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अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ 60 सेकेंड चली सुनवाई, 10 जनवरी को होगा नई बेंच का गठन

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि उसके द्वारा गठित एक उपयुक्त पीठ राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना विवाद मामले की सुनवाई की तारीख तय करने के लिए 10 जनवरी को आदेश देगी

Updated On: Jan 04, 2019 12:35 PM IST

FP Staff

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अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ 60 सेकेंड चली सुनवाई, 10 जनवरी को होगा नई बेंच का गठन

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि उसके द्वारा गठित एक उपयुक्त पीठ राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना विवाद मामले की सुनवाई की तारीख तय करने के लिए 10 जनवरी को आदेश देगी. इस केस पर सुनवाई के लिए नई बेंच का गठन होगा. जो कि तय करेगी कि इस मामले पर सुनवाई कैसे होगी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने कहा, 'एक उपयुक्त पीठ मामले की सुनवाई की तारीख तय करने के लिए 10 जनवरी को आगे के आदेश देगी.'

सुनवाई के लिए मामला सामने आते ही प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला है और इस पर आदेश पारित किया. अलग-अलग पक्षों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरिश साल्वे और राजीव धवन को अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं मिला. मामले की सुनवाई 60 सेकेंड भी नहीं चली. राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई होनी है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 29 अक्टूबर को कहा था कि यह मामला जनवरी के पहले हफ्ते में उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होगा, जो इसकी सुनवाई का कार्यक्रम निर्धारित करेगी. बाद में अखिल भारत हिंदू महासभा ने एक अर्जी दायर कर सुनवाई की तारीख पहले करने का अनुरोध किया था परंतु कोर्ट ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि 29 अक्टूबर को ही इस मामले की सुनवाई के बारे में आदेश पारित किया जा चुका है. हिंदू महासभा इस मामले में मूल वादकारियों में से एक एम सिद्दीक के वारिसों द्वारा दायर अपील में एक प्रतिवादी है.

इससे पहले, 27 सितंबर, 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गई टिप्पणी पांच जजों की बेंच के पास नए सिरे से विचार के लिए भेजने से इनकार कर दिया था. इस फैसले में टिप्पणी की गई थी कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है.

बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बंटवारा करने का आदेश दिया था. तीनों ही पक्षों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

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