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पंजाब के युवाओं का पलायन, पार्ट-4: इराक के पीड़ितों को मुआवजा कौन दे अभी तय नहीं

कई परिवार ये मानने को तैयार नहीं हैं कि उनके परिजन अब नहीं लौटेंगे

Updated On: Apr 01, 2018 09:14 AM IST

Arjun Sharma

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पंजाब के युवाओं का पलायन, पार्ट-4: इराक के पीड़ितों को मुआवजा कौन दे अभी तय नहीं

Editor's note: विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 20 मार्च को संसद में बताया कि इराक के मोसुल से अगवा किए गए 39 भारतीयों को, जिनमें ज्यादातर पंजाब के थे, बीते साल इस्लामिक स्टेट ने मार दिया था. पंजाब में भारी बेरोजगारी की हालत है. ऐसे में सूबे के गरीब और वंचित तबके के हजारों नौजवान बेहतर अवसर की तलाश में जोखिम को नजरअंदाज कर हुए मध्य-पूर्व के देशों में जाते हैं. मध्य-पूर्व में रोजगार के लिए जाने वाले कामगारों के हालात पर जारी ऋंखला की इस चौथी और अंतिम किश्त में फर्स्टपोस्ट हिन्दी पर आज पढ़िए:

जालंधरवासी सुरजीत सिंह मैन्का के परिवार वालों ने उनका चार सालों तक इंतजार किया. प्रार्थना करते रहे कि वे इराक से सुरक्षित लौट आयें. मैन्का उन चालीस भारतीयों में शामिल थे जिनका इस्लामिक स्टेट ने 2015 के जून में अगवा कर लिया था. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 20 मार्च को संसद में घोषणा की कि अगवा हुए लोगों में 39 जन को इस्लामिक स्टेट ने मार दिया और इस घोषणा के साथ सुरजीत सिंह मैन्का के परिवार की उम्मीदों पर पानी फिर गया. अगवा हुए लोगों में सिर्फ एक व्यक्ति किसी तरह भाग निकलने में कामयाब रहा. उसने अपनी पहचान छुपायी और खुद को बांग्लादेश का मुस्लिम बताया. बाकी सभी लोगों को बदूश ले जाया गया और वहां हत्या कर दी गई.

मैन्का की मौत की खबर ने कई सालों तक अनिश्चितता के भंवर में गोते खाने वाले उसके परिवार को तोड़कर रख दिया है. वे मैन्का के मौत के सदमे में हैं लेकिन उनके ऊपर उन ढाई लाख रुपयों की कर्ज-अदायगी का भी बोझ है. मैन्का ने ये रुपये इराक जाने के लिए कर्ज के तौर पर जुटाये थे. इराक में ही एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में मैन्का नौकरी कर रहे थे.

 

प्रतिपाल शर्मा की पत्नी राजरानी

प्रतिपाल शर्मा की पत्नी राजरानी

तीस वर्षीय मैन्का बढ़ई थे- अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए आमदनी जुटाने वाले एकमात्र सदस्य. उनकी मृत्यु के बाद परिवार में अब उनकी मां, पत्नी और सात साल की उम्र का एक बेटा रह गया है. मैन्का 2013 में इराक पहुंच पाये थे. इसके पहले दो दफे एजेंट ने उन्हें धोखा दिया.

इराक जाने की तैयारी करते हुए जिन दिनों मैन्का कुछ रकम जुटाने की जुगत में थे, उस समय उनकी मां और पत्नी फुटबॉल की सिलाई के काम से कुछ पैसों की कमाई कर रहे थे. परिवार ने यह काम करना बंद कर दिया था लेकिन भय सता रहा है कि यह काम फिर से करना पड़ेगा. मैन्का की मां हरबंस कौर ने कहा कि मैन्का ने जो कर्ज लिया था उसकी अदायगी अभी बाकी है, फिर घर चलाने और पोते के भविष्य को संवारने की चिन्ता भी लगी हुई है.

