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RSS राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक: बंगाल और केरल में मजबूती पर होगा जोर

भोपाल में गुरुवार से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की तीन दिवसीय बैठक शुरू हो गई है

Updated On: Oct 13, 2017 04:23 PM IST

Debobrat Ghose Debobrat Ghose
चीफ रिपोर्टर, फ़र्स्टपोस्ट

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RSS राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक: बंगाल और केरल में मजबूती पर होगा जोर

भोपाल में गुरुवार से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की तीन दिवसीय बैठक शुरू हो गई है. इसे अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल (एबीकेएम) की बैठक भी कहा जाता है.

आरएसएस का कहना है कि उसकी इस बैठक का देश की राजनीति या केंद्र सरकार से कुछ भी लेना देना नहीं है. आरएसएस भले ही अपनी बैठक को राजनीति से परे बता रहा हो, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बैठक के लिए जिन मुद्दों को चुना गया है, वो कहीं न कहीं राजनीतिक मुद्दे ही हैं.

इनमें रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी और कश्मीर जैसे मुद्दे भी शामिल हैं. लिहाजा बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे आरएसएस के प्रतिनिधि तीन दिनों तक राजनीति पर चर्चा न करें, ऐसा लगता तो नहीं है.

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आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी (सह सरकार्यवाह) दत्तात्रेय होसबोले ने खुद बैठक शुरू होने से पहले बताया, 'राजनीति इस बैठक का एजेंडा नहीं है.' लेकिन बंद दरवाजों के पीछे होने वाली इस बैठक के अहम मुद्दों को लेकर जब पत्रकारों ने होसबोले से सवाल पूछे, तो वो जवाब देने से बचते नजर आए. खासकर राजनीतिक सवालों से तो उन्होंने साफ कन्नी काट ली. बहरहाल पत्रकारों के तिकड़मी सवालों से बचते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बैठक का औपचारिक उद्घाटन किया.

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हालांकि, होसबोले ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह से जुड़े ताजा विवाद पर सवाल का जवाब जरूर दिया. होसबोले ने कहा, 'मामले की जांच कराई जा सकती है, बशर्ते प्रथम दृष्टया सबूत पेश किए जाएं, लिहाजा जिन लोगों ने आरोप लगाए हैं, वो इसे साबित करें.'

होसबोले ने आगे कहा, 'जय शाह के मामले में जरूरी पूछताछ होनी चाहिए, और फिर उसी के मुताबिक का कार्रवाई की जा सकती है. लेकिन इसके साथ ही आरोप लगाने वालों का भी ये दायित्व है कि वो अपनी बात साबित करें.' इस सवाल का जवाब देने के बाद होसबोले समेत आरएसएस के बाकी सभी पदाधिकारी राजनीतिक सवालों पर खामोश रहे.

सूत्रों के मुताबिक, संघ की इस बैठक में मोदी सरकार की नीतियों के कार्यान्वयन का जमीनी स्तर पर आकलन भी किया जाएगा. साथ ही नीतियों के सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं की भी समीक्षा की जाएगी. अब जबकि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं,ऐसे में संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजनीतिक चर्चा की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.

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बैठक के दौरान आरएसएस का खास जोर संगठन के देश और विदेशों में ज्यादा से ज्यादा विस्तार पर रहेगा. साथ ही संगठन में एकजुटता बरकरार रखने पर भी मंथन होगा. इसके अलावा संघ के प्रभाव को समाज के विभिन्न स्तरों पर बनाए रखने के लिए अगले तीन सालों का खाका भी तैयार किया जाएगा.

विजय दशमी के मौके पर संघ प्रमुख भागवत ने अपने भाषण में जिन मुद्दों को उठाया था, संघ की कार्यकारिणी में उन मुद्दों पर चर्चा की भी पूरी संभावना है. ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि भागवत के उस भाषण पर देश में अबतक करीब 20 जगहों पर कई बुद्धजीवी और शिक्षाविद परिचर्चाएं कर चुके हैं.

भोपाल में संघ की बैठक के दौरान संगठन और कैडर (कार्यकर्ताओं) के पिछले छह महीनों के प्रदर्शन की समीक्षा तो होगी ही, साथ ही अगले छह महीनों की योजना भी तैयार की जाएगी. दरअसल बैठक में संघ का ध्यान मुख्य रूप से 10 मुद्दों पर केंद्रित रहेगा.

