भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बीते मंगलवार को जम्मू-कश्मीर की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद राज्य में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया. बीजेपी संगठन में जम्मू-कश्मीर मामलों के प्रभारी राम माधव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन कर सरकार से समर्थन वापस लेने के बारे में ऐलान किया था.
राम माधव भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं और जम्मू-कश्मीर में पार्टी के कामकाज में अहम भूमिका निभाते हैं. फ़र्स्टपोस्ट के साथ इंटरव्यू में उन्होंने राज्य में राज्यपाल शासन लगाए जाने की वजहों के बारे में बताया. इसके अलावा उन्होंने रमजान के दौरान आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान को रोक देने के कारणों के बारे में जानकारी दी. पेश हैं बातचीत के अंशः
क्या आपको लगता है कि राज्यपाल शासन राज्य के सर्वोच्च हित में होगा?
भारतीय जनता पार्टी की राय है कि जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन की एक पारी होना चाहिए, ताकि हमारी सरकार की तरफ से चार मोर्चों पर शुरू किए गए काम को ज्यादा असरदार तरीके से आगे बढ़ाया जा सके. राज्य में राज्यपाल के शासन को सिर्फ सैन्य नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए, बेशक हमारी पहल का एक पहलू आंतकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में तेजी और उनका पूरी तरह से सफाया कर उन्हें बेअसर कर देना है.
हम इस बात को लेकर भी काफी उत्सुक हैं कि पूरे कश्मीर समाज के अलग-अलग तबकों को बातचीत में शामिल किया जाना चाहिए. इसी सिलसिले में केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से वार्ताकार की नियुक्त की गई है. विकास संबंधी गतिविधियों को शुरू करने की सख्त जरूरत है. भारत सरकार ने राज्य के विकास के मकसद से 80,000 करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया है. हालांकि, इस पैकेज के एक बड़े हिस्से का अब तक उपयोग नहीं हो पाया है. हम इस बात की उम्मीद करते हैं कि राज्यपाल शासन के दौरान इन तमाम मोर्चों पर असरदार कदम उठाए जाएंगे.
अमरनाथ यात्रा के दौरान हिंसा को लेकर आशंकाएं जताई जा रही हैं? क्या आपको लगता है कि राज्यपाल के शासन में बिना किसी अप्रिय घटना के इस यात्रा का पूरा कार्यक्रम संपन्न हो पाएगा?
बिल्कुल. यात्रा पूरी तरह से शांतिपूर्ण संपन्न हो सके, सरकार इसके लिए तमाम जरूरी सुरक्षा इंतजाम कर रही है. रमजान के दौरान आतंकवाद के खिलाफ अभियान को रोके जाने से ठीक पहले सुरक्षा बल काफी तेजी से आतंकवादियों का खात्मा कर रहे थे. क्या इस फैसले में पीडीपी का अहम भूमिका रही थी?
रमजान के दौरान आतंकवादियों के खिलाफ अभियान को रोकने के बारे में सुझाव जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार की तरफ से आया था. व्यापक स्तर पर विचार-विमर्श के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रमजान के लिए इस युद्धविराम का ऐलान किया.
सरकार ने आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन को रोकने का फैसला जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए विशेष सद्भावना का संकेत देने के मकसद से किया था. इसके जरिेये सरकार का इरादा अपनी पोजिशन को और मजबूत करना था. इस पूरी कवायद का मकसद यह था कि लोग अपनी मजहबी गतिविधियों को पवित्र और शांतिपूर्ण माहौल में पूरा कर सकें.
मैं साफ-साफ यह कहना चाहूंगा कि लोगों ने जहां रमजान में शांतिपूर्ण माहौल का आनंद उठाया, वहीं आतंकवादी और उनके समर्थकों ने इस स्थिति का गलत फायदा उठाने की कोशिश की. रमजान के पवित्र महीने के दौरान आतंकवादियों की तरफ से बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की हत्या की गई. इस दौरान जीने का अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों पर भयंकर खतरा मंडराने लगा. इन्हीं वजहों से केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रमजान के बाद इस ऑपरेशन को नहीं बढ़ाने का फैसला किया.
