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जानिए उनके बारे में सबकुछ, जो देश के पहले लोकपाल की खोज में लगे हैं

केंद्र सरकार ने लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के नामों की सिफारिश करने के लिए आठ सदस्यों की एक सर्च कमेटी का गठन किया है.

Updated On: Sep 28, 2018 03:49 PM IST

Ravishankar Singh Ravishankar Singh

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जानिए उनके बारे में सबकुछ, जो देश के पहले लोकपाल की खोज में लगे हैं

देश में ऊंचे स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए लोकपाल के गठन की दिशा में केंद्र सरकार ने अहम कदम उठाया है. केंद्र सरकार ने लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के नामों की सिफारिश करने के लिए आठ सदस्यों की एक सर्च कमेटी का गठन किया है. इस सर्च कमेटी में पूर्व न्यायाधीश, अधिवक्ता, पत्रकार और कई नौकरशाहों को जगह दी गई है.

देश में लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट बनने के लगभग पांच साल बाद यह कदम उठाया गया है. कमेटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई करेंगी. कमेटी में एसबीआई की पूर्व अध्यक्ष अरुंधति भट्टाचार्य, प्रसार भारती के अध्यक्ष ए सूर्य प्रकाश, इसरो के पूर्व प्रमुख ए.एस.किरण कुमार, इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सखाराम सिंह यादव, गुजरात के पूर्व डीजीपी शब्बीर हुसैन एस खंडवावाला, राजस्थान कैडर के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ललित के पंवार और देश के पूर्व सॉलिसीटर जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार को जगह दी गई है.

बता दें कि 2013 में पारित लोकपाल कानून के तहत प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति को लोकपाल सर्च कमेटी का गठन का अधिकार दिया गया है. इस चयन समिति में प्रधानमंत्री के अलावा लोकसभा अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, देश के प्रधान न्यायाधीश या उनके प्रतिनिधि, राष्ट्रपति द्वारा मनोनित न्यायविद इसके सदस्य होते हैं.

रंजना प्रकाश देसाई

सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को हुआ. देसाई 1970 में एल्फिंस्टन कॉलेज मुंबई से कला में स्नातक हैं और 1973 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज मुंबई से कानून में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की है. देसाई 30 जुलाई 1973 को कानूनी पेशे में शामिल हो गई थीं. 1979 में उन्हें सरकारी अधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया था. 1986 में निवारक नजरबंदी के मामलों के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में उनकी नियुक्ति हुई. 1 नवंबर 1995 को सरकारी अधिवक्ता मुंबई उच्च न्यायालय के पद पर नियुक्त हुई और 15 अप्रैल 1996 को उन्हें मुंबई उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया.

13 सितंबर 2011 को उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश के रूप में हुई. देसाई 1 दिसंबर 2014 को सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश के पद से रिटायर हुईं हैं. देसाई के पिता एस जी सामंत भी देश के जाने-माने क्रमिनिल लॉयर रह चुके हैं. 8 मई 2012 को रंजना देसाई और जस्टिस अल्तमस कबीर की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को 2022 तक हज सब्सिडी समाप्त करने का आदेश दिया था. 27 सितंबर 2013 को देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने चुनावों में ‘उपर्युक्त में से कोई भी नहीं’ का प्रावधान लागू किया था.

अदालत ने कहा था कि नकारात्मक मतदान से चुनाव व्यवस्था में बदलाव आएगा और राजनीतिक दलों को स्वच्छ उम्मीदवारों को पेश करने के लिए मजबूर किया जाएगा. तीनों की खंडपीठ ने चुनाव आयोग से कहा था कि इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए.

अरुंधति भट्टाचार्य

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अरुंधति भट्टाचार्य का जन्म 18 मार्च 1956 को हुआ. भट्टाचार्य भारत के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन रह चुकी हैं. उन्होंने 7 अक्टूबर 2013 को यह पद ग्रहण किया था और 6 अक्टूबर 2017 को इस पद से रिटायर हुई थीं. भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अरुंधति का चयन किया था. एसबीआई के इतिहास में इस बैंक के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली वे प्रथम महिला हैं.

