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आसाराम के भक्तों की 'प्लानिंग' से घबराई है पुलिस, कहीं मामला राम रहीम केस की तरह न हो जाए

उम्मीद की जानी चाहिए कि राजस्थान सरकार और पुलिस ने राम रहीम केस में हिंसा से सबक लिया होगा

Updated On: Apr 17, 2018 01:12 PM IST

Mahendra Saini
स्वतंत्र पत्रकार

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आसाराम के भक्तों की 'प्लानिंग' से घबराई है पुलिस, कहीं मामला राम रहीम केस की तरह न हो जाए

राजस्थान हाईकोर्ट ने 17 अप्रैल यानी आज पुलिस की उस याचिका पर सुनवाई कर ली है जिसमें अपील की गई थी कि आसाराम पर आने वाला फैसला जेल कोर्ट में ही सुना दिया जाए. कोर्ट ने इस मामले पर फैसला रिजर्व कर लिया है. पुलिस ने ये अपील इसलिए की थी क्योंकि पुलिस को डर है कि स्वयंभू संत आसाराम के समर्थक कोर्ट के फैसले के बाद हिंसा पर उतारू हो सकते हैं. खासकर जोधपुर शहर में कानून-व्यवस्था को लेकर पुलिस खासी परेशान है.

अगले हफ्ते यानी 25 अप्रैल को आसाराम रेप केस में कोर्ट फैसला सुना सकती है. अब पुलिस ने कोर्ट से ये भी अपील की है कि संभव हो तो 25 की बजाय 17 ही फैसला दे दिया जाए. पुलिस को अंदेशा है कि 25 तारीख के लिए आसाराम के समर्थक पहले से ही योजना तैयार करके बैठे हो सकते हैं. ऐसे में अगर फैसला पहले ही सुना दिया जाए तो कानून व्यवस्था को बहुत हद तक बिगड़ने से रोका जा सकता है. कोर्ट ने आसाराम के वकील से इसपर आज यानी 17 अप्रैल तक लिखित जवाब दाखिल करने को कहा था.

पिछले साल पंचकुला में राम रहीम केस में फैसले के बाद जिस तरह की हिंसा हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ में खास तौर पर देखी गई, वैसा ही राजस्थान में भी होने का अंदेशा जताया जा रहा है. राजस्थान और गुजरात में आसाराम के समर्थक/शिष्यों की अच्छी खासी तादाद है. ऐसे में अगर हाईकोर्ट के बाहर भीड़ जुटती है तो पुलिस-प्रशासन के लिए कानून और व्यवस्था को बनाए रखना खासा मुश्किल हो सकता है.

पुलिस के पास है पुख्ता सूचना!

पुलिस के लिए मुश्किल ये है कि जोधपुर में आम दिनों में ही आसाराम के भक्तों की भीड़ को संभालना साधारण बात नहीं होती. फैसले के बाद ये कितना मुश्किल हो सकता है, सोचा जा सकता है. ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में एक पुलिस अधिकारी ने पंचकुला को दोहराने की तैयारियों से भी इनकार नहीं किया है. सोशल मीडिया पर आसाराम के समर्थकों की गतिविधियां एकाएक बढ़ गई हैं.

एहतियात के तौर पर पुलिस सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए आगे की योजनाएं बना रही है. हिंसा को लेकर पुलिस के पास खुफिया सूचनाएं हो सकती हैं. इसीलिए पुलिस इस केस में फैसला जेल कोर्ट में सुनाने की अपील कर रही है. जोधपुर पुलिस कमिश्नर अशोक राठौड़ ने मीडिया को बताया कि डर तो आसाराम समर्थकों के कोर्ट परिसर में ही पुलिस से भिड़ जाने का भी है क्योंकि फैसले के दिन कोर्ट परिसर और आसपास के इलाके में सैकड़ों नहीं हजारों की संख्या में आसाराम के समर्थकों के पहुंचने की आशंका है.

पुलिस को एक डर और भी है. इसे उन्होने अपनी याचिका में भी दर्ज किया है. पुलिस को आशंका है कि फैसले के बाद आसाराम की सुरक्षा को भी खतरा पैदा हो सकता है. अगर आसाराम इस केस से बरी हो जाते हैं या उनको कठोर सजा नहीं मिलती है तो डर है कि आसाराम के विरोधी भी उतने ही उग्र हो सकते हैं, जितने कि उनके समर्थकों को लेकर खतरा जताया जा रहा है.

आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई कर रहा विशेष एससी/एसटी ट्रायल कोर्ट 7 अप्रैल को ही सुनवाई पूरी कर चुका है. फैसला सुरक्षित रखा गया है जिसे 25 अप्रैल को सुनाया जाना है. इसीलिए पुलिस तय तारीख से 8 दिन पहले ही फैसला सुना देने की अपील कर रही है ताकि किसी भी अप्रिय योजनाओं को पूरा होने से पहले धराशायी किया जा सके.

प्रतीकात्मक तस्वीर.

प्रतीकात्मक तस्वीर.

क्या हैं आसाराम पर आरोप?

वर्तमान मामला नाबालिग के यौन उत्पीड़न का है. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की रहने वाली 16 वर्षीय पीड़िता ने आरोप लगाया था कि जोधपुर के मनई गांव में बने आश्रम में आसाराम ने उसका यौन शोषण किया था. इस मामले में अगस्त, 2013 में आसाराम को गिरफ्तार किया गया था. तब से वह जेल से बाहर नहीं निकल पाया है. हालांकि राम जेठमलानी जैसे सीनियर वकील तक उसकी पैरवी कर चुके हैं.

गुजरात से सूरत की रहने वाली 2 बहनों ने आसाराम और उसके बेटे नारायण साईं पर बलात्कार, उत्पीड़न और अवैध रूप से बंधक बनाने की शिकायत दर्ज कराई थी. पीड़िताओं के मुताबिक 2001 से 2006 के दौरान दोनों बाप-बेटों ने उनका यौन उत्पीड़न किया था.

एक आरोप आसाराम के आश्रम के पास 2 बच्चों की मौत/हत्या का भी है. 2008 में दीपेश और अभिषेक वाघेला नाम के 10 और 11 साल के ये बच्चे आसाराम के आश्रम से लापता हो गए थे. 2 दिन बाद इनके क्षत-विक्षत शव मिले थे. तब आसाराम पर तांत्रिक क्रियाओं के लिए इनकी हत्या कर देने का आरोप लगा था. मामला गरमाने के बाद तत्कालीन मोदी सरकार ने जस्टिस डी के त्रिवेदी की अध्यक्षता में एक जांच आयोग गठित किया था.

आसाराम पर टैक्स चोरी और काला धन जैसे आरोप भी लगते रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2016 में आयकर विभाग ने आसाराम की 2 हजार करोड़ से ज्यादा की अघोषित संपत्ति का खुलासा किया था. हालांकि अपुष्ट रिपोर्ट इस संपत्ति की कीमत 10 हजार करोड़ तक बताती हैं. रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में आसाराम के करीब 400 ट्रस्ट हैं. भक्तों से अधिकतर चंदा नकद में ही इकट्ठा किया जाता है. आसाराम के आश्रमों के तहत हजारों एकड़ जमीन का लैंडबैंक बनाया गया है.

आसाराम को लेकर भक्तों में कम नहीं उन्माद

गुजरात के साबरमती में आसाराम का सबसे बड़ा आश्रम बना हुआ है. पिछले 20-25 साल में आसाराम ने अपने समर्थकों/शिष्यों की खासी तादाद बढ़ाई है. 2013 में गिरफ्तार होने से पहले तक किसी भी शहर में लगने वाले उनके शिविरों में लाखों की भीड़ देखी जा सकती थी. इस स्वयंभू संत का सम्मोहन ऐसा है कि बलात्कार और हत्या जैसे संगीन आरोपों में जेल में होने के बावजूद भक्तों में उन्माद कम नहीं है.

अकसर देखा जाता है कि पेशी पर लाए जाने के दौरान कोर्ट और आसपास हजारों की संख्या में आसाराम के समर्थकों की भीड़ आ जुटती है. कई लोग तो उनके पांवों के नीचे की मिट्टी ले जाते हुए भी देखे जाते हैं. कुछ महीनों पहले जब चेकअप के लिए उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल ले जाया गया तो सामने आया कि उस फ्लाइट में आधी से ज्यादा सीटें आसाराम के भक्तों ने ही बुक कर ली थी.