हरबंस कौर ने कहा,’ सरकार ने हमें यह बताने की फिक्र ही नहीं की कि तुम्हारा बेटा बहुत पहले मारा जा चुका है. और, जब हमें बता दिया गया है तब भी वे लोग यह नहीं सोच रहे कि उन परिवारों का क्या होगा जिन्होंने अपना बेटा खोया है और हाल के समय तक बेटे के मारे जाने के बारे में जिन्हें कोई जानकारी नहीं थी.’

दुविधा के भंवर में फंसे ऐसे परिवार बहुत हैं जिनके पास ना तो जीविका बची है ना ही कर्ज चुकाने का कोई साधन. इन परिवार के बच्चों का स्कूल जाना छूट गया है और परिवार के शेष सदस्य जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बुजुर्ग हैं, ऐरा-गैरा कोई भी काम कर किसी तरह रोज की रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं. मोसुल में अगवा होकर जान गंवाने वाले कामगारों के इन पीड़ित परिवारों के लिए ना तो केंद्र सरकार ने ही कोई सहायता राशि जारी की है और ना ही सूबे की सरकार ने.

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने सूबे की सरकार की तरह से पर्याप्त मुआवजा देने की बात कही है लेकिन उन्होंने यह मांग भी रखी है कि मुआवजा की राशि केंद्र सरकार को देनी चाहिए क्योंकि त्रासदी देश के बाहर हुई है. उन्होंने सुषमा स्वराज को चिट्ठी लिखी है कि मारे गये कामगारों के अंतिम संस्कार के लिए केंद्र सरकार से सभी जरुरी सहायता मुहैया करायी जानी चाहिए. उन्होंने लिखा है,’ भारत सरकार को मारे गये भारतीय नागरिकों के परिवार के लिए सहायता राशि देने की घोषणा करनी चाहिए."

मारे गये कामगारों के परिवार को उम्मीद है कि सरकार उन्हें सहायता राशि देगी और नौकरी भी दी जाएगी ताकि ये परिवार अपनी विपदा की हालत से उबर सकें. चक देशराज गांव के देविन्दर सिंह(मारे गये कामगारों में एक) की विधवा मनजीत कौर का कहना है,’ सहायता राशि के अलावा सरकार को चाहिए कि वह हर पीड़ित परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी दे ताकि हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके.’ मनजीत कौर फिलहाल अपने तीन बच्चों के भरण-पोषण के लिए घरेलू कामगार के तौर पर काम कर रही है. वह चाहती है, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई ठीक ढंग से हो जाए.

होशियारपुर के गुरदीप सिंह के बच्चों को अब भी इंतजार है कि पिता लौट आयेंगे

होशियारपुर के गुरदीप सिंह के बच्चों को अब भी इंतजार है कि पिता लौट आयेंगे

हाशियारपुर जिले के छावनी कलां गांव के कमलजीत सिंह इराक जाने के लिए 2014 में घर से चले थे. कमलजीत के बाद अब उनके घर में उनकी विधवा हरविन्दर कौर, एक बेटा तथा एक बेटी बचे हैं. कमलजीत के भाई परविन्दर सिंह का कहना है कि मौत की खबर मिलने के बाद से ही पूरा परिवार सदमे की हालत में है. उन्होंने कहा, कमलजीत की विधवा को सरकार से नौकरी मिलनी ही चाहिए ताकि वह अपने बच्चों का भरण-पोषण कर सके.

मारे गये कामगारों के परिवार से सरकार ने 2014 में वादा किया था कि उन्हें 20 हजार रुपये महीना मुआवजा के तौर पर दिया जाएगा. सहायता राशि की बात तो छोड़ दें, पीड़त परिवारों को बीते अक्तूबर महीने से यह मुआवजा मिलना भी बंद है. कामगारों के अगवा होने की खबर आने पर तत्कालीन शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने प्रभावित परिवारों को मुआवजे के रुप में प्रतिमाह 20 हजार रुपये देने की घोषणा की थी.

पंजाब के कपूरथला जिले के देविन्दर सिंह के भाई गोबिन्दर सिंह को इस्लामिक स्टेट ने मार दिया. देविन्दर सिंह ने बताया कि हमलोगों को पिछले छह महीने से कोई रकम नहीं मिली है.

