हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट की तरफ से जमकर फटकार लगाई जा रही है. फटकार लगनी भी चाहिए क्योंकि खट्टर साहब उस फटकार के सही हकदार भी हैं.
राज्य के मुखिया बन बैठे मनोहर लाल खट्टर अगर कानून-व्यवस्था को नियंत्रित नहीं कर सकते तो फिर उन्हें इस तरह की फजीहत को झेलना ही होगा.
हाइकोर्ट ने तल्ख भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा है कि खट्टर सरकार ने राजनीतिक फायदे के लिए हिंसा होने दी.
हाइकोर्ट की टिप्पणी पर गौर करें तो साफ लग रहा है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम इंसा के समर्थकों के सामने सरेंडर कर दिया.
मनोहर लाल खट्टर को लग रहा होगा कि अगर डेरा समर्थकों पर सख्त कार्रवाई हुई तो शायद उनका वोट बैंक खराब हो जाएगा. इस कटु सत्य का जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंकि अधिकतर मामलों में वोट बैंक के तराजू पर ही तौलकर नेताओं की तरफ से हर फैसले लिए जाने लगे हैं. अब तो खुद कोर्ट ही इस बात को कह रहा है.
खट्टर पर भी आरोप कुछ ऐसे ही लग रहे हैं क्योंकि बीजेपी के नेताओं के गुरमीत राम रहीम से नजदीकी की बातों की भी चर्चा सियासी गलियारों में पहले से ही रही है. चर्चा इस बात की भी होती है कि गुरमीत राम रहीम ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के वक्त अंदरखाने बीजेपी को समर्थन भी दिया था. बीजेपी नेताओं ने जीत के बाद राम रहीम को धन्यवाद भी दिया था.
हरियाणा जैसे प्रदेश में जहां इस तरह के बाबाओं और उनके अंधभक्तों की तादाद काफी ज्यादा है, वहां राजनीतिक दल भी इस तरह के डेरा प्रमुख को नाराज नहीं करना चाहते. भले ही खुलकर कोई इन बातों को ना माने, लेकिन, इस हकीकत से पर्दा तब उठता है जब बाबा राम रहीम जैसे बाबाओं के साथ सियासी दलों के नेताओं की तस्वीर सामने आ जाती है. सोशल मीडिया पर आजकल राम रहीम के साथ कई नेताओं की तस्वीर भी खूब वायरल हो रही है.
ऐसे में हाइकोर्ट की टिप्पणी मनोहर लाल खट्टर पर सटीक बैठती है. कोर्ट की फटकार से साफ है कि खट्टर अपने काम को अंजाम देने में पूरी तरह से फेल हो गए हैं.
खट्टर ने पहले से अगर सख्ती दिखाई होती तो फिर इस तरह की हिंसा नहीं होती. पंचकूला में सीबीआई में बाबा राम रहीम पर चल रहे रेप केस में फैसला आने की तारीख पहले से तय थी. हिंसा की आशंका भी थी. यहां तक कि केंद्र ने भी अपनी तरफ से अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजे थे. फिर भी हालात बेकाबू हो गए. इसे जानबूझकर कराई गई हिंसा ना कहेंगे तो और क्या कहेंगे खट्टर साहब.
खट्टर की कार्यक्षमता, नेतृत्व और हालात को संभाल संकने की उनकी काबिलियत इसलिए सवालों के घेरे में है, क्योंकि खट्टर इसके पहले भी कुछ इसी तरह का नमूना पेश कर चुके हैं.
बाबा रामपाल के गुंडों पर कार्रवाई के वक्त भी हालात को संभालने में खट्टर के पसीने छूट गए. जाट आरक्षण को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन के वक्त भी खट्टर की नाकामी ही सामने आई थी. लेकिन, इन दो बड़ी घटनाओं के बावजूद खट्टर ने सबक नहीं ली, वरना तीसरी बार खट्टर इस कदर ना घिर गए होते.
हाईकोर्ट की टिप्पणी पर गौर करें तो फिर यही लगेगा कि खट्टर ने तो हालात को नियंत्रित करने की कोशिश ही नहीं की. बाबा को काफिले के साथ पंचकूला आने की इजाजत मिल गई. लाखों समर्थक बेरोक-टोक जमा होते गए. लेकिन, वोट बैंक की चिंता ने जान-माल के नुकसान और इस तरह के हालात की चिंता को पीछे छोड़ दिया.
तीस से भी ज्यादा मौतों के बाद खट्टर साहब नींद से जाग गए हैं. हालात बेकाबू होने के बाद केंद्र सरकार भी हरकत में आई. प्रधानमंत्री ने सभी पक्षों से शांति की अपील की. जबकि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से बात कर हालात का जायजा लिया.
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने एनएसए अजीत डोभाल और गृह-मंत्रालय के दूसरे अधिकारियों से मीटिंग कर हालात का जायजा लिया है. इतनी फजीहत के बाद मुख्यमंत्री खट्टर ने दंगाइयों को अब गोली मारने के आदेश भी दे दिए हैं.
फटकार और फजीहत के बाद नींद से जागे खट्टर की कुर्सी को फिलहाल कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है.
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