Police escort spiritual leader Asaram Bapu (L) outside an airport after his arrest in Jodhpur, in India's desert state of Rajasthan September 1, 2013. Police arrested Bapu from India's central Madhya Pradesh state late on Saturday night and transited him to neighbouring Rajasthan for further questioning on charges of sexual assault on a minor. REUTERS/Stringer (INDIA - Tags: RELIGION CRIME LAW) - GM1E99119RH02

आसाराम पर राजनीति भी कम नहीं

उन्मादी भक्तों/समर्थकों की ऐसी भीड़ के कारण ही राजनीतिक गलियारों में भी आसाराम का खासा दखल होने के आरोप लगते रहे हैं. आसाराम के आश्रम में कई वीवीआईपी हस्तियों की फोटो देखी जा सकती हैं. आश्रम के लोगों का कहना है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह और केंद्रीय मंत्री उमा भारती आसाराम के अनुयायियों में शामिल रहे हैं. आश्रम के लोग दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी आसाराम को मानते रहे हैं.

हाल ही में गुजरात में विपक्ष ने बीजेपी सरकार पर आसाराम को बचाने की कोशिशों के आरोप लगाए हैं. पिछले महीने जिग्नेश मेवाणी ने विधानसभा में आसाराम के आश्रम के पास 2 बच्चों की मौत का मामला उठाया. मेवाणी ने जानना चाहा कि वे कौन से कारण हैं जिनके तहत सरकार इस मामले से जुड़ी जस्टिस डी के त्रिवेदी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से बच रही है.

जिग्नेश मेवाणी ने आरोप लगाया है कि 2013 में आयोग के अपनी रिपोर्ट दे देने के बावजूद उसे अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. हालांकि गुजरात के गृह राज्य मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने कहा कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने संबंधी फैसला अभी नहीं लिया जा सका है. कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही दल एक दूसरे पर आसाराम से राजनीतिक समर्थन लेने के आरोप लगाते हैं.

पर सबक क्यों नहीं सीखते हम?

अकसर हम हर हफ्ते दस दिन में किसी न किसी स्वयंभू संत का पर्दाफाश होते देखते हैं. इन फर्जी बाबाओं द्वारा महिलाओं के यौन शोषण की खबरें भी आती रहती हैं. इस सबके बावजूद आध्यात्म के नाम पर महिलाएं ही सबसे ज्यादा सम्मोहित होती देखी जाती हैं. ये और भी हैरान कर देने वाला सच है कि लोग आसाराम जैसों को तब भी संत मानते हैं जबकि उनपर नाबालिग के यौन शोषण और बच्चों की हत्याओं तक के आरोप लगते हैं. लोग तब भी उस पर भरोसा करते हैं जबकि 5 साल में वो अपनी 'शक्तियों' का इस्तेमाल खुद को जेल से बाहर निकाल पाने में नहीं कर पाया है.

एक बात और समझ से परे है. क्यों ये स्वयंभू संत आध्यात्म का पहला पाठ भी ठीक से न खुद पढ़ पाते हैं और न अपने भक्तो को सिखा पाते हैं. जहां तक मेरा मानना है, आध्यात्म में सबसे पहले गुस्सा और तृष्णाओं (इच्छाओं) को नियंत्रित करने की ही शिक्षा दी जाती है. लेकिन खुद को संत कहने वाले ये लोग न माया का मोह छोड़ पाते हैं और न ही इंद्रियों को ही नियंत्रित कर पाते हैं. सच सामने आने के बाद इनके भक्तों की हिंसा देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आध्यात्म के नाम पर ये लोग सिर्फ ढोंग करते हैं.

बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि राजस्थान सरकार और पुलिस ने राम रहीम केस में हिंसा से सबक लिया होगा. उम्मीद है, वसुंधरा राजे सरकार पर बीजेपी की ही मनोहर खट्टर सरकार जैसी लापरवाही का आरोप नहीं लगेगा. हम सबको ध्यान देना चाहिए कि न्यायालय न्याय के लिए हैं, उनके फैसलों को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का मसला बनाकर हिंसा के रास्ते पर जाना किसी समस्या का हल नहीं होता है.

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