भारत सरकार सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) में कुछ संशोधन करने वाली है. संशोधन में सबसे अहम है सूचना आयुक्तों (मुख्य सूचना आयुक्त भी शामिल है) का कार्यकाल (केंद्रीय और प्रदेश स्तरों पर), तनख्वाह और सेवा काल निर्धारित करना.
मौजूदा कानून में अधिकतम आयु सीमा 65 साल के साथ सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 साल निर्धारित है. संशोधित कानून में अब केंद्र सरकार तय करेगी कि किसी आयुक्त का कार्यकाल कितने वर्ष का हो.
फाइनेंसियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और तनख्वाह का अधिकार अपने पास रख सकता है लेकिन इससे आयुक्तों पर सियासी दबाव बढ़ने की संभावना है जिससे आयोग के अधिकारों का हनन आसान हो जाएगा.
केंद्र सरकार अगर कार्यकाल तय करने लगे तो 'असुविधाजनक आदेश' पारित करने पर आयुक्तों के बर्खास्त होने की आशंका बढ़ जाएगी. केंद्रीय सूचना आयोग के 10 शीर्ष पदों में 3 फिलहाल रिक्त होने के बीच केंद्र सरकार संशोधित कानून के तहत आयुक्तों को बर्खास्त करने का ज्यादा से ज्यादा अधिकार अपने पास रखना चाहती है.
केंद्र सरकार के इस प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ नागरिक संगठनों के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियां भी एकजुट हो रही हैं. गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अपनी आवाज बुलंद की. उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, हर भारतीय को सच्चाई जानने का पूरा अधिकार है. बीजेपी मानती है कि सच्चाई लोगों से छुपा कर रखी जानी चाहिए, वह (बीजेपी) यह भी चाहती है कि सत्तारूढ़ लोगों से कोई सवाल-जवाब न किया जाए. आरटीआई में बदलाव इसे व्यर्थ कानून बना देगा. हर भारतीय को इसका विरोध करना चाहिए.
Every Indian has the right to know the truth. The BJP believes the truth must be hidden from the people and they must not question people in power. The changes proposed to the RTI will make it a useless Act. They must be opposed by every Indian. #SaveRTI pic.twitter.com/4mjBTwQnYK
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 19, 2018
सरकार के इस प्रस्ताव की सबसे कड़ी आलोचना इसलिए हो रही है क्योंकि संशोधन का मसौदा तैयार करने से पहले लोगों की राय जानने का विधान है. लेकिन सरकार ने राय-मशविरे को संशोधन में जगह नहीं दी. यहां तक कि आरटीआई कानून बनाने वाले मूल कार्यकर्ताओं से संशोधन के मद्देनजर कोई संपर्क नहीं किया है.
हालांकि इस कानून को 'हल्का' बनाने में मौजूदा सरकार केवल दोषी नहीं है. पिछली यूपीए सरकार ने भी ऐसे कई कदम उठाए जिनकी तीखी आलोचना हुई. इनमें एक है राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे से बाहर रखना.
कांग्रेस पार्टी की नेता और राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी ने भी संशोधन प्रस्ताव का घोर विरोध किया है. उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, जब आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या कारगर नहीं हो पाई तो सरकार अब कानून की हत्या पर उतारू हो गई.
When murdering activists did not seem to be working the government came up with murder the act. #SaveRTIhttps://t.co/Y8ZVx3hkTN
— Priyanka Gandhi (@WithPGV) July 14, 2018
सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई कानून का मसौदा तैयार करने वालों में एक निखिल डे ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है. उन्होंने ट्वीट में लिखा, पिछले लगभग 10 वर्षों से भारत के लोगों ने इस 'जन कानून' का उपयोग किया और उसकी रक्षा की. अब बीजेपी लोगों से बात किए बगैर इसमें संशोधन करना चाहती है.
For more than ten years the people of India have used and protected this "people's law". Now #bjp4india wants to amend the law without even discussing the amendments with the people! Vote against those who vote against the #RTI . #SaveRTI . Save democracy
— Nikhil Dey (@nikhilmkss) July 14, 2018
संशोधन का विरोध तेज
उधर, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के सूत्रों ने कहा है कि प्रक्रिया में सरकार ने उसके साथ विचार विमर्श नहीं किया.
प्रस्तावित विधेयक पर सख्त ऐतराज जताते हुए एक बयान पर कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, निखिल डे, प्रदीप प्रधान, राकेश दुबुदू, पंक्ति जोग, वेंकटेश नायक, डॉ शेख ने हस्ताक्षर किया है.
इसमें कहा गया है, ‘आरटीआई कानून के तहत आयुक्तों को प्रदान किया गया दर्जा उन्हें स्वायत्त रूप से काम करने के लिए सशक्त बनाता है और शीर्ष कार्यालयों को भी कानून के प्रावधानों का पालन करना पड़ता है.’ पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने भी प्रस्तावित कदम को पीछे ले जाने वाला प्रस्ताव बताया जिससे कि सीआईसी और एसआईसी की स्वतंत्रता और स्वायत्तता से समझौता होगा.
एक अन्य पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त ए एन तिवारी ने कहा कि इन बदलावों से सूचना आयोग पंगु संस्थान में बदल जाएगा.
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