पिछले हफ्ते बुधवार को संसद का शीतकालीन सत्र खत्म हो गया. इस दौरान कई अहम बिल संसद में पारित हुए, जिनमें सबसे प्रमुख रहा गरीब सवर्णों को नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में दिया जाने वाला 10 प्रतिशत आरक्षण बिल, जो सबसे ज्यादा चर्चा में है. शनिवार रात शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के प्रावधान को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की भी मंजूरी मिल गई.
लेकिन, इस सबके बीच संसद में इस बार एक ऐसा भी बिल पेश किया गया जो अगर पास हो जाता है तो देश में निजी क्षेत्र में काम करने वाले लाखों-करोड़ों कर्मचारियों की जिंदगी का सुख-चैन लौट आता. इसकी वजह इस बिल की खासियत में छुपी है. दरअसल, हम यहां जिस बिल की बात कर रहे हैं उसे संसद में एनसीपी की नेता सुप्रिया सुले ने, प्राइवेट मेंबर्स बिल के तहत संसद के सामने रखा था, इस बिल का नाम ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ है.
कर्मचारी अपने ऑफिस आवर के बाद, दफ्तर से संपर्क विच्छेद कर पाएंगे
यानी, प्राइवेट क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारी अपने ऑफिस आवर के बाद, दफ्तर से संपर्क विच्छेद कर पाएंगे. आसान शब्दों में कहें तो- इस बिल के पास हो जाने पर होगा यह कि निजी या कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी पर यह बाध्यता (अनिवार्यता) खत्म हो जाएगी कि वो काम के घंटों के बाद भी हर समय ई-मेल या फोन पर ऑफिस से संपर्क में रहे. दरअसल, इस बिल में यह साफ-तौर पर लिखा गया है कि ऑफिस कर्मचारी, ऑफिस टाइम के बाद या छुट्टी पर रहने की स्थिति में अपने बॉस या किसी भी अन्य सीनियर अफसर का फोन आने पर कॉल को डिसकनेक्ट कर सकता है. इतना ही नहीं वो इस दौरान किसी भी ऑफिशियल मेल का जवाब देने के लिए भी बाध्य नहीं होगा.
'द राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2018' के नाम से लाए गए, इस बिल को संसद में पेश करने के बाद एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने इसके माध्यम से एक एम्पलॉयी वेलफेयर ऑथोरिटी बनाने की भी मांग की, जो कर्मचारियों के हक को सुरक्षित रख सके. हालांकि, यह बिल संसद के इस सत्र में पारित नहीं हो सका. बिल में यह प्रस्ताव किया गया था कि अगर कोई कर्मचारी छुट्टी पर रहने या ऑफिस ऑवर से बाहर रहने पर, ऑफिस से आए किसी फोन को अगर रिसीव नहीं करता है तो उन पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जाएगी.
इसके अलावा कर्मचारियों के लिए जिस अथॉरिटी के गठन की बात की गई थी उसमें आईटी मंत्रालय के राज्यमंत्री को बोर्ड का प्रमुख होने की भी बात कई गई थी. इसके अलावा श्रम और कम्युनिकेशन मंत्रालय के राज्यमंत्रियों को बोर्ड का वाइस चेयरमैन बनाने का निर्णय लिया गया था. इस अथॉरिटी का काम होता कि वो रोजगार देने वाले कंपनियों और कर्मचारियों के बीच इस बिल के अनुरूप एक साल के अंदर एक चार्टर तैयार करता. बिल में कंपनी के द्वारा इस कानून का पालन नहीं करने वाले कंपनियों पर भारी जुर्माने का भी प्रावधान किया गया था.
कंपनी यदि कानून का उल्लंघन करती तो उसपर जुर्माना लगाया जाता
अगर कोई कंपनी कानून का उल्लंघन करती तो वैसी स्थिति में उन कंपनियों पर उनके सभी कर्मचारियों को दी जाने वाली सैलरी का एक प्रतिशत जुर्माना लगाया जाता. इसके अलावा बिल में यह भी कहा गया था कि कैसे कर्मचारियों के बीच जागरूकता फैलाकर, डिजिटल फोन, इंटरनेट और अन्य कम्युनिकेशन टूल के तार्किक इस्तेमाल की जानकारी देने की भी बात कही गई थी. इस समय केवल फ्रांस दुनिया का पहला और इकलौता देश है जहां के स्टाफ को यह सहूलियत मिली हुई है कि वो ऑफिस ऑवर के बाद दफ्तर से आने वाले कॉल रिसीव न करें. फ्रांस के बाद अमेरिका के न्यूयॉर्क में भी इसकी शुरुआत हुई और जर्मनी में भी इसे कानून बनाने की बात चल रही है.
संसद में प्राइवेट मेंबर्स बिल के तहत इसे लाने वाली एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने लोकसभा को बताया कि, यह बिल प्राइवेट कंपनियों के स्टाफ को उस मजबूरी से छुटकारा दिलाएगी जिसमें उन्हें ऑफिस के बाद भी मेल का जवाब देने और फोन-कॉल रिसीव करना पड़ता है. अगर यह बिल पास हो जाता है तो निजी कंपनियों के कर्मचारियों पर ज्यादा काम नहीं लाद सकेगी. जिसका असर उनके मानसिक और पारिवारिक जीवन पर भी पड़ेगा. कर्मचारियों में तनाव कम रहेगा और उनकी निजी ज़िंदगी में भी संतुलन बना रहेगा. यह कानून उन सभी कंपनियों में लागू होगा जहां 10 से ज्यादा कर्मचारी हैं.