विस्तार की योजना

संघ की राष्ट्रीय नीति के मुताबिक शाखाओं के ज्यादा से ज्यादा विस्तार पर जोर दिया जाएगा. मौजूदा वक्त में देशभर में संघ की करीब 53,000 शाखाएं हैं. संघ के मुताबिक बीते कुछ अरसे में संघ की सदस्यता लेने वालों की तादाद में जबरदस्त इजाफा हुआ है. खास बात ये है कि संघ की सदस्यता लेने वालों में 25 से 35 साल की आयु वर्ग के लोग सबसे ज्यादा हैं. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य के मुताबिक, 'पिछले एक साल में संघ कार्यकर्ताओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई है.'

आर्थिक नीतियां और कृषि क्षेत्र

संघ के सह सरकार्यवाह होसबोले ने भले ही ये बयान दिया हो कि बैठक में नोटबंदी और जीएसटी पर कोई चर्चा नहीं होगी, लेकिन सूत्रों का कहना है कि बैठक में इन दोनों मुद्दों पर न सिर्फ चर्चा होगी बल्कि इन पर एक रिपोर्ट भी पेश की जाएगी.

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ये रिपोर्ट संघ के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के फीडबैक पर आधारित है, और इसमें नोटबंदी और जीएसटी से जनता पर पड़े प्रभाव का विश्लेषण किया गया है. वहीं किसानों का संकट और उनकी समस्याएं भी संघ की बैठक का अहम एजेंडा हैं.

Bhopal : Farmers throwing vegetables on a road during their nation-wide strike and agitation over various demands, in Bhopal on Sunday. PTI Photo (PTI6_4_2017_000113B)

बीते जुलाई महीने में मध्य प्रदेश (खासकर मंदसौर जिला) किसानों के आंदोलन का केंद्र बना रहा. इसके अलावा गुजरात समेत कई और राज्यों के किसानों ने भी सरकार की नीतियों के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए प्रदर्शन किए.

ऐसे में संघ अपनी बैठक में किसानों के मुद्दों की अनदेखी नहीं कर सकता है. लिहाजा संघ ने किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर भारतीय किसान संघ के पदाधिकारियों को बैठक में शामिल किया है, ताकि किसानों के मुद्दों और समस्याओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके.

केरल और बंगाल में संघ के प्रभाव का आकलन

आरएसएस-बीजेपी और सत्ताधारी सीपीएम पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच खूनी जंग का मैदान बन चुके केरल पर भी बैठक में खास चर्चा होगी. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में आरएसएस-बीजेपी और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा पर भी मंथन किया जाएगा. दरअसल केरल और बंगाल में संघ अपनी स्थिति मजबूत करके पैर जमाना चाहता है, लिहाजा इन दोनों प्रदेशों के लिए खास रणनीति भी तैयार की जा सकती है.

दलित और आदिवासी

संघ चाहता है कि उसके जमीनी स्तर के कार्यकर्ता दलितों और आदिवासियों के बीच अपनी मजबूत पैठ बनाएं. इसी मकसद के तहत संघ से संबद्ध 'वनवासी कल्याण आश्रम' आदिवासियों के बीच काफी लंबे अरसे से काम कर रहा है.

रोहिंग्या मुसलमान और बांग्लादेशी घुसपैठिए

संघ सीमापार से घुसपैठ का मुद्दा लगातार उठाता आ रहा है. लिहाजा सरहद पार करके अवैध तरीके से भारत में घुस आए रोहिंग्या मुसलमानों पर संघ मजबूत और स्पष्ट रुख चाहता है.

सरहद के मुद्दे और समस्याएं

बैठक के दौरान पाकिस्तान और विदेश नीति पर भी चर्चा की जाएगी. कश्मीर संकट, आतंकवाद और घुसपैठ के मुद्दे पर भी बैठक में विचार-विमर्श किया जाएगा.

हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, राम मंदिर और गौरक्षा

संघ सुप्रीमो भागवत कई अवसरों पर गौरक्षा पर जोर दे चुके हैं. लिहाजा बैठक में हिंदुत्व और संघ के राष्ट्रवाद के एजेंडे के अलावा गौरक्षा के मुद्दे पर खास रणनीति तैयार की जाएगी.