भट्टाचार्य भारत की प्रथम और एकमात्र महिला हैं, जो फॉर्च्यून 500 लिस्ट में आई थीं. यदि सिर्फ बैंकिंग की बात की जाए तो विश्वभर में वे एकमात्र महिला थीं, जो फॉर्च्यून 500 लिस्ट में आने वाले किसी भी बैंक का नेतृत्व करती थीं. अरुंधति ने 1977 में बतौर एक प्रोबेशनरी ऑफिसर के तौर पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) जॉइन किया था. अपने 36 साल के करियर में उन्होंने बैंकिंग के विभिन्न विभागों में काम किया. वह एसबीआई के न्यूयॉर्क ऑफिस में भी काम कर चुकी हैं तथा एसबीआई कैपिटल मार्केट्स की मैनेजिंग डायरेक्टर भी रह चुकी हैं. साल 2016 में उन्हें फोर्ब्स द्वारा दुनिया की 25 सबसे शक्तिशाली महिलाओं में चुना गया था.

साल 2016 में ही उन्हें फॉरेन पॉलिसी मैग्जीन एफपी ने टॉप 100 ग्लोबल थिंकर्स के बीच जगह दी थी. उन्हें फॉर्च्यून द्वारा एशिया प्रशांत क्षेत्र में चौथी सबसे शक्तिशाली महिला का खिताब दिया गया था. साल 2017 में इंडिया टुडे पत्रिका ने उन्हें भारत के 50 सबसे शक्तिशाली लोगों में 19वीं रैंक पर रखा. 2018 में उन्हें एशियाई पुरस्कारों में बिजनेस लीडर ऑफ द ईयर नामित किया गया.

ए. सूर्य प्रकाश

ए. सूर्यप्रकाश जन्म 9 फरवरी 1950 को हुआ. देश में अंग्रेजी पत्रकारिता के एक जाने-माने नाम हैं. वर्तमान में सूर्यप्रकाश प्रसार भारती के अध्यक्ष हैं. 28 अक्टूबर 2014 को उन्हें इस पर पर तीन वर्षों के लिए नियुक्त किया गया था. सूर्यप्रकाश को साल 2017 में एक बार फिर से फरवरी 2020 तक प्रसार भारती कां चेयरपर्सन नियुक्त किया गया.

वे विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के सदस्य और पायनियर अखबार के सलाहकार संपादक भी रह चुके हैं. 1988 से 1993 तक इंडियन एक्सप्रेस के ब्यूरो प्रमुख रहे और 1994 से 1995 तक ईनाडु समूह के समाचार पत्रों और जी न्यूज के संपादक भी रह चुके हैं. एशिया टाइम्स के भारत संपादक और बैंकॉक और सिंगापुर से प्रकाशित एक अखबार के संपादक भी रह चुके हैं.

ए एस किरण कुमार

किरण कुमार अलुरु सेलीन का जन्म कर्नाटक के लिंगायत परिवार में 22 अक्टूबर 1952 को हुआ था. 1971 में बैंगलोर विश्वविद्यालय के नेशनल कॉलेज से उन्होंने फिजिक्स (ऑनर्स) में स्नातक की डिग्री हासिल की. 1973 में उसी विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स में एमएससी की डिग्री भी हासिल की. बाद में आगे के अध्ययन के लिए वो भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु चले गए, जहां से उन्होंने 1975 में इंजीनियरिंग में एमटेक की डिग्री हासिल की.

14 जनवरी 2015 को उन्होंने इसरो के अध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया था. इससे पू्र्व वे अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र, अहमदाबाद के निदेशक पद रह चुके हैं. किरण कुमार ने 1975 में इसरो के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र से अपने करियर की शुरूआत की थी. बाद में वह इस केंद्र के एसोसिएट डायरेक्टर और मार्च 2012 में अंतरिक्ष अनुंसंधान केंद्र के निदेशक भी बने.

किरण कुमार भारत के मार्स आर्बिटर अंतरिक्ष यान के मार्स उपकरणों के लिए मीथेन सेंसर के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. मंगलग्रह की ओर भेजे गए अंतरिक्ष यान के साथ-साथ इसे कक्षा में स्थापित करने के मामले में उन्होंने सफल रणनीतियां बनाई थीं. किरण कुमार ने अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन, पृथ्वी निगरानी उपग्रह समिति और नागरिक अंतरिक्ष सहयोग पर भारत-अमरीका संयुक्त कार्यकारी समूह जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों में इसरो का प्रतिनिधित्व भी किया है.

सखाराम सिंह यादव

इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सखाराम सिंह का जन्म 25 जुलाई 1940 को यूपी में इलाहाबाद जिले की हंडिया तहसील में हुआ था. सखाराम सिंह साफ-सूथरी छवि के लिए जाने जाते हैं. शुरुआती पढ़ाई गांव से करने के बाद सीएवी इंटर कॉलेज से 12वीं तक की पढ़ाई की. उसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी और एलएलबी की डिग्री हासिल की.

