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अलवर लिंचिंग: अनपढ़ रकबर बच्चों को पढ़ाना चाहता था, अब उनके खाने का भी ठिकाना नहीं

रकबर खान की बीवी असमीना खान गर्भवती है, उसके सात बच्चे पहले से हैं और उसकी आंखों के सामने बस अंधेरा है

Updated On: Jul 26, 2018 01:46 PM IST

Sat Singh

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अलवर लिंचिंग: अनपढ़ रकबर बच्चों को पढ़ाना चाहता था, अब उनके खाने का भी ठिकाना नहीं

रकबर खान की मौत की खबर फैलने के साथ हरियाणा के मेवात जिले के कोलगांव में लाल ईंटों से बने उस दो कमरे के मकान में मातमी उदासी पसरी है. रकबर मेवात से लगती अरावली की पहाड़ियों में मजदूरी किया करता था लेकिन एक दशक पहले पत्थरों की माइनिंग (खनन) पर रोक लगी तो हजारों अन्य मजदूरों की तरह रकबर के लिए भी बेरोजगारी के दिन आ गए.

रकबर को एक गुस्साई भीड़ ने राजस्थान के अलवर जिले में गाय की तस्करी के शक में पीट-पीटकर का मार डाला. फ़र्स्टपोस्ट ने रकबर खान की विधवा असमीना खान से बातचीत की.

परिवार के गुजारे का सवाल

असमीना की आंखें आंसुओं से भरी थीं. उसे यकीन नहीं हो रहा कि रकबर की हत्या हो गई है और आठ जनों के उसके परिवार के लिए रोज की रोटी जुटाने वाला रकबर अब फिर कभी लौटकर नहीं आएगा. असमीना पढ़ी-लिखी नहीं है. रकबर के हत्यारों के लिए फांसी की सजा की मांग करते हुए उसने कहा कि अभियुक्तों ने सिर्फ एक व्यक्ति की जान नहीं ली, उसने सवालिया अंदाज में कहा- ‘हमारे चार बेटे और तीन बेटियों के लिए रोज की रोटी जुटाने का जिम्मा रकबर पर था. आज जब रकबर इस दुनिया में नहीं है तो कौन कमाएगा और हम आठ जनों के लिए रोटी जुटाएगा? मैं पढ़ी-लिखी नहीं, बाहर की दुनिया नहीं देखी मैंने. हमारे परिवार का गुजारा कैसे चलेगा?'

वारदात के उस भयानक दिन को याद करते हुए असमीना ने कहा, 'मैंने उसके लिए रोटी और सब्जी पकायी थी. उसने दो नई गायों की खरीद के लिए मेरे पिता से 50 हजार रुपये उधार लिए थे.' उसने बताया कि घर पर दो गायें हैं और स्थानीय डेयरी में दूध बेचकर उनके घर का खर्चा चलता है. उसका कहना था, 'सब्जी-पानी का खर्चा निकल जाता है, रोज चार लीटर दूध बेचते हैं हम.'

असमीना ने कहा कि 'हमने राजस्थान से गाय खरीदने के बारे में सोच रखा था, मन में था कि कुछ ज्यादा दूध बेचकर परिवार की आमदनी बढ़ाई जाए और भविष्य के लिए कुछ पैसे बचाए जाएं लेकिन अब तो सबकुछ लुट गया.' उसने बताया कि 'कोलगांव के लोगों के लिए गाय पालना कोई नई बात नहीं, गाय पालना यहां आम चलन है, मैं बीते चार सालों से गाय पाल रही हूं और गायों को अपने परिवार के सदस्य की तरह ही मानती हूं.'

अनपढ़ रकबर बच्चों को पढ़ाना चाहता था

उसने बताया कि 16 साल पहले रकबर से उसका ब्याह हुआ और उसकी बड़ी बेटी अब 14 साल की है. असमीना ने कहा कि 'मेरा पति पत्थरों की माइनिंग के काम में अच्छा पैसा कमाता था लेकिन माइनिंग का काम रुकने पर मजबूरन उसे छोटे-मोटे कई काम करने पड़े.' असमीना के पांव भारी हैं, कुछ ही महीनों में उसे आठवीं संतान होने वाली है. रकबर रोजाना 300-400 रुपए कमा लेता था और गाय का दूध बेचने से कुछ और रकम मिल जाती थी.