धर्म परिवर्तन का मुद्दा

धर्म परिवर्तन हमेशा से संघ के लिए गंभीर चिंता का विषय रहा है. केरल में बड़ी तादाद में हिंदुओं के इस्लाम धर्म अपनाने और आदिवासी इलाकों में ईसाई धर्म के प्रसार से संघ की चिंताएं एक बार फिर से बढ़ गईं हैं. ऐसे में संघ धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए ठोस उपाय करना चाहता है. लिहाजा बैठक के दौरान इस मुद्दे पर विशेष रूप से चर्चा होगी.

शिक्षा का मुद्दा

संघ से संबद्ध दो संगठनों विद्या भारती और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की बैठक में उपस्थिति से साफ संकेत मिलता है कि, संघ का फोकस हिंदी और देश की बाकी मातृ भाषाओं में स्वदेशी शिक्षा तंत्र विकसित करने पर होगा. परस्पर बातचीत के बाद बैठक के आखिरी दिन अलग-अलग मातृ भाषा बोलने वाले विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों से उनका फीडबैक लिया जाएगा.

एबीकेएम का उद्देश्य

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल यानी एबीकेएम को संघ का सर्वोच्च अंग माना जाता है. संघ की सभी नीतियों का निर्माण और अहम फैसले लेने का काम एबीकेएम के ही जिम्मे है. एबीकेएम की इस बैठक का मुख्य उद्देश्य संगठन की गतिविधियों की समीक्षा करना और भविष्य की योजनाओं का निर्माण करना है.

इसी मकसद के लिए भारत के 11 क्षेत्रों और 42 प्रांतों से संघ के करीब 300 प्रतिनिधि और संचालक भोपाल के शारदा विहार स्कूल में इकट्ठा हुए हैं. जहां ये लोग 3 दिन, 12 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक माथापच्ची करेंगे.

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इस बैठक का एक अहम पहलू ये भी है कि संघ के मौजूदा सर कार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी का 3 साल का कार्यकाल मार्च 2018 में खत्म होने जा रहा है. मनमोहन वैद्य के मुताबिक, 'ये बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बैठक के दौरान आगामी 3 सालों के लिए संघ के कार्यक्रमों और योजनाओं की रूपरेखा तय की जाएगी.'

परंपरा में बदलाव

संघ अपनी कार्यकारिणी की बैठक साल में दो बार आयोजित करता है. एक बैठक मार्च के महीने में होती है, जबकि दूसरी बैठक अक्टूबर में होती है. अपनी इन्हीं दोनों बैठकों में संघ देश के सभी अहम और ज्वलंत मुद्दों पर प्रस्ताव पारित करता है. लेकिन इस बार सिर्फ मार्च की बैठक में ही प्रस्ताव पारित किए गए, अक्टूबर की मौजूदा बैठक में कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया जाएगा.

इसके अलावा, हमेशा की तरह इस बार संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उसके सभी संबद्ध संगठनों के प्रतिनिधि और कार्यकर्ता शामिल नहीं हो रहे हैं. मनमोहन वैद्य का कहना है, 'इस बैठक के लिए परंपरा में बदलाव किया गया है, ये फैसला वृंदावन की बैठक में लिया गया था.' हालांकि इस बैठक में संघ से संबद्ध जनाधार वाले संगठन जैसे- वनवासी कल्याण आश्रम, एबीवीपी, विश्व हिंदू परिषद, बीकेएस, विद्या भारती और बीजेपी हिस्सा ले रहे हैं.

बैठक की गोपनीयता पर खास ध्यान

बैठक के दौरान होने वाली चर्चाओं और विचार-विमर्श को संघ सार्वजनिक नहीं करना चाहता है. ऐसे में बैठक में शामिल होने आए सभी 300 लोगों को सोशल मीडिया से भी दूर रहने के निर्देश दिए गए हैं. ये निर्देश संघ के मुख्य कर्ताधर्ताओं, संघ से संबद्ध संगठनों के प्रतिनिधियों और बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं पर भी लागू है.

दरअसल संघ ने ऐसा किसी भी तरह के विवाद से बचने के लिए किया है. लिहाजा बैठक में हिस्सा ले रहे सहभागियों से कहा गया है कि वो फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम वगैरह पर किसी तरह की कोई सूचना या जानकारी पोस्ट न करें और न ही किसी तरह का कमेंट करें.

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