सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के लिए काफी बड़ा दिन रहा. केंद्र ने आखिरकार राफेल डील की डिटेल्स एक सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंप दीं. इस हलफनामे में डील की प्रक्रिया और डील की जरूरत जैसी जानकारियों के अलावा केंद्र ने ये बताया है कि इस डील में फ्रेंच डिफेंस कंपनी दसॉ एविएशन के ऑफसेट पार्टनर के तौर पर भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को क्यों नहीं चुना गया.
न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र ने इस सवाल पर अपने हलफनामे में विस्तार से बताया है. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) इस सौदे में ऑफसेट पार्टनर बनने में नाकाम रही क्योंकि दसॉ के साथ उसके कई अनसुलझे मुद्दे थे. केंद्र ने कहा कि इन अनसुलझे मुद्दों की वजह से दोनों कंपनियों में आपसी समझ का अभाव था.
इसमें कहा गया, 'एचएएल इस समझौते का हिस्सा नहीं बन सका क्योंकि भारत में 108 एयरक्राफ्ट की मैन्यूफैक्चरिंग को लेकर दोनों कंपनियों में बात नहीं बन रही थी. इन मुद्दों के चलते दोनों कंपनियों में आपसी समझ का अभाव था.'
इस दस्तावेज में बताया गया है कि एचएएल को भारत में राफेल एयरक्राफ्ट बनाने के लिए दसॉ से 2.7 गुना ज्यादा काम करने का वक्त चाहिए था.
इस डील में अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप की एक कंपनी को क्यों ऑफसेट पार्टनर चुना गया, इस पर केंद्र ने अपनी वही बात दोहराई कि रक्षा ऑफसेट दिशानिर्देशों के अनुसार, कंपनी ऑफसेट दायित्वों को लागू करने के लिए अपने भारतीय ऑफसेट सहयोगियों का चयन करने के लिए स्वतंत्र है.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित विपक्ष कंपनी के ऑफसेट पार्टनर चुने जाने पर मोदी सरकार पर ये आरोप लगा रहा था कि ऑफसेट पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप की एक कंपनी का चयन करने के लिए फ्रेंच कंपनी दसॉ एविएशन को मजबूर किया ताकि उसे 30,000 करोड़ रुपए ‘दिए जा सकें’.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने बताया है कि उसने राफेल समझौते में किन प्रक्रियाओं की मदद ली. केंद्र ने कहा कि राफेल विमान खरीद में रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया है और मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति ने 24 अगस्त, 2016 को उस समझौते को मंजूरी दी जिस पर भारत और फ्रांस के वार्ताकारों के बीच हुई बातचीत के बाद सहमति बनी थी. 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व की यूपीए सरकार थी.
दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि इसके लिए भारतीय वार्ताकार दल का गठन किया गया था जिसने करीब एक साल तक फ्रांस के दल के साथ बातचीत की और इंटर-गवर्नमेंटल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने से पहले सक्षम वित्तीय प्राधिकारी, मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति, की मंजूरी भी ली गई.
23 सितंबर, 2016 को दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए.
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