सोमवार को केंद्रीय कैबिनेट ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले पर मुहर लगा दी. अब इसे कानूनी रूप देने के लिए सरकार को संविधान संशोधन विधेयक पास करना होगा क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में जरूरी संशोधन करने होंगे.
अब केंद्र की मोदी सरकार मंगलवार को लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक को पेश करने वाली है. बिल को पास कराने के लिए संसद के दोनों सदनों के दो तिहाई सांसदों का समर्थनल चाहिए होगा. इसके साथ ही देश की आधी विधानसभाओं से भी इसे पास कराना होगा. हालांकि विधानसभा से इसे पास कराने को लेकर कोई समय निर्धारित नहीं है. इसका मतलब यह होता है कि जब भी हो सके इसे पास कराया जा सकता है.
क्या यह संवैधानिक तौर पर सही है?
द प्रिंट की खबर के अनुसार, फिलहाल के प्रावधानों के हिसाब से सरकार का यह फैसला संवैधानिक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस में फैसला सुनाते हुए कहा था कि आरक्षण का कोटा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि आरक्षण सिर्फ उन्हें ही दिया जा सकता है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए है. जबकि वित्तीय पिछड़ापन आरक्षण का एक कारण हो सकता है लेकिन आरक्षण देने का यह मुख्य कारण कभी नहीं बन सकता.
क्या संशोधन को चुनौती दी जा सकती है?
सैद्धांतिक तौर पर इस संशोधन को किसी भी समय चुनौती दी जा सकती है. देश के किसी भी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ जाया जा सकता है. लेकिन कोर्ट इन मामलों में बहुत जरूरी होने पर ही दखल देती है.
किसी मिलेगा इसका लाभ?
आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर ऐसे लोगों को दिया जाएगा जो अभी आरक्षण का कोई लाभ नहीं ले रहे.’ प्रस्तावित कानून का लाभ ब्राह्मण, राजपूत (ठाकुर), जाट, मराठा, भूमिहार, कई व्यापारिक जातियों, कापू और कम्मा सहित कई अन्य अगड़ी जातियों को मिलेगा. सूत्रों ने बताया कि अन्य धर्मों के गरीबों को भी आरक्षण का लाभ मिलेगा.
इस विधेयक में प्रावधान किया जा सकता है कि जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपए से कम और जिनके पास पांच एकड़ से कम कृषि भूमि है, उन्हें आरक्षण का लाभ मिल सकता है.
सूत्रों ने बताया कि ऐसे लोगों के पास नगर निकाय क्षेत्र में 1000 वर्ग फुट या इससे ज्यादा क्षेत्रफल का फ्लैट नहीं होना चाहिए और गैर-अधिसूचित क्षेत्रों में 200 यार्ड से ज्यादा का फ्लैट नहीं होना चाहिए.
क्या ऐसा पहली बार हुआ है?
कैबिनेट द्वारा मंजूरी मिलने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस तरह का कदम भारत के इतिहास में पहली बार उठाया गया है? तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने 25 सितंबर 1991 को एक ऑफिस मेमोरेंडम (ओएम) जारी कर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह लागू करने लायक नहीं है.
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