सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अयोध्या मामले की सुनवाई जनवरी तक टाल दी है. इसके पहले सुनवाई से ठीक पहले आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि जिस तरह काबा, हरमिंदर साहब और वेटिकन को नहीं बदला जा सकता है, उसी तरह राम जन्मस्थान भी नहीं बदला जा सकता है. यह एक सत्य है.
Kaaba badla nahi ja sakta, Harmandir sahab badla nahi ja sakta, Vatican ko badla nahi ja sakta aur Ram jamansthaan ko badla nahi ja sakta, yeh ek satya hai: Indresh Kumar, RSS (28.10.18) pic.twitter.com/6Y6DTodIsH
— ANI (@ANI) October 29, 2018
इधर सुप्रीम कोर्ट ने अपने दो लाइन के फैसले में मामले की सुनवाई जनवरी में शुरू किए जाने का फैसला दिया है. मामले की नियमित सुनवाई पर फैसला भी अब जनवरी में ही होगा.
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिए फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होनी थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 के दिए अपने फैसले में विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया था.
मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने की. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए. इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं.
इससे पहले 27 सितंबर को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के अपने फैसले पर पुनर्विचार से इनकार करते हुए मस्जिद को इस्लाम का आंतरिक हिस्सा मानने से इनकार कर दिया था. मामले की सुनवाई मौजूदा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1 के मुकाबले 2 जजों के बहुमत फैसले में कहा था कि मामले की सुनवाई सबूतों के आधार पर होगी.
वहीं मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई थी कि 1994 में इस्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. इस लिहाज से इस फैसले को दोबारा देखने की जरुरत है. और यही कारण है कि पहले मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा जाना चाहिए. जमीन पर मालिकाना हक किसका है, इसकी लड़ाई 1949 से देश की अदालतों में लड़ी जा रही है.
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