कपूरथला के डेप्युटी कमिश्नर(उपायुक्त) मोहम्मद तैय्यब ने बताया कि प्रशासन पीड़ित परिवारों को राशि नहीं बांट पा सका क्योंकि सूबे की सरकार से सहायता राशि हासिल नहीं हुई थी. उपायुक्त ने कहा कि’ हमें अब राशि मिल गई है और रकम पीड़ित परिवारों में बांट दी जाएगी. अमृतसर की रणजीत कौर का बेटा जतिन्दर सिंह भी मोसुल में अगवा कर मारे गये कामगारों में शामिल है. रणजीत कौर का कहना है कि मासिक सहायता राशि के अभाव में हमारी जिंदगी बहुत मुश्किल से चल पा रही है. उन्होंने कहा,’ सहायता राशि देने में नाकाम रहने की खबर जब लोगों के सामने आई तो जिले के अधिकारियों ने हमें छह महीने बाद चेक फराहम किए.’

लुधियाना स्थित एक एनजीओ(स्वयंसेवी संस्था) हेल्पिंग आर्मी जरुरतमंद और गरीब लोगों को आवश्यक चीजे मुहैया कराती है. हेल्पिंग आर्मी ने भी सरकार से अपील की है कि प्रभावित परिवारों को फौरी तौर पर मदद पहुंचायी जाय. इस एनजीओ के सदस्य साहिबजोत सिंह चावला का कहना है कि’ अगर सरकार प्रभावित परिवारों को मदद देने में नाकाम रहती है तो हमारा एनजीओ यह जिम्मेदारी उठाएगा और जो भी संभव होगा, हमलोग करेंगे.’

पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता, आम आदमी पार्टी के सुखपाल सिंह खैरा का कहना है कि इराक में मारे गये हर कामगार के परिवार को सरकार की ओर से 1 करोड़ रुपये की राशि मिलनी चाहिए. खैरा ने यह मामला सूबे की विधानसभा में शून्यकाल के दौरान उठाया था और उन्होंने कहा कि जिले के अधिकारियों को प्रभावित परिवारों की सहायता करनी चाहिए. खैरा का कहना है कि’ यह सिर्फ कुछ परिवारों के विपदा में घिरने की बात नहीं बल्कि पूरे राज्य का मामला है. सहायता राशि देने से इन परिवारों का दुख तो कम नहीं होगा लेकिन उन्हें रोजमर्रा की बुनियादी जरुरतों को पूरा करने के अपने संघर्ष में कुछ मदद मिलेगी.’

लेकिन पीड़ित परिवारों को अभी अपनी आर्थिक स्थिति की उतनी फिक्र नहीं है. संगरुर जिले के धुरी के प्रीतिपाल शर्मा मारे गये कामगारों में एक हैं. उनके परिवार के लोग यह मानने को तैयार नहीं कि प्रीतिपाल की मौत हो चुकी है. प्रीतिपाल की पत्नी राजरानी चाहती है कि सूबे की सरकार उनके पति के मृत देह को स्वदेश वापस लाये ताकि अंतिम संस्कार किया जा सके. राजरानी का कहना है,’ पहले तो सरकार ने हमें अंधेरे में रखा, हमें बताया नहीं कि परिवार का सदस्य मारा गया. अब सरकार हमारे मारे गये परिजन की मृत देह वापस लाने में नाकाम है. मैं अपने पति को उसकी मौत के तुरंत पहले नहीं देख पायी लेकिन चाहती हूं कम से कम उसकी मृत देह को तो एक बार देख लूं.’

बीते 21 मार्च के दिन जिला प्रशासन के साथ संवाद में हुई गड़बड़ी के कारण पीड़ित दो कामगारों के परिवार-जन उनकी मृत देह को वापस लाने अमृतसर एयरपोर्ट जा पहुंचे थे लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.

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(लुधियाना में रहने वाले अर्जुन शर्मा फ्रीलांस लेखक और 101रिपोर्टर.कॉम के सदस्य हैं. 101रिपोर्टर.कॉम जमीनी स्तर की रिपोर्टिंग करने वाले संवाददाताओं का एक अखिल भारतीय नेटवर्क है. यहां पेश आलेख में अमृतसर के अमित शर्मा से मिली कुछ जानकारियों का इस्तेमाल हुआ है.)

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