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'क्रांतिकारी' प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए ही नहीं, विरोधाभासी रवैये के लिए भी याद किए जाएंगे जस्टिस चेलमेश्वर

कार्यकाल के आखिरी दिनों में रोस्टर मामले में सुनवाई के दौरान हार मानते हुए जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि देश सब कुछ समझ जाएगा और अपनी राह खुद तय करेगा

Updated On: Jun 23, 2018 01:55 PM IST

Virag Gupta Virag Gupta

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'क्रांतिकारी' प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए ही नहीं, विरोधाभासी रवैये के लिए भी याद किए जाएंगे जस्टिस चेलमेश्वर

न्यायिक व्यवस्था में क्रांति के नायक के तौर पर अमिट छाप छोड़कर जस्ती चेलमेश्वर सात साल के कार्यकाल के बाद सुप्रीम कोर्ट से जा रहे हैं. ऐतिहासिक फैसलों के साथ जस्टिस जे चेलमेश्वर को अपने विरोधाभासी रवैये के लिए भी याद रखा जाएगा.

जजों की नियुक्ति में एनजेएसी का समर्थन और फिर सरकारी हस्तक्षेप का विरोध

सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों वाली संवैधानिक बेंच ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून को 2015 के फैसले से खत्म करते हुए जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम को बहाल कर दिया. यह फैसला 4-1 के बहुमत से हुआ था, जहां जस्टिस चेलमेश्वर ने एनजेएसी के पक्ष में अल्पमत से फैसला दिया था. एनजेएसी फैसले में चेलमेश्वर ने कहा था कि कॉलेजियम की कार्यवाही पूर्ण रूप से अपारदर्शी और जनता तथा इतिहास के लिए बंद हैं.

फैसले के 3 साल बाद जस्टिस चेलमेश्वर ने 5 पेज की चिट्ठी लिखकर चीफ जस्टिस से फुल कोर्ट की मीटिंग बुलाने की मांग करते हुए कहा की कॉलेजियम को नजरअंदाज करके केंद्र सरकार द्वारा कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से सीधा संवाद करना कतई उचित नहीं है.

66-ए की समाप्ति, परंतु हरियाणा के विभेदकारी कानून को स्वीकार

आईटी एक्ट की धारा 66-ए के तहत आपत्तिजनक टिप्पणियां पोस्ट करने पर गिरफ्तारी के कानून को जस्टिस चेलमेश्वर की बेंच ने असंवैधानिक घोषित करते हुए सोशल मीडिया को असीम आजादी दिया. विकलांगों के हित में अनेक आदेश पारित करने वाले जस्टिस चेलमेश्वर उस बेंच के सदस्य भी रहे जिसने व्यवस्था दी थी कि आधार के अभाव में किसी को सरकारी सब्सिडी से वंचित नहीं किया जा सकता.

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देश में विधायक और सांसद बनने के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं है, उसके बावजूद पंचायत सदस्य बनने के लिए शैक्षणिक योग्यता और शौचालय की अनिवार्यता का हरियाणा सरकार ने नियम बना दिया. राजबाला मामले में दिसंबर 2015 के फैसले में जस्टिस चेलमेश्वर की बेंच ने इस नियम को असंवैधानिक घोषित करने से इनकार करते हुए, अपने पूर्ववर्ती फैसलों की नजीर को ही मानने से इनकार कर दिया.

रोस्टर में पारदर्शिता की शुरुआत परंतु जोसफ को नहीं मिला न्याय

जस्टिस चेलमेश्वर ने तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस जेएस खेहर के कार्यकाल के दौरान कॉलेजियम (चीफ जस्टिस समेत पांच वरिष्ठतम जजों का चयन मंडल) की बैठकों का बहिष्कार करते हुए कहा था कि जब तक बैठक का एजेंडा सदस्य जजों को नहीं बताया जाएगा वह कॉलेजियम में नहीं आएंगे.

New Delhi: Supreme Court judge Jasti Chelameswar along with justice Ranjan Gogoi during a press conference in New Delhi on Friday. PTI Photo by Ravi Choudhary (PTI1_12_2018_000043B)

जस्टिस चेलमेश्वर के विरोध को देखते हुए मौजूदा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कॉलेजियम के फैसलों को सार्वजनिक करना शुरू कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह बड़ी घटना थी, क्योंकि 1993 में कॉलेजियम व्यवस्था के अस्तित्व में आने के बाद पहली बार मिनट्स और फैसलों को सार्वजनिक करने की शुरुआत हुई. उत्तराखंड के चीफ जस्टिस केएम जोसफ ने राष्ट्रपति शासन को निरस्त किया, इस वजह से सरकार द्वारा उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने में बिलम्ब किया जा रहा है. कॉलेजियम के सदस्य जस्टिस चेलमेश्वर की विदाई के बाद अब जस्टिस केएम जोसफ को न्याय कैसे मिलेगा?

