हिंदू धर्म में शंकराचार्य का पद काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. दरअसल आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां बनाई थीं. चार राजधानियों में चार मठ थे. जिनका नाम है गोवरधन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ और ज्योतिर्मठ. इन मठों का आज भी हिंदू धर्म में काफी महत्व है.
इन चार मठों में से दो, द्वारका और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य हैं स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती. हिंदू धर्म के सबसे सम्मानीय स्थान पर विराजमान स्वरूपानंद अक्सर अपने बयानों को लेकर विवाद पैदा करते रहे हैं. अब मंगलवार को उन्होंने ऐसा बयान दिया है जिससे देश भर में वह एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं.
फिल्हाल उन्होंने अल्टीमेटम दिया है कि 21 फरवरी को वह अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू करेंगे. स्वरूपानंद ने बताया कि करीब 500 साधु-संत अयोध्या जाएंगे और मंदिर बनाने का काम शुरू करेंगे. उन्होंने बताया कि बसंत पंचमी के दिन कुंभ मेले में शाही स्नान के बाद अयोध्या की तरफ साधुओं की टोली कूच करेगी.
पहले भी कर चुके हैं विवादित बयानबाजी
वह पहली बार अपने बयान को लेकर सुर्खियों में नहीं आए हैं. इससे पहले कई बार विवादित बयानबाजी के चलते वह चर्चा का विषय बन चुके हैं. दरअसल सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हटाए जाने के फैसले का भी स्वरूपानंद सरस्वती ने विरोध किया था. उन्होंने सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश को अनुचित बताया था. उनका कहना था कि अदालतें संविधान से चलती हैं.
उनका तर्क था कि भारत का संविधान पाकिस्तान, फ्रांस, जर्मन में नहीं चलता तो परलोक में कैसे चलेगा. परलोक में तो भगवान का जो संविधान, वेद, शास्त्र, पुराण है वही चलेगा. तो जिसको पुण्य करना अर्जित करना है तो उसे धर्म शास्त्र का पालन करना होगा.
शंकराचार्य के पद पर नहीं बैठ सकती महिलाएं
महिलाओं को लेकर स्वरूपानंद सरस्वती ने पिछले साल एक और विवादित बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि महिलाएं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सांसद विधायक बन सकती हैं लेकिन शंकराचार्य जैसी सनातन संस्था की प्रतिनिधि नहीं बन सकतीं.
स्वरूपानंद सरस्वती नेपाल की पशुपतिनाथ पीठ के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े किए थे. उनका कहना था कि पशुपतिनाथ पीठ की स्थापना करने वाली अखिल भारतीय विद्वत परिषद नकली शंकराचार्य गढ़ने का काम कर रही है.
पिछले साल मार्च महीने में शंकराचार्य सरस्वती ने कहा था कि अयोध्या में कारसेवकों ने मस्जिद नहीं मंदिर तोड़ा था. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया था, ‘रामजन्मभूमि में मस्जिद कभी थी ही नहीं. कोई ऐसा चिह्न नहीं था, जिससे उसे मस्जिद कहा जा सके.’
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