजबूर किया, इसके बावजूद पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी अब तक तय नहीं हुई है.
जद्दोजहद के बाद अशोक कुमार को 21 नवम्बर को जमानत मिल पाई पर 2.5 महीने की गैरकानूनी हिरासत के लिए उसे कौन हर्जाना देगा? कानून के अनुसार सीबीआई को इस मामले में 90 दिन के भीतर चार्जशीट फाईल करनी होगी. जिसके बाद ही अशोक कुमार कानून के दलदल से बाहर निकलने की उम्मीद कर सकता है.
गरीबी, ड्रग्स, पारिवारिक हिंसा और पुलिसिया सिस्टम की उपज जुवेनाइल अपराधी- एनसीआरबी के 2014 के रिपोर्ट के अनुसार 90 फीसदी से ज्यादा जुवेनाइल अपराधी गरीब परिवारों से आते हैं. वर्ल्ड ड्रग्स रिपोर्ट के अनुसार भारत एशिया की सबसे बड़ी ड्रग्स की मंडी है, जिसका जुवेनाइल सबसे ज्यादा शिकार होते हैं. एनसीआरबी द्वारा जारी 2015 के आंकड़ों के अनुसार कुल 31,396 जुवेनाइल अपराधी में 19.3 फीसदी यानी 6,046 बच्चे चोरी के जुर्म में पकड़े गए. शिक्षा, स्वास्थ्य और बेहतर परवरिश देने में विफल पैरेंट्स, स्कूल और सरकार पर क्या जुवेनाइल अपराधियों की बढ़ोतरी के लिए कौन जवाबदेही तय करेगा?
( लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं )
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