सखाराम सिंह यादव ने एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद पिता रूप नाथ सिंह यादव के जूनियर के रूप में इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की. सखाराम 24 जनवरी 1991 को हाईकोर्ट के जज बने और जुलाई 2002 में रिटायर हुए.

हाईकोर्ट के जज रहते हुए उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग के विकास से जुड़े मुद्दों पर अहम फैसले दिए. हाईकोर्ट से रिटायर होने के बाद वे सेंट्रल एडमिनिस्टट्रिव ट्रिब्यूनल (कैट) इलाहाबाद और बेंगलुरु में भी रहे. साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट के रूप में प्रैक्टिस शुरू की. बाद में सखाराम सिंह यादव ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली. उनके पिता रूपनाथ सिंह यादव भी हंडिया से दो बार विधायक रह चुके हैं.

सखाराम सिंह यादव के पिता 1977 में जनता दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से लोकसभा के लिए भी चुने जा चुके हैं. फिर बाद में रूप नाथ सिंह यादव ने 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उपस्थिति में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली थी.

शब्बीर हुसैन शेखादम खंडवावाला

गुजरात के पूर्व डीजीपी और 1973 बैच के आईपीएस अधिकारी शब्बीर हुसैन एस खंडवावाला का नाम गुजरात में काफी चर्चित रहा है. खंडवावाला को पुलिस मेडल और राष्ट्रपति मेडल से भी सम्मानित किया जा चुका है. साल 2009 में गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने खंडवावाला को राज्य का नया डीजीपी बनाया था. डीजीपी बनने से पहले खंडवावाला राज्य में एंटी करप्शन ब्यूरो के डायरेक्टर पद पर थे.

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खंडवावाला 2002 में गुजरात दंगे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित रिव्यू कमेटी के सदस्य भी थे. साल 2007 में खंडवावाला तब चर्चा में आए जब अचानक ही उन्होंने वॉलिंटियरी रिटायरमेंट के लिए आवेदन दे दिया. खंडवावाला ने तब कहा था कि वह प्राइवेट सेक्टर की कंपनी एस्सार में नौकरी करना चाहते हैं.

उस समय की गुजरात की मोदी सरकार ने तब उनके आवेदन को खारिज कर दिया था. बता दें कि देश में इमरजेंसी के दौरान एक व्यक्ति को पीटने के मामले में खंडवावाला को निचली अदालत से सजा भी मिल चुकी है, हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने इस मामले को खारिज कर दिया था. खंडवावाला की लिखाई-पढ़ाई में बहुत रुचि है. 20 से ज्यादा कहानियां अभी तक उनकी छप चुकी हैं. खंडवावाला बोहरा मुस्लिम हैं.

डॉ. ललित के.पंवार

1979 बैच के राजस्थान कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ललित के पंवार भारत के पर्यटन सचिव भी रह चुके हैं. वर्तमान में वे राजस्थान आईएलडी कौशल विश्वविद्यालय के पहले कुलपति हैं. पंवार पूर्व में राजस्थान लोक सेवा आयोग के चैयरमेन भी रह चुके हैं. 11 जुलाई 1955 को जन्मे ललित के. पंवार ने मास्टर्स डिग्री एमएससी में की है. पंवार पर्यटन में भी डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है.

रंजीत कुमार

रंजीत कुमार का नाम देश के जाने-माने अधिवक्ताओं में शुमार किया जाता है. कुमार संवैधानिक कानूनों, सेवाओं और कराधान मामले में विशेषज्ञ माने जाते हैं. पिछले साल अक्टूबर में रंजीत कुमार तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने सॉलिसिटर जनरल के पद से इस्तीफा दे दिया था. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जून 2014 में रंजीत कुमार को सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था.

बाद में सरकार ने दोबारा से उनका कार्यकाल बढ़ा दिया था. पिछले साल अपने सहकर्मियों को लिखे पत्र में रंजीत कुमार ने कहा था कि मैं निजी और पारिवारिक कारणों से इस्तीफा दे रहा हूं. साल 2012 में कुमार और दो अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन से निष्कासन के साथ धमकी भी दी गई थी. रंजीत कुमार को सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार के कई मामलों में वकील और न्यायमित्र के रूप में काम करने का अनुभवप्राप्त है. गुजरात सरकार की तरफ से कुमार सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में पैरवी कर चुके हैं.

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