राज्यसभा में बहस के दौरान बीजेपी के अलावा, समाजवादी पार्टी ने भी बिल का समर्थन किया है. ऐसा कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बिल के समर्थन में है. लेकिन इस समय सिर्फ लोकसभा में ही इसे पेश किया जा सका है. लोकसभा और राज्यसभा से मंजूरी मिलने के बाद ही यह कानून बन पाएगा. अगर यह बिल पास होकर कानून बन जाता है तो कर्मचारी काम के बाद ऑफिस से आने वाले कॉल्स को काट (डिस्कनेक्ट) सकेंगे और उन पर किसी तरह कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई भी नहीं की जा सकेगी.
भारत में इस समय सिर्फ एमेजॉन इंडिया ही वो कंपनी है जिसने अपने कर्मचारियों को यह अधिकार दे रखा है. एमेजॉन इंडिया के हेड अमित अग्रवाल ने कर्मचारियों को एक ई-मेल भेजकर कंपनी के इस नियम की जानकारी दी. उन्होंने लिखा कि एमेजॉन के स्टाफ ‘शाम अपनी जिंदगी के नाम करें.’ वो शाम छह बजे के बाद से लेकर सुबह आठ बजे तक ऑफिस के कॉल न लें और अपने जीवन को संतुलित करें.
बिल का मकसद निजी क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारियों की निजता का सम्मान करना
यह कानून इसलिए भी बेहद जरूरी है कि आए दिन जब हमारे ट्रेड यूनियन, ‘वर्कर फ्रेंडली वर्क एनवायरमेंट’ की डिमांड रख रहे हैं, तब वैसी स्थिति में यह बिल एक उम्मीद लेकर आया है. बिल का मकसद निजी क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारियों की निजता का सम्मान करना है. इसके अलावा एक नागरिक के तौर पर उनके अधिकारों का भी सम्मान करना है.
बिल निजी क्षेत्रों में सक्रिय उन कंपनियों की भी फिक्र करती है जो आपस में प्रतिस्पर्धात्मक तरीके से जुड़े हैं, जो कई बार उनकी अलग-अलग वर्क कल्चर के कारण तनाव पैदा करती है. राइट टू डिस्कनेक्ट, एक तरह से इन कंपनियों के वर्क कल्चर में लचीलापन लेकर आती है. जिसका सीधा असर कंपनियों और उनके स्टाफ के बीच के संबंधों पर होगा. अगर कर्मचारियों पर काम का बोझ कम होगा, तो उनका स्ट्रेस लेवल कम होगा, अगर स्ट्रेल लेवल कम होगा तो, उनका अपने संस्थानों के साथ भी तनाव कम होगा और एंप्लॉयर और एंप्लॉयी के बीच अच्छे संबंध बनेंगे. इसके अलावा व्यक्ति अपनी निजी और प्रोफेशनल जिंदगी के बीच भी तालमेल बिठा पाएगा.
यह बिल नित नए बदलते कॉरपोरेट सेटअप के लिए भी जरूरी है, क्योंकि वहां काम और जीवन के बीच समन्वय स्थापित करना एक चुनौती बनता जा रहा है. तनावग्रस्त माहौल में काम करने के कारण हो यह रहा है कि- ज्यादा से ज्यादा लोग नौकरी के बजाय फ्रीलांसिंग (स्वतंत्र रूप से) काम करना पसंद कर रहे हैं, जिसकी एक बड़ी वजह ऑफिस के तनाव से खुद को बचाना है. नौकरी पेशा लोगों में यह देखा जा रहा है कि उन्हें पूरी नींद नहीं मिल पाती है, परिवार के साथ बिताने को समय नहीं मिल पाता है जिसका असर उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. अपने निजी समय पर अधिकार रखने के लिए कई लोग आज नौकरी छोड़ रहे हैं और वर्क फ्रॉम होम का चलन बढ़ रहा है.
खुली अर्थव्यवस्था ने नौकरियों के अवसर जरूर बढ़ाए हैं लेकिन, इससे उनके अधिकारों का हनन भी शुरू हो गया है. चौबीस घंटे ऑनलाइन रहने के कारण, उनका मी-टाइम तो खत्म हो ही गया, इसके लिए उन्हें कोई अतिरिक्त शुल्क या सुविधा भी नहीं दी गई. जो कई बार कर्मचारियों में बेचैनी और गुस्सा पैदा करती है.
फ्रांस-जर्मनी ने इसे लेकर वर्ष 2004 में कानून बना लिया था
फ्रांस और जर्मनी जैसे विकसित देशों ने इस मामले में कदम बढ़ाते हुए साल 2004 में कानून बना लिया था. यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने 2015 में इसे अपनाया और ऑफिस आने-जाने में जो समय लगता है उसे भी ऑफिस आवर में गिनना शुरू किया है. हाल ही में कोलकाता की एक निजी फर्म ने महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दो दिन की छुट्टी देने का ऐलान किया है.
जाहिर है, यह सभी कोशिशें हमारे कार्यस्थल को आधुनिक और ह्यूमन फ्रेंडली बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. और अगर, भविष्य में भारतीय संसद ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल’ पारित कर, इसे एक कानून बना देती है तो निश्चित रूप से प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाली बड़ी आबादी के लिए न सिर्फ यह राहत की बात होगी बल्कि एक ज्यादा बेहतर ह्यूमन वर्क कल्चर स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम होगा.
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