रोस्टर में अधूरे सुधार

कॉलेजियम के बाद रोस्टर में पारदर्शिता जस्टिस चेलमेश्चर की बड़ी उपलब्धि थी. 4 जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद चीफ जस्टिस ने रोस्टर व्यवस्था का निर्धारण करते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर होने वाले 42 प्रकार के मामलों के लिए जजों की बेंच तय कर दी. पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने रोस्टर व्यवस्था में मामलों के आवंटन के लिए दिशा-निर्देश बनाने की मांग करते हुए पीआईएल दायर किया. जस्टिस चेलमेश्वर ने इस पर सुनवाई के दौरान कहा कि ‘कोई मेरे खिलाफ लगातार यह अभियान चला रहा है कि मैं कुछ हासिल करना चाहता हूं. मैं नहीं चाहता कि अगले 24 घंटे में एक बार फिर मेरे आदेश को पलटा जाए. इसलिए मैं यह नहीं कर सकता. कृपया मेरी परेशानी समझिए.’

प्रेस कॉन्फ्रेंस से विरोध का शंखनाद और चीफ जस्टिस की बेंच से रिटायरमेंट

जस्टिस चेलमेश्वर और वर्तमान चीफ जस्टिस दीपक मिश्र एक ही दिन सुप्रीम कोर्ट के जज बने परंतु जस्टिस चेल्मेश्वर चीफ जस्टिस नहीं बन पाए. शीर्ष अदालत के इतिहास में 12 जनवरी 2018 को पहला मौका था जब जस्टिस जे चेलमेश्वर की अगुवाई में 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सुप्रीम कोर्ट के सिस्टम पर सवाल उठाए थे. अपने आवास पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस अपनी पसंद की बेंचों में केस भेजते हैं. सभी जजों ने मिलकर कहा कि 'लोकतंत्र दांव पर है और इसे ठीक नहीं किया तो सब खत्म हो जाएगा'.

dipak mishra and chelmeshwar

जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस करना ‘बहुत ही कष्टप्रद है..... लेकिन संस्थान और राष्ट्र के प्रति हमारी जिम्मेदारी है और सुप्रीम कोर्ट की संस्था को संरक्षित किए बगैर, देश का लोकतंत्र नहीं बचेगा’. जस्टिस चेल्मेश्वर द्वारा बार एसोसिएशन के औपचारिक विदाई समारोह में आने से मना करने के बाद यह अटकलें लगीं कि अपने कार्यकाल के आखिरी कार्यदिवस में परम्परानुसार चीफ जस्टिस के साथ बेंच में नहीं बैठ कर वे अपने विरोध व्यक्त करेंगे. जस्टिस चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस और जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ बेंच साझा करते हुए हाथ जोड़कर 18 मई को ही देश से विदाई लेकर न्यायपालिका में शालीन परंपरा का निर्वहन किया.

पद नहीं लेने का साहसिक फैसला पर न्यायिक क्रांति को अधर में छोड़ा

पूर्व मुख्यमंत्री जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद घर खाली नहीं कर रहे हों तब जस्टिस चेलमेश्वर ने दिल्ली में तुगलक रोड के सरकारी आवास को समय पूर्व खाली करते हुए अपने गांव जाने की पूरी तैयारी कर ली. वर्तमान सरकार में वरिष्ठ मंत्री अरुण जेटली ने सितंबर 2012 में कहा था कि रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद लेने से न्यायपालिका और जजों की निष्पक्षता प्रभावित होती है.

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दूसरी तरफ विधि सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के 100 पूर्व जजों में से 70 ने रिटायरमेंट के बाद सरकार की अनुकम्पा से पद लिया है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस पी सदाशिवम केरल के राज्यपाल बन गए तो बॉम्बे हाईकोर्ट के जज अभय थिप्से ने रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करके नई मिसाल कायम कर दी.

न्यायपालिका में गिरावट के इस दौर में जस्टिस चेलमेश्वर ने बहुत पहले ही कह दिया था कि सेवानिवृत्त होने के बाद वह सरकार की अनुकम्पा से कोई नियुक्ति नहीं लेंगे. कार्यकाल के आखिरी दिनों में रोस्टर मामले में सुनवाई के दौरान हार मानते हुए जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि ‘देश सब कुछ समझ जाएगा और अपनी राह खुद तय करेगा’ न्यायिक व्यवस्था में विरोधाभास को दूर करने के लिए आने वाले समय में जजों के फैसलों से ही सही राह तय होगी, जिसका पूरे देश को इंतजार है.

( लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. न्यायव्यवस्था और सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे पर लंबे समय से लिखते रहे हैं. आधार कार्ड  की अनिवार्यता से जुड़ी हुई कई उलझनों पर हमारी वेबसाइट पर इनके लेखों को यहां पढ़ा जा सकता है. )

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