क्या आप कुछ वैसी चीजों का खास तौर पर जिक्र कर सकते हैं जो केंद्र सरकार राज्यपाल शासन के दौरान जम्मू-कश्मीर में कर सकेगी और राज्य की पीडीपी-गठबंधन सरकार जिसे पीडीपी की वजह से करने में सक्षम नहीं थी?
चार सूत्रीय अभियान में ये बातें शामिल थीं-
-आतंकवादियों को बेअसर करना
- उनके मुखर समर्थकों को कानूनी रूप से चुनौती देना
- हुर्रियत जैसे समूह समेत समाज के अलग-अलग तबकों को इस पूरी प्रक्रिया में शामिल करना
- विकास संबंधी परियोजनाओं पर आक्रामक तरीके से काम करना
सरकार की तरफ से इन मोर्चों पर आगे बढ़ने की अपेक्षा थी. इसके लिए सक्रिय राजनीतिक एजेंडे की दरकार थी. मसलन जम्मू-कश्मीर में स्थानीय निकायों के चुनाव और राज्य में व्यापक पैमाने पर राजनीतिक गतिविधि. दुर्भाग्य से राज्य सरकार में हमारी सहयोगी (पीडीपी) इस मोर्चे पर बुरी तरह से नाकाम पाई गई. धीरे-धारे हमारी यह राय मजबूत होती चली गई कि कुछ निश्चित स्थानीय राजनीतिक चीजें राज्य सरकार में हमारे पार्टनर पर काफी ज्यादा हावी हैं. और इन वजहों से दोनों पार्टियों के बीच मतभेद बढ़ते गए.
बहरहाल, इस बात को जरूर याद रखा जाना चाहिए कि ऊपर जो कारण गिनाए गए हैं, उस वजह से बेशक हमने सरकार से नाता तोड़ा है, लेकिन हमने जम्मू-कश्मीर के लोगों से रिश्ते नहीं तोड़े हैं, उन्हें बिल्कुल नहीं छोड़ा है. जिस चार सूत्री फॉर्मूले का जिक्र मैंने ऊपर किया है, राज्य में राज्यपाल शासन के तहत निश्चित तौर पर उसे आगे बढ़ाया जाएगा.
अब मुख्य तौर पर यह माना जा रहा है कि सरकार की प्राथमिकता आतंकवादियों गतिविधियों के खिलाफ सख्त अभियान चलाने को लेकर होगी. क्या सरकार बातचीत का विकल्प भी तलाशेगी?
मैं पहले ही इस बारे में जवाब दे चुका हूं. बहरहाल, अगर आप खास तौर पर बातचीत के बारे में पूछना चाहते हैं, तो लोकतंत्र में अलग-अलग पक्षों से बातचीत करना सरकार की अहम जिम्मेदारी है. जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के दौरान इस एजेंडे पर काम किया जाएगा.
क्या आपको लगता है कि सरकार कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास और अनुच्छेद 370 को रद्द करने जैसे मुद्दों पर अब ज्यादा से ज्यादा फोकस करने में सक्षम होगी?
कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास हमारे एजेंडे का अहम हिस्सा है. हमने जम्मू-कश्मीर में अपनी सरकार के कार्यकाल के दौरान भी इससे संबंधित प्रक्रिया को जारी रखा और राज्यपाल शासन के दौरान भी यह सिलसिला कायम रहेगा.
सुरक्षा में बढ़ोतरी और आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन को और सक्रिय बनाने के अलावा बिना लड़ाई वाले कौन-कौन से विकल्प हैं? क्या किसी तक पहुंचने जैसी कुछ पहल भी की जाएगी?
जैसा कि मैंने कहा, वार्ताकार और अन्य माध्य्मों के जरिये बातचीत के लिए आगे बढ़ना अहम मार्ग है. इसके अलावा, विकास संबंधी गतिविधियां अपने आप में इस मर्ज को दूर करने की कारगर दवा हैं. फिलहाल कश्मीरी समाज का एक हिस्सा अलग-थलग पड़ जाने जैसा महसूस कर रहा है. विकास संबंधी गतिविधियों में इस समस्या को दुरुस्त करने की जबरदस्त संभावना है.
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