भारत के विभाजन के दौरान सेनाओं का भी बंटवारा हो रहा था. ऐसे में सेना की सबसे छोटी, लेकिन बेहद खास रेजिमेंट का भी बंटवारा हुआ. ये रेजिमेंट थी 'गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स' जो कि अब भारत में प्रेसिडेंट्स बॉडीगार्ड्स के नाम से जानी जाती है. दरअसल सेना की सबसे पुरानी रेजिमेंट्स में से एक 'गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स' का बंटवारा 2:1 के अनुपात में शांति से हो गया. लेकिन विवाद जन्मा इस रेजिमेंट की मशहूर बग्घी पर, जिसका उपयोग उस समय तक वायसराय और गवर्नर जनरल किया करते थे.
सिक्का उछाला और बग्घी अपनी
भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश प्रतिष्ठा और शान का प्रतीक बन गई इस बग्घी को छोड़ने को राजी नहीं थे. ऐसे में तत्कालीन 'गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स' के कमांडेंट जो कि भारत में रहने वाले थे, और उनके डिप्टी जो पाकिस्तान जाने वाले थे, ने इस विवाद को सुलझाने का अलग ही तरीका निकाला. वह तरीका था टॉस का. वायसराय की अंगरक्षक टुकड़ी ने सिक्का उछालकर इस शानदार बग्घी की किस्मत का फैसला किया. सिक्का उछाला गया और भारत ये टॉस जीत गया. बस तब से आज तक सोने से सजी यह बग्घी भारतीय राष्ट्रपतियों की शान में उपयोग की जाती है.
आजादी के बाद साल 1950 में पहली बार जब देश गणतंत्र दिवस समारोह मना रहा था. तब सबसे बड़े लोकतंत्र के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद इसी बग्घी पर बैठ कर समारोह में गए थे. तब से यह एक परम्परा बन गई. उसके बाद से भारत के राष्ट्रपति इसी बग्घी में बैठ कर गणतंत्र दिवस समारोह में शिरकत करने लगे. इसी बग्घी में बैठ कर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद शहर भर का दौरा किया करते थे.
सुरक्षा कारणों से बंद हुआ उपयोग
हालांकि इस रिवाज़ को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मृत्यु के कुछ समय बाद से सुरक्षा कारणों के चलते बंद कर दिया गया था. इसके बाद राष्ट्रपति गणतंंत्र दिवस समारोह में जाने के लिए बुलेट प्रूफ कार का उपयोग करने लगे. लगभग 20 साल तक प्रयोग नहीं होने के बाद साल 2014 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान फिर से इस बग्घी का उपयोग किया. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी साल 2014 के बीटिंग रिट्रीट समारोह में इस बग्घी से गए थे.
सोने से सजी धजी यह बग्घी इतनी खास है तो इसे खींचने वालो घोड़े कैसे आम हो सकते हैं. राष्ट्रपति की इस बग्घी को छह घोड़े खींचते हैं, जो कि एक खास नस्ल के होते हैं. यह भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों की मिक्स ब्रीड के होते हैं. इस नस्ल के घोड़ों की ऊंचाई आम घोड़ों की तुलना में ज्यादा होती है, और यह बग्घी पर बिल्कुल फिट बैठती है.
वैसे मशहूर शायर उदय प्रताप सिंह का शेर है, हर फैसला होता नहीं सिक्का उछाल के, ये दिल का मामला है ज़रा देख-भाल के. शायद ही कभी होता हो कि सेना और सरकार से जुड़ा हुआ कोई फैसला इस तरह सिक्का उछाल कर किया गया हो. मगर इतिहास में हमेशा कुछ ऐसे फैसले और मौके बने रहते हैं जिनके किस्से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाए जा सकें.
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