असमीना ने बताया कि 'सात में से चार बच्चे स्थानीय मदरसे में पढ़ने जाते हैं जबकि बाकी तीन अभी स्कूल जाने के लिहाज से बहुत छोटे हैं.' असमीना को याद है, उसका पति कहा करता था कि कठिनाई के जो दिन उन दोनों को देखने पड़ रहे हैं वैसे दिन उनके बच्चों को देखना नहीं पड़ेगा. रकबर पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन वह अपने बच्चों से कहता था कि पढ़ाई पर ध्यान लगाओ ताकि जिंदगी मे कामयाब बन सको.

असमीना ने बताया कि पति की क्रूर हत्या की खबर उसे 21 जुलाई की सुबह मिली. उसने कहा, 'मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ लेकिन जब गांव के लोगों ने भी कह दिया कि खबर सच्ची है तो मेरी सुधबुध चली गई, बच्चे इस हौलनाक खबर को सुनकर कांपने लगे.'

उसकी मां और अन्य रिश्तेदार रेहना तापी गांव से आये हैं, वे ही घर संभाल रहे हैं. असमीना ने अपने मन में छुपे भय को उजागर करते हुए कहा कि 'मेरे माता-पिता ही मेरे लिए अब उम्मीद की आखिरी किरण बचे हैं लेकिन वे लोग भी मजदूर ही हैं और उनके पास इतने संसाधन नहीं कि उसमें से मेरे परिवार के लिए दे सकें.' गाय की तस्करी के आरोपों के बारे में उसने कहा कि 'हमारा काम दूध बेचना है और जो दूध बेचते हैं वो गाय को मारा नहीं करते.'

उससे पिता ने कहा था- ‘मत जाओ’

रकबर के पिता सुलेमान खान ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि गायों को लाने-ले जाने वाले लोगों पर हमले की खबरें मीडिया में आने के बाद उन्होंने रकबर को अलवर से गाय खरीदने से मना किया था. सुलेमान खान ने कहा, 'मैंने उसे मनाने की कोशिश की थी कि वह अलवर जाने का ख्याल छोड़ दे लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी, मुझसे यही कहा कि सबकुछ ठीक होगा.'

गाय की तस्करी के आरोपों को झूठा बताते हुए सुलेमान खान ने कहा कि लंबे समय से उनका पारिवारिक पेशा गाय का दूध बेचना है. उनका कहना था कि मेवात के इलाके में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच गाय पालने और दूध बेचने के मसले पर कभी कोई विवाद नहीं हुआ जबकि गायों के लाने-ले जाने के सवाल पर राजस्थान हिंसा के गढ़ में तब्दील हो गया है.

गांववालों का रोजाना अपमान होता है

सीपीआई(एम) के पोलित ब्यूरो के सदस्य तथा पूर्व सांसद नीलोत्पल बसु तथा पार्टी से हरियाणा के सचिव सुरेन्दर सिंह ने फिरोजपुर झिरका तथा कोलगांव जाकर रकबर खान के परिवार से भेंट की.

नीलोत्पल बसु ने कहा कि रकबर का परिवार बेहद गरीब है और कच्चे मकान में रहता है. बसु ने अपने एक बयान मे कहा है कि रकबर 'छोटा मोटा डेयरी किसान और दिहाड़ी मजदूर था. उसके सात बच्चे हैं जिनमें कोई 1 साल का है तो कोई 14 साल का. परिवार का भरण-पोषण रकबर के भरोसे चल रहा था और उसकी मौत से यह परिवार तबाह हो गया है.'

उन्होंने कहा कि कोलगांव हरियाणा की सीमा पर बसा है और कोलगांव से राजस्थान का नवगांव बस 9 किलोमीटर की दूरी पर है. कोलगांव के निवासी अपने रोजमर्रा की जरूरतों के लिए नवगांव जाते हैं जहां उन्हें रोजाना ही अपमान का सामना करना होता है. इन गांववालों की मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर और अन्य वाहन पुलिस उठा ले जाती है. वे अपने पशुओं को गर्भाधान के लिए लाते हैं तो उन्हें पकड़कर पीटा जाता है, अपमानित किया जाता है और पशु छीन लिए जाते हैं. कोलगांव से लगते राजस्थान की सीमा पर मौजूद पुलिस के मन में इन गांववालों के लिए भेदभाव की भावना भरी हुई है.’

(रोहतक निवासी सतसिंह फ्रीलांस लेखक और जमीनी स्तर के संवाददाताओं के अखिल भारतीय नेटवर्क 101Reporters.com के सदस्य हैं.)

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